उत्तराखंड के हल्द्वानी हिंसा मामले पर बड़ा अपडेट आया है. हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में मस्जिद पर बुलडोजर एक्शन के बाद हिंसा फैलाने वाले दंगाइयों की अब खैर नहीं है, क्योंकि कोर्ट ने बड़ा आदेश दिया है. सिविल कोर्ट ने गुरुवार को हल्द्वानी के बनभूलपुरा में 8 फरवरी को हुई हिंसा के मास्टरमाइंड अब्दुल मलिक और उसके बेटे समेत नौ उपद्रवियों की संपत्ति जब्त करने के आदेश जारी किए हैं. बता दें कि हल्द्वानी प्रशासन ने सात दिन बाद आज यानी गुरुवार को बनभूलपुरा शहर में कर्फ्यू में कुछ घंटों के लिए ढील देने की घोषणा की.
हल्द्वानी हिंसा पर सिविल कोर्ट ने पुलिस को सभी आरोपियों के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 82, 83 के तहत कार्रवाई करने की इजाजत दे दी है. इससे पहले 13 फरवरी को सिविल कोर्ट ने सभी नौ आरोपियों के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था. बता दें कि 8 फरवरी को बनभूलपुरा इलाके में अवैध मस्जिद और मदरसे पर बुलडोजर एक्शन के बाद हिंसा भड़क उठी थी.
बता दें कि उत्तरखंड में हल्द्वानी हिंसा के मुख्य आरोपी अब्दुल मलिक के खिलाफ बुधवार को एक गैर-जमानती वारंट जारी किया गया था. आरोपी मलिक ने बनभूलपुरा में मदरसे का निर्माण कराया था और उसने इसे ध्वस्त किये जाने का विरोध किया था. अधिकारियों ने बताया कि वारंट के जरिये पुलिस को उसके घर की तलाशी लेने और उसे पकड़ने के लिए आवश्यक अन्य कदम उठाने की अनुमति होगी. पुलिस ने ही उसकी संपत्ति की कुर्की के लिए अदालत में याचिका भी दायर की थी.
इस बीच उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बुधवार को मलिक की पत्नी सफिया द्वारा ध्वस्तीकरण की कार्रवाई पर रोक लगाने के अनुरोध संबंधी एक जनहित याचिका पर सुनवाई की. शहर के बनभूलपुरा इलाके में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है, जहां आठ फरवरी से कर्फ्यू लगा हुआ है. उच्च न्यायालय की सुनवाई से पहले सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई थी. वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय में बनभूलपुरा के एक निवासी का पक्ष रखते हुए बुधवार को दलील दी कि उनके मुवक्किल को क्षेत्र में अतिक्रमण हटाने से पहले अदालत में जवाब दाखिल करने के लिए 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए था.
हल्द्वानी के बनभूलपुरा में नगर निगम की ओर से ‘अवैध मस्दिद और मदरसे को ढहाने से आठ फरवरी को इलाके में हिंसा भड़क गई थी. इस हिंसा में छह लोगों की मौत हो गई थी और पुलिस एवं पत्रकारों सहित 100 से अधिक लोग घायल हो गए थे. कुमाऊं के आयुक्त दीपक रावत ने शहर में आठ फरवरी को हुई हिंसा की मजिस्ट्रेट जांच शुरू की. उन्हें 10 फरवरी को जांच का काम सौंपा गया था और उन्हें 15 दिन में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपने को कहा गया था.