उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 को महाकुंभ मेले की शुरूआत होने जा रही है। वहीं महाकुंभ मेले का समापन 26 फरवरी 2025 को होगा। इस दौरान सभी अखाड़ों के साधु-संत महाकुंभ में शामिल होंगे। बड़ी संख्या में नागा साधु कुंभ के मेले में स्नान करते हैं। नागा साधु भारतीय साधुओं के एक विशेष वर्ग होते हैं, जो मुख्य रूप से हिंदू धर्म में तीव्र तपस्या और आत्मविकास के लिए प्रसिद्ध हैं। इन साधुओं की जीवनशैली बहुत कठोर होती है, और वे आमतौर पर अपनी सांसारिक इच्छाओं से मुक्त रहते हैं।
नागा साधु बनने की प्रक्रिया अत्यंत जटिल और आध्यात्मिक होती है। इनमें से एक महत्वपूर्ण परंपरा है “पिंडदान” करना। पिंडदान एक हिंदू धार्मिक अनुष्ठान है, जिसमें व्यक्ति अपनी आत्मा को मुक्ति की ओर ले जाने के लिए अपने शरीर और जीवन से पूरी तरह से मुक्त हो जाता है।
नागा साधु बनने के लिए व्यक्ति खुद का पिंडदान करता है, जिससे वह अपने भौतिक शरीर और सांसारिक अस्तित्व से अलिप्त हो जाता है। यह प्रक्रिया एक प्रतीकात्मक मृत्यु होती है, जिसमें व्यक्ति अपने पुराने जीवन और सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर पूरी तरह से तात्त्विक रूप से आत्मा की ओर उन्मुख हो जाता है।
यह अनुष्ठान तब पूरा होता है जब व्यक्ति गंगा स्नान और अन्य आध्यात्मिक क्रियाओं के माध्यम से अपने शरीर की शुद्धि करता है और फिर नागा साधु के रूप में अपनी पहचान स्थापित करता है। इस अवस्था में वे अपने जीवन को पूरी तरह से साधना, तपस्या और भिक्षाटन के लिए समर्पित कर देते हैं, और उनका उद्देश्य केवल आत्मा की मुक्ति प्राप्त करना होता है।
नागा साधुओं की जीवनशैली को ध्यान, साधना, और तपस्या के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, जो भगवान शिव के भक्त होते हैं और उनका जीवन पूर्ण रूप से सन्यास और साधना के लिए समर्पित होता है। व्यक्ति को नागा साधु बनने के बाद जीवन में कभी भी कपड़े नहीं धारण करने होते हैं। क्योंकि वस्त्र आडंबर और सांसारिक जीवन का प्रतीक माना जाता रहै। इसी वजह से नागा साधु अपने शरीर को ढकने के लिए भस्म लगाते हैं।
वहीं नागा साधु कभी भी किसी के सामने अपना सिर नहीं झुकाते और न किसी की निंदा करते हैं। यह सिर्फ बड़े सन्यासियों के सामने अपना सिर झुकाते हैं। इन सभी नियमों का पालन करने के बाद ही व्यक्ति नागा साधु कहलाता है।