
पी. चिदंबरम का मणिपुर से संबंधित ट्वीट और उस पर उठी आलोचना निश्चित रूप से एक संवेदनशील मुद्दा बन गया। चिदंबरम ने अपने ट्वीट में मणिपुर में विभिन्न समुदायों के बीच क्षेत्रीय स्वायत्तता की आवश्यकता की बात की थी, जिसे कुछ लोगों ने विवादास्पद और संवेदनशील माना। उनकी टिप्पणी में मैतेई, कुकी-ज़ो और नागा समुदायों के लिए क्षेत्रीय स्वायत्तता की आवश्यकता का उल्लेख था, जो राज्य में विभिन्न जातीय समूहों के बीच तनावपूर्ण स्थिति को ध्यान में रखते हुए कुछ लोगों के लिए चिंता का कारण बन गया।
चिदंबरम के ट्वीट के बाद, कांग्रेस के मणिपुर में विधायक और सीएलपी (कांग्रेस विधानमंडल दल) के नेता ओ इबोबी सिंह ने इस पर सफाई दी। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि यह बयान चिदंबरम की व्यक्तिगत राय थी और पार्टी का आधिकारिक दृष्टिकोण नहीं था। इबोबी सिंह ने यह भी कहा कि उनका बयान राज्य में गलतफहमियां पैदा कर सकता था, और इसलिए उन्होंने पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से बात की ताकि इसे सही तरीके से सुलझाया जा सके।
यह स्थिति इस बात का उदाहरण है कि राजनीति में कभी-कभी व्यक्तिगत बयान या राय एक बड़ी राजनीतिक बहस का रूप ले सकते हैं, खासकर जब किसी संवेदनशील मुद्दे से जुड़ी होती हैं। मणिपुर में जो जातीय संघर्ष और विवाद चल रहे हैं, उस संदर्भ में ऐसे बयान समाज में और राजनीति में और अधिक विभाजन का कारण बन सकते हैं।
कांग्रेस पार्टी का प्रयास यह रहा कि इस बयान को चिदंबरम की निजी राय के रूप में प्रस्तुत किया जाए और इससे पार्टी के आधिकारिक दृष्टिकोण को अलग रखा जाए, ताकि किसी भी प्रकार की गलतफहमी या विवाद से बचा जा सके।