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वन-स्टॉप सेंटर योजना एक बहुउद्देशीय योजना

वन स्टॉप सेंटर योजना, हिंसा से प्रभावित महिलाओं और बालिकाओं को सहायता देने के लिए केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा प्रारंभ की हुई एक बहुउद्देश्यीय महिला कल्याणकारी योजना है, जिसके तहत एक ही जगह पर पीड़ित महिलाओं को तुरंत आपातकालीन और गैर-आपातकालीन सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। इन सुविधाओं में चिकित्सा, कानूनी सहायता, मनोवैज्ञानिक परामर्श आदि शामिल हैं। यदि कोई भी महिला बलात्कार, यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, तस्करी, सम्मान से जुड़े अपराध, एसिड अटैक या डायन-हंटिंग जैसी किसी भी तरह की हिंसा का सामना कर रही हों तो वे वन स्टॉप सेंटर से संपर्क करके मदद ले सकती हैं। 

बता दें कि वन-स्टॉप सेंटर योजना, राष्ट्रीय महिला अधिकारिता मिशन की एक उप-योजना है, जिसमें इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना भी शामिल है। यह योजना, निर्भया फंड द्वारा वित्त पोषित है। इसके तहत केंद्र द्वारा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पूरी वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

बता दें कि वन-स्टॉप सेंटर योजना, राष्ट्रीय महिला अधिकारिता मिशन की एक उप-योजना है, जिसमें इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना भी शामिल है। यह योजना, निर्भया फंड द्वारा वित्त पोषित है। इसके तहत केंद्र द्वारा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पूरी वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इसका ऑडिट भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के मानदंडों के अनुसार किया जाता है। साथ ही इस योजना के संबंध में नागरिक समाज समूहों द्वारा एक सामाजिक ऑडिट भी किया जाता है, जो अच्छी और सकारात्मक पहल है। वन-स्टॉप सेंटर योजना (सखी) के लिए राष्ट्रीय स्तर पर, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय बजटीय विनियमन और प्रशासन के लिए उत्तरदायी है। वहीं, राज्य स्तर पर महिला एवं बाल विकास विभाग इस योजना की समग्र दिशा और कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार है।

इस योजना की खास बात यह है कि इसके तहत उम्र, वर्ग, जाति, धर्म, शिक्षा की स्थिति, वैवाहिक स्थिति, नस्ल और संस्कृति आदि के कारण होने वाले किसी भी तरह के भेदभाव के बिना ही जरूरतमंद महिला को नैतिक व प्रशासनिक समर्थन और सहायता प्रदान की जाती है। ऐसा इसलिए कि घर से लेकर दफ्तर तक, महिलाओं को लिंग आदि के आधार पर कई बार भेदभाव और अप्रत्याशित हिंसा तक का सामना करना पड़ता है। 

लिहाजा, इस सखी योजना का उद्देश्य देश की पीड़ित महिलाओं के संघर्षों को खत्म करना और उनका जीवन को बेहतर बनाना है ताकि आधी आबादी को किसी तरह की दुश्वारियों व परेशानियों का सामना नहीं करना पड़े।

उल्लेखनीय है कि केंद्रीय मंत्रालय ने 1 अप्रैल, 2015 से वन स्टॉप सेंटर स्थापित करने की योजना शुरू की थी। इसके तहत पहले चरण में प्रति राज्य/संघ राज्य क्षेत्र में 1 वन स्टॉप सेंटर स्थापित किया गया था। दूसरे चरण के तहत साल 2016-17 में 150 अतिरिक्त वन स्टॉप सेंटर स्थापित किए गए थे। 

वहीं, जुलाई 2019 के आंकड़ों के अनुसार, देशभर में 462 वन-स्टॉप सेंटर स्थापित किए जा चुके थे। सबसे अधिक वन-स्टॉप सेंटर- उत्तर प्रदेश में है, यहां 75 वन स्टॉप सेंटर कार्यरत हैं। इसके बाद दूसरे नंबर पर मध्य प्रदेश हैं, जहां 51 वन स्टॉप सेंटर कार्यरत हैं। जबकि हाल-फ़िलहाल तक देश में लगभग 700 वन स्टॉप सेंटर (ओएससी) काम कर रहे हैं, जो महिलाओं के लिए ‘संकटमोचक’ बने हुए हैं। वहीं, 2025 तक सरकार का लक्ष्य देश में 300 और केंद्र स्थापित करना है। इस योजना के तहत टोल फ्री हेल्पलाइन 181 डायल कर कोई भी जरूरतमंद और पीड़ित महिला विपरीत परिस्थिति में या उसकी ओर से कोई भी सखी केंद्र से 24X7 मदद मांग सकती हैं। 

