परियों का देश कहलाता है खैट पर्वत

देवभूमि कहा जाने वाला भारतीय राज्य उत्तराखंड अनेक रहस्यों से भरा हुआ है, यहाँ ऐसे सैकड़ों मंदिर मिल जायेंगे जिनके रहस्य किसी को भी चौंका सकते है। उत्तराखंड को देवताओं की भूमि कहा जाता है, यहाँ के लोगों में भगवान के प्रति सबसे ज्यादा आस्था देखने को मिलती है। सनातन काल से भारत की संस्कृति और अध्यात्म की चर्चा सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि दुनिया के हर कोने में सुनाई देती रहती है। उत्तराखंड के पहाड़ों ऐसी कई अनोखी जगहें हैं जिनके बारे में सुनने के बाद कई लोग कुछ देर के लिए चकित हो जाते हैं।

उत्तराखंड के पहाड़ों में मौजूद खैट पर्वत के बारे में भी सुनने के बाद कई लोग चकित हो जाते हैं। उत्तर भारत के ऊंचे-ऊंचे और हसीन पहाड़ों में ऐसी कई रहस्यमयी जगहें हैं, जो बेहद ही अचंभित कर देती हैं। खैट पर्वत, उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल ज़िले के घनसाली में है. यह समुद्र तल से करीब 10,500 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है, यह गढ़वाल इलाके में पड़ने वाले थात गांव से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि इस खैट पर्वत पर सनातन काल से परियां निवास करती हैं। कई लोगों का यह भी मानना है कि आज भी लोगों को अचानक से परियों के दर्शन हो जाते हैं।

खैट पर्वत के बारे में एक अन्य रहस्यमयी कहानी है कि यहां साल के हर दिन फल और फूल खिलते रहते हैं, लेकिन यहां मौजूद फल और फूलों को दूसरी जगह ले जाने की कोशिश करता है वे तो तुरंत खराब हो जाते हैं।खैट पर्वत की रहस्यमयी कहानियों के बारे में यह भी कहा जाता है कि यहां कुछ फल और फूल अपने आप ही पनपने लगते हैं। किंवदंती के अनुसार यहां 9 परियां रहती हैं। खैट पर्वत के बारे में माना जाता है कि यहां शक्तियों का वास है। स्थानीय लोगों के अनुसार पर्वत पर मौजूद परियों के वजह से आसपास का इलाका सुरक्षित रहता है।

खैट पर्वत के पास मौजूद थात गांव से लगभग 5 किमी की दूरी पर खैटखाल मंदिर है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां रात के समय परियां आती हैं और सुबह होते ही पर्वत की तरफ चली जाती हैं। मान्यता है कि इस इस पर्वत पर परियों का वास है, उत्तराखंड में परियों को गढ़वाली बोली में “आंछरी” कहा जाता है। पूरे उत्तराखंड में इन परियों को “वन देवियों” के रूप में पूजा जाता है। Khait Parvat, टिहरी जिले के घनस्याली में स्थित थात गाँव के नजदीक पड़ता है। माना जाता है की इस पर्वत पर अधिक शोर करना और चमकीले कपडे पहन कर जाना नहीं जाना चाहिए, अन्यथा परियां उन्हें अपने साथ ले जाती हैं।

सुंदरता से भरपूर है खैट पर्वत

खूबसूरती के मामले में खैट पर्वत किसी जन्नत से कम नहीं है। परियों का देश के नाम से फेमस इस पर्वत की खूबसूरती परियों जैसी ही लगती है। चारों तरफ हरियाली, हजारों किस्म के फल और फूल इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाने का काम करते हैं। मानसून के समय इस जगह की खूबसूरती चरम पर होती है। यह पर्वत हर समय बादलों से ढका रहता है। बता दें कि प्रकृति प्रेमियों के लिए खैट पर्वत किसी जन्नत से कम नहीं है. यहाँ चारों तरफ आपको बस हरियाली ही हरियाली नजर आती है. स्थानीय लोगों के अनुसार यहाँ की एक ख़ास बात यह है कि यहाँ लहसुन और अखरोट की खेती अपने आप ही हो जाती है।

