जीवन-निर्माता है पुरुष

वास्तव में, जैसे महिला दिवस महिलाओं के अधिकारों, उनके योगदान, और समानता को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है, वैसे ही पुरुष दिवस भी पुरुषों के योगदान, उनके स्वास्थ्य और उनके समक्ष आने वाली समस्याओं पर ध्यान आकर्षित करने के लिए बेहद जरूरी हो गया है। अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस को मनाने का उद्देश्य न केवल पुरुषों के सकारात्मक पहलुओं को पहचानना है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि समाज में लैंगिक समानता और समावेशिता की दिशा में कदम बढ़ाए जाएं।आज का पुरुष सिर्फ खुद को नहीं बल्कि महिलाओं के साथ कदम मिलाकर आगे बढ़ता है। वह यह सुनिश्चित कर रहा है कि उन्हें भी आगे बढ़ने के समान अवसर मिलें व उन्हें किसी भी भेदभाव का सामना न करना पड़े। यह परिवर्तन आज सभी इंडस्ट्री जैसे मीडिया, हॉस्पिटैलिटी, बैंकिंग, उद्योग, व्यापार आदि में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है, जहां महिलाएं शीर्ष पदों पर काम कर रही हैं। सिर्फ यही नहीं पुरुषों को अब महिलाओं के नेतृत्व में कार्य करने में भी झिझक नहीं महसूस होती। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इस दिवस को मान्यता देते हुए इसकी आवश्यकता को बल दिया और पुरजोर सराहना एवं सहायता दी है। एक तरफ जहां महिलाएं सशक्त हो रही हैं, वहीं पुरुषों की भी छवि समाज में बदलती जा रही है। कुछ वर्ष पूर्व की बात करें तो पुरुषों को लेकर समाज में ढेरों रुढ़िवादी विचार थे, महिलाओं केे शोषण एवं उसे दोयम दर्जा दिये जाने का आरोप उस पर लगता रहा है। जिनमें अब तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं। पुरुष एक ऐसा शब्द जिसके बिना किसी के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। नारी जहां जीवन को परिपूर्णता देती है तो वहीं पुरुष ही इसका आधार है। नारी जन्मदात्री है तो पुरुष जीवन-निर्माता है।

अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस का महत्व

अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस का उद्देश्य पुरुषों को अपनी भूमिका, जिम्मेदारियां और उनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूक करना है। जबकि यह दिन पुरुषों के स्वास्थ्य, कल्याण, और सकारात्मक सामाजिक योगदान पर चर्चा करने का अवसर प्रदान करता है, यह पुरुषों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित करता है। पुरुषों को अक्सर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर चर्चा करने, और किसी प्रकार के शोषण या उत्पीड़न के बारे में बात करने में कठिनाई होती है, और यही कारण है कि इस दिन का आयोजन करना जरूरी हो गया है। भारतीय समाज में “मर्द को दर्द नहीं होता” या फिर जब कोई पुरुष रोता है तो ‘मर्द बनो और रोना बंद करो’ जैसी बातें बोली जाती हैं। पिछले कई सालों से पुरुषों की समाज में संघर्षशील व कठोर छवि को प्रस्तुत किया गया है। लेकिन मुख्य सवाल है कि आखिर मर्द या पुरुष हैं कौन? जो घोड़े दौड़ाता है, शिकार करता है, या फिर जो अच्छे सूट में, चमचमाती कार में ऑफिस जाता है और घर पर भी अपनी तारीफ ही सुनना चाहता है। एक रौबदार छवि, आक्रांता, शोषक, असंवेदनशीलता एवं अत्याचारी वाली उसकी छवि क्या वास्तविक छवि है? असल में पिछले कुछ वर्षों में मर्द की परिभाषा में एक उदारवादी एवं संवेदनशील बदलाव देखने को मिला है। अब पुरुष या मर्द वो नहीं जो हमें अब तक पूर्वाग्रही रूढ़िवादी मानसिकता बताती हैं, बल्कि उससे कहीं ज्यादा वो है ऐसा आधारस्तंभ है जो जिम्मेदारी उठाता है, जो सिर्फ चमकदार जूते एवं कपड़े ही नहीं पहनता बल्कि समाज व देश को भी चमकदार बनाने के लिए आगे आता है, परिवार की जिम्मेदारियों को ढोता है। 

पुरुष दिवस की इस वर्ष की थीम: “सकारात्मक पुरुष रोल मॉडल”

इस वर्ष की थीम, “सकारात्मक पुरुष रोल मॉडल”, पुरुषों के जीवन में उन पुरुषों के योगदान को पहचानने और बढ़ावा देने पर जोर देती है जो समाज में सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं। यह थीम समाज में अच्छे पुरुष रोल मॉडल्स को सम्मानित करने का एक प्रयास है, जो अपने कार्यों, विचारों और नेतृत्व से दूसरों के लिए प्रेरणा बनते हैं। इन पुरुषों के आदर्श विचारों और कार्यों से समाज में सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं और यह संदेश देता है कि सशक्त, समझदार और संवेदनशील पुरुषों का समाज में महत्वपूर्ण स्थान है। अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस का उद्देश्य सिर्फ पुरुषों के योगदान को मान्यता देना नहीं है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि समाज में पुरुषों के साथ भी सम्मानजनक और समान व्यवहार किया जाए। यह दिन पुरुषों की समस्याओं, उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने, और उनके सकारात्मक रोल मॉडल्स को प्रोत्साहित करने का एक बेहतरीन अवसर है। जैसे महिला दिवस ने महिलाओं के अधिकारों और योगदान को सम्मानित किया, वैसे ही पुरुष दिवस पुरुषों के अधिकारों और जिम्मेदारियों को उजागर करने के लिए महत्वपूर्ण बन गया है।

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