वहीं, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने घोषणा की है कि वह दस देशों में ओएससी स्थापित करके विदेश मंत्रालय के सहयोग से वन-स्टॉप सेंटर योजना पर काम करेगा। जिसके  तहत पहले चरण में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, सिंगापुर, बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, यूएई और सऊदी अरब में वन-स्टॉप सेंटर स्थापित किए जाएंगे। वहां भी ये वन स्टॉप सेंटर जाति, वर्ग, धर्म, क्षेत्र या वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों सहित सभी महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा और उत्पीड़न के खिलाफ काम करेंगे। 

वहीं, नाबालिग लड़कियों की मदद के लिए, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 के तहत स्थापित संस्थानों और प्राधिकरणों को भी इस महत्वाकांक्षी योजना से जोड़ने की पहल हुई है। उल्लेखनीय है कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ऐसी महिलाओं को सहायता प्रदान करता है, जो शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक या यौन शोषण की मार झेल रही हैं। अगर जरूरत पड़ती है तो महिला को मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग भी प्रदान की जाती है। 

एक आकलन के मुताबिक, महिलाओं के लिए सरकारी स्तर पर जो योजनाएं चल रही हैं, उनमें वन स्टॉप सेंटर योजना बेहद कारगर है। इस वन स्टॉप सेंटर योजना को ‘सखी’ नाम से भी जाना जाता है। देश के हर जिले में वन स्टॉप सेंटर बन हुए हैं, जो इस योजना के तहत पीड़ित महिला को तुरंत मदद पहुंचाते हैं। खासकर वो महिलाएं जो यौन, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक, आर्थिक शोषण आदि का सामना करती हैं।

महिलाओं की ऐसे मदद करती है वन स्टॉप सेंटर योजना

इमरजेंसी रेस्क्यू सर्विस के तहत वन स्टॉप सेंटर के पास जैसे ही किसी महिला के साथ हुई हिंसा की शिकायत पहुंचती है, तो उसे तुरंत इमरजेंसी रेस्क्यू सर्विस प्रदान की जाती है। इसके लिए वन स्टॉप सेंटर, 108 सर्विस और पीसीआर के साथ मिलकर नेशनल हेल्थ मिशन की मदद से तत्काल महिला का बचाव किया जाता है और उसको तुरंत ही नजदीकी हॉस्पिटल या शेल्टर होम तक पहुंचाया जाता है।

वहीं, मेडिकल सहायता के मार्फ़त पीड़ित महिला को स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइन के तहत हर तरह की मेडिकल सहायता प्रदान जाती है। जबकि मानसिक काउंसलिंग के दृष्टिगत भी उपाय किये जाते हैं, क्योंकि अमूमन ऐसे मामलों में महिलाएं मानसिक तौर पर भी टूट जाती हैं। इसलिए, वन स्टॉप सेंटर पीड़ित महिला के लिए काउंसलिंग की भी व्यवस्था करता है।

वहीं, अपने हक की लड़ाई लड़ने और इंसाफ पाने में मदद करने के लिए वन स्टॉप सेंटर से पीड़ित महिला को कानूनी मदद के तहत वकील भी मुहैया कराया जाता है। जबकि पीड़ित महिला को इंसाफ दिलाने में पुलिस और कोर्ट की कार्यवाही बिना किसी रुकावट के तेजी से आगे बढ़े, इसके लिए वन स्टॉप सेंटर पीड़िता को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा भी देता है।

गौरतलब है कि देश के हर जिले में वन स्टॉप सेंटर बने हुए हैं। जहां जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता या फिर जिला कार्यक्रम अधिकारी की मदद से पीड़ित महिलाएं आसानी पूर्वक पहुंच सकती हैं। इसके अलावा पीड़ित महिलाएं हेल्पलाइन नंबर 181 पर भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं। यह नंबर 24 घंटे उपलब्ध रहता है। वहीं, घर या दफ्तर में लिंग के आधार पर हिंसा झेलने वाली महिला खुद जाकर वन स्टॉप सेंटर में शिकायत कर सकती है। यदि वो खुद जाने में सक्षम नहीं है, तो अपने किसी दोस्त या रिश्तेदार के जरिए भी अपनी शिकायत पहुंचा सकती है। सबसे अहम बात यह है कि पीड़ित महिला की तरफ से शिकायत दर्ज कराते ही संबंधित जिले या इलाके के डीपीओ, पीओ, डीएम, डिप्टी एसपी, एसपी या फिर सीएमओ के पास मैसेज पहुंच जाता। इसके साथ ही सिस्टम में महिला का केस दर्ज हो जाता है और उसकी एक यूनिक आईडी बन जाती है।

