देश सेवा के लिए समर्पित थी कस्तूरबा गांधी

भारत से लेकर विदेशों तक महात्मा गांधी की लोकप्रियता आज भी बरकरार है। उनका देश के लिए संघर्ष में उनकी पत्नी कस्तूरबा ने भी बराबर से योगदान दिया है। शायद अगर कस्तूरबा उनके जीवन में ना आईं होती तो गांधी जी महात्मा न बन पाते। कस्तूरबा एक संपन्न परिवार की बेटी थीं, जिनकी कम उम्र में ही गांधी जी से शादी हो गई और उसके बाद उनका जीवन संघर्षों में गुजरा। गांधी जी के साथ वह हमेशा खड़ी रहीं, देश सेवा के काम में जुट गईं। हालांकि गांधी की पत्नी होने के अलावा वह अपने व्यक्तित्व के कारण देश की बा बन गईं। आज ही के दिन ‘बा’ दुनिया से विदा हो गई थीं।

गाँधी जी की पत्नी औऱ महान स्वतंत्रता सेनानी कस्तूरबा गांधी का जन्म 11 अप्रैल, 1869 को गुजरात के काठियावाड़ जिले में एक संपन्न व्यापारी परिवार में हुआ था। जब कस्तूरबा सिर्फ 13 वर्ष की थीं। तभी उनका विवाह गुजरात के पोरबंदर में ‘मोहनदास करमचंद गांधी’ से हुआ। कस्तूरबा, गांधी जी से आयु में कुछ माह बढ़ी थी। अल्प आयु में विवाह होने के कारण कस्तूरबा गांधी की औपचारिक शिक्षा पूर्ण नहीं हो सकी। हालांकि, बाद में उन्होंने घर पर रहकर ही शिक्षा प्राप्त की। किंतु गांधी जी अपनी वकालत की पढ़ाई करने के लिए विदेश गए और अपनी शिक्षा पूर्ण की। 

वर्ष 1904 में कस्तूरबा गांधी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी के साथ ही हुई। 1915 में जब गांधी जी भारत वापस लौटे तो कस्तूरबा ने उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर कई राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लिया था। वर्ष 1913 में ब्रिटिश हुकूमत का पुरजोर विरोध करने के चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा। इसके बाद वह स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने हेतु कई बार जेल गई और उन्हें ब्रिटिश हुकूमत द्वारा कड़ा दंड भी दिया गया। 

ऐसा माना जाता है कि कस्तूरबा ने भी सोचा होगा कि जब उनके पति मोहनदास गाँधी विदेश से पढ़कर वापस आएंगे तो वह आराम की जिंदगी गुजारेंगी। लेकिन जब गांधीजी ने खुद को देश सेवा में लगाया। भारत की आजादी के लिए आंदोलनों में शामिल हुए, कई बार जेल गए। इस पर कस्तूरबा भी उनके कदम से कदम मिलाकर चलती रहीं। स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में गांधी जी के साथ रहीं। जब गांधी जी धरना प्रदर्शन के दौरान उपवास करते तो कस्तूरबा उनकी देखभाल करतीं।

भारत में क्रूर अंग्रेजी हुकूमत को देखते हुए कस्तूरबा ने खुद भी आगे आकर स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अत्याचार पर पहली बार ध्यान कस्तूरबा गांधी का ही गया था। उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई। उन्हें तीन महीने की जेल की सजा हुई। लेकिन जेल में वह लोगों को प्रार्थना का महत्व सिखाया करतीं। कैदियों के दुख दर्द को सुनती, समझतीं। उनके इस मातृत्व भावना के कारण ही देशवासी उन्हें ‘बा’ कहकर संबोधित करने लगे।

भारत में क्रूर अंग्रेजी हुकूमत को देखते हुए कस्तूरबा ने खुद भी आगे आकर स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अत्याचार पर पहली बार ध्यान कस्तूरबा गांधी का ही गया था। उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई। उन्हें तीन महीने की जेल की सजा हुई। लेकिन जेल में वह लोगों को प्रार्थना का महत्व सिखाया करतीं। कैदियों के दुख दर्द को सुनती, समझतीं। उनके इस मातृत्व भावना के कारण ही देशवासी उन्हें ‘बा’ कहकर संबोधित करने लगे।

भारत में क्रूर अंग्रेजी हुकूमत को देखते हुए कस्तूरबा ने खुद भी आगे आकर स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अत्याचार पर पहली बार ध्यान कस्तूरबा गांधी का ही गया था। उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई। उन्हें तीन महीने की जेल की सजा हुई। लेकिन जेल में वह लोगों को प्रार्थना का महत्व सिखाया करतीं। कैदियों के दुख दर्द को सुनती, समझतीं। उनके इस मातृत्व भावना के कारण ही देशवासी उन्हें ‘बा’ कहकर संबोधित करने लगे।

Related Articles

Back to top button