यूपी के मदरसा छात्र पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में कामिल और फाजिल पाठ्यक्रमों के लिए पंजीकृत करीब 25,000 छात्रों के सामने अनिश्चितता की स्थिति है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि मदरसा अधिनियम उच्च शिक्षा की डिग्री को विनियमित नहीं कर सकता है। इसके बाद पीड़ित छात्रों के एक ग्रुप ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है। कोर्ट ने उन्हें मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों में स्थानांतरित करने की उनकी याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति जताई। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया। दोनों सरकार से छात्रों की याचिका पर जवाब मांगा है।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले वर्ष मदरसा अधिनियम को बरकरार रखते हुए कहा था कि अधिनियम के प्रावधान जो फाजिल और कामिल जैसी उच्च शिक्षा की डिग्रियों को विनियमित करने का प्रयास करते हैं, असंवैधानिक हैं। सुप्रीम अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि मदरसा अधिनियम के प्रावधान यूजीसी अधिनियम के साथ टकराव करते दिखते हैं। इसे सूची-I की प्रविष्टि 66 के तहत अधिनियमित किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में मदरसा छात्रों की ओर से अपना पक्ष रखा गया। इसमें कहा गया कि कामिल और फाजिल पाठ्यक्रम करने वाले याचिकाकर्ताओं सहित पीड़ित छात्रों की कोई गलती नहीं है। याचिकाकर्ताओं सहित 25,000 से अधिक छात्र केवल नौकरी और रोजगार पाने की उम्मीद के साथ कामिल और फाजिल पाठ्यक्रमों के माध्यम से उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।

याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ताओं सहित छात्रों को शायद यह पता नहीं है कि यूपी मदरसा बोर्ड के पास कामिल और फाजिल की डिग्री देने का अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि अगर उन्हें पता होता कि डिग्री देने के मदरसा बोर्ड के अधिकार को मान्यता नहीं दी गई है तो वे शायद इन कोर्स को आगे पढ़ने का विकल्प नहीं चुनते।

याचिका में कहा गया है कि कामिल और फाजिल डिग्री पाठ्यक्रमों में उच्च डिग्री प्राप्त करने वाले कई छात्र दूसरे वर्ष के हैं। इनमें से कई अंतिम वर्ष में हैं। उन्होंने इन पाठ्यक्रमों को करने के दौरान अपना समय, पैसा और अन्य संसाधनों का ईमानदारी से निवेश किया है। उन्हें यह उम्मीद थी कि उन्हें अच्छी नौकरियां और रोजगार मिलेंगे। इससे अंत में देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में सहायता मिलेगी।

याचिका पर सुनवाई के बाद मदरसा की कामिल और फाजिल डिग्री को असंवैधानिक घोषित किए जाने के बाद छात्रों को समायोजित करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार नोटिस जारी किया। इससे पहले 5 नवंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को विनियमित करने वाले 2004 के उत्तर प्रदेश कानून की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था। इस आदेश में कहा गया कि किसी कानून को केवल धर्मनिरपेक्षता के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व में दिए गए आदेश को पलट दिया। हाई कोर्ट के आदेश में ऐसे संस्थानों को बंद करने को कहा गया था। मदरसा छात्रों को प्रदेश के औपचारिक स्कूलों में समायोजित करने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने कहा था कि किसी कानून को तभी असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है, जब वह विधायी क्षमता से परे हो या मौलिक अधिकारों या किसी अन्य संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन करता हो।

सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की सूची III की प्रविष्टि 25 का हवाला देते हुए फैसला सुनाया था कि उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 राज्य के विधायी अधिकार के अंतर्गत आता है। हालांकि, कोर्ट ने माना कि उच्च शिक्षा को विनियमित करने वाले कानून के प्रावधान, विशेष रूप से फाजिल और कामिल की डिग्री, राज्य विधायी क्षमता से परे हैं।

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