वन स्टॉप सेंटर योजना के विकास की संक्षिप्त पृष्ठभूमि को जानिए

वर्ष 2013 में महिला सुरक्षा के लिए निर्भया कोष की स्थापना की गई थी। इसके बाद महिला एजेंसी और अधिकारिता पर 12वीं योजना कार्य समूह द्वारा वन-स्टॉप क्राइसिस सेंटर स्थापित करने की सिफारिश की गई थी। वहीं, 2013 में, उषा मेहरा आयोग ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें यौन उत्पीड़न की पीड़िता की मदद के लिए अधिसूचित अस्पताल में वन-स्टॉप सेंटर की आवश्यकता बताई गई थी। इसके बाद देश भर में चरणबद्ध तरीके से वन-स्टॉप सेंटर स्थापित किए गए हैं। 

जानिए, क्या कहती है जस्टिस उषा मेहरा आयोग की रिपोर्ट 

दिल्ली में सामुहिक दुष्कर्म की घटना के बाद भी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आधी आबादी के साथ हिंसा, अत्याचार और भेदभाव जारी है। इसे लेकर जस्टिस उषा मेहरा आयोग ने केंद्र सरकार को 160 पेज की एक रिपोर्ट सौंपी थी। इस रिपोर्ट में शिक्षा, चिकित्सा, परिवहन आदि जगहों पर सुरक्षा इंतजामों को लेकर कई सुझाव दिए थे। उषा मेहरा आयोग की मुख्य सिफारिशें निम्नलिखित हैं– जस्टिस मेहरा ने अपनी रिपोर्ट में धार्मिक आधार पर महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को खत्म करने पर जोर दिया था। रिपोर्ट मे ऐसे प्रयास करने के सुझाव दिए गए हैं जिससे समाज में महिलाओं के प्रति लोगों का नजरिया बदले और उन्हें सम्मान मिल सके। रिपोर्ट में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, अभियान की तारीफ की गई है। 

वहीं, आयोग ने स्कूली शिक्षा में योग को अनिवार्य रुप से शामिल करने का सुझाव दिया था। इससे छात्रों को शरीर के साथ-साथ मन और भावनाओं पर काबू करने में मिलेगी। आयोग की रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस को छात्रों से संवाद बढ़ाने और कानून की जानकारी देकर उन्हें अच्छे नागरिक बनाने का सुझाव दिया गया है। इसके लिए कम्युनिटी पुलिसिंग, पीसीआर में सीसीटीवी कैमरे और पुलिस बल में महिलाओं की संख्या बढ़ाने और पुलिस थानों की संख्या बढ़ाने का भी सुझाव दिया गया है। 

वहीं, जस्टिस मेहरा की रिपोर्ट में सरकार को महिला सम्मान को लेकर प्रचार अभियान चलाने का सुझाव दिया गया है। साथ ही दिल्ली की कई सड़कें अंधेरे में है, इसे लेकर भी बात की गई है। इसके अलावा रात्रि में विशेष बसें चलाने के साथ बसों में सीसीटीवी कैमरे और जीपीएस लगाने का भी सुझाव दिया गया था। साथ ही परिवहन विभाग और यातायात पुलिस में तालमेल होने की अपेक्षा जताई गई थी। मेहरा आयोग की रिपोर्ट में शराब की दुकानों की संख्या निर्धारित करने का भी सुझाव दिया गया था। साथ ही कहा गया था कि शराब के ठेके स्कूल, पार्क, सार्वजनिक स्थानों और कॉलोनियों में न हों। रिपोर्ट में हर जिले में शराब की दुकानों की संख्या निर्धारित करने के साथ महिला शौचालयों की संख्या बढ़ाने की बात कही गई थी।

समझिए, ‘निर्भया फंड’ क्या है? उसका कैसे उपयोग हो रहा है?

साल 2012 में दिल्ली में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने साल 2013 में ‘निर्भया फंड’ की स्थापना की थी। इस फंड की स्थापना, बलात्कार पीड़िताओं की सहायता करने और उनके पुनर्वास को सुनिश्चित करने के लिए की गई थी। इसके लिए तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने 1000 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की थी। यह फंड पिछले एक दशक में बढ़कर 4000 करोड़ रुपए हो चुका है। 

बता दें कि ‘निर्भया फंड’ की स्थापना के उद्देश्य 

महिला सशक्तीकरण से जुड़ी विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वयन करना और महिला सुरक्षा पर केंद्रित योजनाओं को सहायता देना है। हालांकि, इसके सदुपयोग की राह में चुनौतियां भी कम नहीं हैं, क्योंकि कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में निर्भया फंड के तहत दी जाने वाली राशी का सही उपयोग ही नहीं हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि साल 2015 से 2018 के बीच महिलाओं की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों को 854.66 करोड़ रुपए की राशि दी थी, लेकिन इसमें से केवल 165.48 करोड़ की ही उपयोग किया जा सका था।

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