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भारत के लिए गलत अनुमान : शंघाई इंस्टीट्यूट

पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत न केवल आर्थिक और सामरिक क्षेत्रों में प्रगति कर रहा है, बल्कि वैश्विक मंच पर भी अपनी एक मजबूत पहचान बना रहा है। यही वजह है कि कभी भारत को कमजोर समझने वाला चीन अब अब ये मानने पर मजबूर हो गया कि उसे भारत को समझने में गलती हो गई। दरअसल, चीनी थिंक टैंक शंघाई इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज की हालिया रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया कि चीन ने भारत को लेकर अपने अनुमान में गलती की है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने 2014 से 2024 के बीच आर्थिक और सैन्य दोनों ही क्षेत्रों में जबरदस्त प्रगति की है। चीन को ये भ्रम था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी की पार्टी की सीटें घटने से उनके फैसले करने की क्षमता पर असर पड़ेगा। लेकिन पीएम मोदी ने अपनी क्षमता से चीन के सभी भ्रमों को दूर कर दिया है। 

2026 तक सीमा सुरक्षा के मामले में चीन को पीछे छोड़ने का लक्ष्य 

2014 से पहले चीन भारत के सैन्य इंफ्रास्ट्रक्चर को कमजोर मानता था। उसे लगता था कि भारत कभी भी चीन का मुकाबला नहीं कर पाएगा। लेकिन पिछले एक दशक में भारत ने अपने सैन्य इंफ्रास्ट्रक्चर में जिस तेजी से सुधार किया उससे चीन भी हैरान है। चीन हमेशा से मानता रहा है कि भारत कभी भी उसकी तकनीकि और सामरिक क्षमताओं का सामना नहीं कर पाएगा। लेकिन भारत ने न केवल अपने रक्षा बजट में इजाफा किया बल्कि अपनी सीमावर्ती इलाकों में सैन्य तैयारियों को मजबूत किया। भारत ने चीन से सटे सीमाओं पर सैन्य तैयारियों पर सुधार किया। भारत ने 2026 तक सीमा सुरक्षा के मामले में चीन को पीछे छोड़ने का लक्ष्य रखा है। 

सीमा पर शांति की राह पर लौटता दिख रहा 

भारत और चीन के बीच 29 अगस्त को बीजिंग में वर्किंग मैकेनिज्म ऑन कंसल्टेंशन एंड कोऑर्डिनेशन (डब्ल्यूएमसीसी) की 31वें दौर की बैठक हुई। इसमें चीन भारत के साथ सीमा समझौते को मानने के लिए तैयार हो गया है। बॉर्डर पर तमान कम करने पर भी सहमति बनी है। बैठक के बाद भारत का कहना है कि चीन के साथ वार्ता स्पष्ट, रचनात्मक और दूरदर्शी रही है। बीजिंग नई दिल्ली के साथ अपने सीमा-संबंधी समझौतों का सख्ती से पालन करने पर भी सहमत हुआ। 

जयशंकर ने चीन को बताया दोहरी पहेली

जयशंकर ने देश के रणनीतिक महत्व को स्वीकार किया। चीन के मामले में पके सामने दोहरी पहेली है, क्योंकि यह एक पड़ोसी और एक प्रमुख शक्ति है। उन्होंने कहाक कि इसलिए, चीन के साथ चुनौतियां इस दोहरी परिभाषा में फिट बैठती हैं। जयशंकर ने म्यांमार, श्रीलंका और मालदीव के साथ संबंधों की जटिलताओं पर भी चर्चा की और बताया कि हालांकि इन रिश्तों में उतार-चढ़ाव देखा गया है, लेकिन ये क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग के लिए महत्वपूर्ण हैं।

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