एक कहानी का उल्लेख मिलता है, इस कहानी के अनुसार टिहरी जिले के चोंदाणा गाँव में आशा रावत नामक एक जमीदार रहता था। आशा रावत की सात पत्नियाँ होने के बावजूद उसकी कोई संतान नहीं थी, उसे हमेशा एक ही बात सताती रहती थी की मेरे बाद मेरी जमीन-जायदाद का वारिश कौन होगा। तब आशा रावत ने आठवीं शादी करने की सोची और थात गाँव के पंवार परिवार में आठवीं शादी की। इस शादी के बाद आशा रावत के घर में 9 कन्याओं का जन्म हुआ, जमीदार ने इन कन्याओं का नाम आशा रौतेली, बासा रौतेली, इंगला रौतेली, गर्धवा रौतेली, सतेई रौतेली, बरदेई रौतेली, कमला रौतेली, देवा रौतेली और बिगुला रौतेली रखा। माना जाता है कि इन कन्याओं के पास दैवीय शक्तियां थी। जन्म के मात्र 6 दिन में ही ये कन्याएं चलने लगी और केवल 6 वर्ष की आयु में अपने पिता से आभूषण और नए कपड़ों की मांग करने लगीं।

जब इन कन्याओं की आयु 12 वर्ष के करीब हुई तो इनका यौवन खिलने लगा, उसी समय गाँव में एक धार्मिक आयोजन (मंडाण) किया जा रहा था। ये सभी 9 बहने भी सज धज कर वहां गयी और गढ़वाली जागरों की धुन पर नाचने लगी। शाम हो गयी तो उन्होंने अपने घर की तरफ देखा वहां अँधेरा नजर आ रहा था जबकि Khait Parvat रंग बिरंगे फूलों से चमक रहा था. यह देखकर सभी 9 बहनें Khait Parvat की और चल दी। रास्ते में वे अपने मामा के गाँव थात पहुंचे वहां भी अँधेरा था और Khait Parvat पर फूल चमक रहे थे, वहां से वो आगे बढे और Khait Parvat पहुँच गए।

उस समय Khait Parvat पर कैटव नामक राक्षस का निवास था, यह राक्षस कन्याओं को कोई नुकसान न पहुंचाए इसलिए श्री कृष्ण ने अपनी शक्तियों से कैटव की मनस्थिति परिवर्तित कर दी और तब कैटव ने उन कन्याओं को अपनी बहन मानते हुए उनकी खूब सेवा की। यहाँ से ये 9 कन्याएं पीड़ी पर्वत पहुंची, जहाँ श्री कृष्ण ने उन्हें “हर” (अपने वश में करना) लिया। तब से ये 9 दैवीय शक्तियों वाली कन्याएं khait Parvat और पीढ़ी पर्वत पर पूजी जाती हैं और माना जाता है कि ये कन्याएं अभी भी यहाँ विचरण करती हैं। और जो कोई भी आदमी यहाँ जाता है और उनको पसंद आ जाता है तो वो उसे हर लेती हैं और उसे अपने लोक ले जाती हैं।

यहां जून में लगता है मेला

आपको बता दें कि इस गांव में जून के महीने में मेले का आयोजन किया जाता है। हरियाली से घिरा ये गांव आपका तनाव दूर करने में सहायक हो सकती है। वहीं अगर आप चाहें तो यहां पर कैंपिंग भी कर सकते हैं। हालांकि इस बेहद खूबसूरत गांव में शाम को 7 बजे के बाद कैंप से बाहर निकलने की परमिशन नहीं है। इसके अलावा यहां पर म्यूजिक बजाने पर भी रोक है, माना जाता है कि परियों को शोर-शराबा पसंद नहीं है।

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