लखनऊ। राजधानी में मकान होने के बावजूद भी लखनऊ विश्वविद्यालय के आवास में रह रहे शिक्षकों के लिए पिछले दिनों निकाला गया रजिस्ट्रार का नोटिस अब उनके लिए ही सिर दर्द बन गया है,रजिस्ट्रार ने ऐसे सभी लोगों से हलफनामा मांगा था,जिनके लखनऊ में आवास है,लेकिन अल्टीमेटम देने के 3 महीने से अधिक समय बीत गए, इस मामले में वह आगे कार्रवाई करने से गुरेज कर रहे है।
तीन से चार लाख रुपए तक वेतन पा रहे प्रोफेसर के लिए पिछले दिनों जनवरी में जारी किया गया लखनऊ विश्वविद्यालय रजिस्ट्रार डॉ विनोद कुमार सिंह का आदेश अब उन्हें ही मुंह चिढ़ा रहा है है।दरअसल तीन से चार लाख रुपए तक वेतन पाने प्रोफेसर की राजधानी में राजधानी में कोठियां,डीलक्स फ्लैट और पेंटहाउस है,
इनके जरिए वे मोटा किराया भी कमा रहे है और सस्ती दरों पर लखनऊ विश्वविद्यालय की कोठियों पर भी कब्जा जमाए हुए है।जनवरी माह में जब रजिस्ट्रार ने अपने आदेश के जरिए उन सभी ऐसे प्रोफेसर से हलफनामा मांगा तो हड़कंप मच गया,बताते है कि देर शाम तक स्टाफ क्लब में इसको लेकर चर्चाएं होती रही और हलफनामा देने से बचने के लिए मास्टर जुगत सोचते रहे
मजेदार बात यह थी कि यह हलफनामा लखनऊ विश्वविद्यालय के निर्माण अधीक्षक डीके सिंह के कार्यालय को ही सौपा जाना था,ऐसे में पहले तो कई प्रोफेसरों ने उन्हें साधने की कोशिश की और बाद में उल्टा पुल्टा बहाना बनाकर प्रार्थना पत्र दे डाला।उसी की देखा देखी और लोगों के लिए भी रास्ता खुल गया।सूत्र बताते है कि लखनऊ विश्वविद्यालय के कई प्रोफेसर की कोठियां,विला और फ्लैट गोमती नगर विस्तार योजना,शहीद पथ गोमती नगर,कपूरथला, गुडंबा, रिंग रोड पर है,
जहां से मोटा किराया भी आता हैं,लेकिन अधिकतर ऐसे प्रोफेसर विश्वविद्यालय में अपनी कोठी,फ्लैट या विला को सेमी फिनिश्ड बताकर कुछ महीने और रहने की मोहलत मांग रहे है,यही नहीं रिटायर हो चुके मास्टर भी अपनी कोठियां में जमे हुए हैं,मजेदार बात यह है कि कई मास्टरों के फ्लैट तो खुद निर्माण अधीक्षक डीके सिंह के आवास के इर्द-गिर्द है,लेकिन इसके बावजूद भी संबंध निभाने के चलते वह कुछ बोल नहीं पा रहे है।नए नियुक्त हुए करीब डेढ़ सौ से अधिक शिक्षक या तो किराए में रह रहे है या फिर रोजाना रजिस्ट्रार डॉ विनोद सिंह के कार्यालय के चक्कर लगा रहे है,पत्थर पर शोध करने वाले विभाग की एक शिक्षिका तो बाकायदा रजिस्ट्रार साहब से गुहार लगाने उनके कमरे में पहुंची,
इस मामले में जल्द ही कुछ कार्रवाई करने की उम्मीद जताई।सवाल यह है कि जब लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन यह जान रहा है, कि ऐसे तमाम प्रोफेसर की सैलरी से होम लोन का मोटा अमाउंट कट रहा है,तो ऐसे में वह हलफनामे का इंतजार ही क्यों कर रहा है?उसे होम लोन के हिसाब से नाम के हिसाब से नोटिस जारी करनी चाहिए और जल्द से जल्द खाली करने का अल्टीमेटम देना चाहिए।महिला शिक्षकों को सबसे ज्यादा उम्मीद
लखनऊ विश्वविद्यालय में पिछले दो वर्षों में करीब 200 से अधिक शिक्षकों की तैनाती हुई है,उनमें से 45 से अधिक ऐसी शिक्षिकाएं है,जो शहर से बाहर की है, और वे सिंगल है,वे चाहती है कि लखनऊ विश्वविद्यालय स्थित आवास उन्हें मिल जाए, जिससे कि वह बेखौफ होकर अपने कैपस में रह सके,यही नहीं एक शिक्षक तो बताते है कि एचआरए देने से किस प्रकार न केवल उनका घाटा हो रहा है,बल्कि लविवि का भी नकसान हो रहा है,इसके बावजूद भी रजिस्ट्रार डॉक्टर विनोद कुमार सिंह ऐसे शिक्षकों पर कार्रवाई नहीं कर रहे है,जिनके पास राजधानी में मकान और प्लाट भी है और विश्वविद्यालय में भी कोठी है।