Trending

कामिका एकादशी का व्रत 13 जुलाई को, दीर्घायु और मोक्ष की होगी प्राप्ति

कामिका एकादशी का व्रत गुरुवार 13 जुलाई को है। श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को कामिका एकादशी के नाम से जानते हैं। कामिका एकादशी व्रत के करने से व्यक्ति को दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति होती है और समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों द्वारा किया जा सकता है। कामिका एकादशी की कथा भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी। इससे पूर्व मुनि वशिष्ठ ने राजा दिलीप को सुनाई थी, यह कहना है महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य।

दरअसल, हिन्दू सनातन संस्कृति में हर दिन का अपना एक विशेष महत्व है। गुरुवार इस मायने में एकादशी आने से कुछ अधिक महत्व का हो गया है। कामिका एकादशी व्रत के विषय में महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने बताया एक वर्ष में 24 एकादशी होती हैं, लेकिन जब अधिकमास (मलमास) आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। श्रावण मास कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि 12 जुलाई बुधवार शाम छह बजे शुरू होगी और 13 जुलाई गुरुवार शाम छह बजकर 25 मिनट पर समाप्त होगी।

उन्होंने बताया है कि सूर्योदय व्यापिनी एकादशी तिथि 13 जुलाई गुरुवार को होगी। इसलिए कामिका एकादशी व्रत 13 जुलाई गुरुवार को होगा और कामिका एकादशी व्रत का पारण 14 जुलाई शुक्रवार द्वादशी तिथि के दिन सुबह पांच बजकर 50 मिनट से सुबह आठ बजकर 26 मिनट तक किया जा सकता है। पारण के बाद किसी जरूरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर कुछ दान-दक्षिणा जरूर दें।

उन्होंने कहा है कि इस दिन जो व्यक्ति दान करता है वह सभी पापों का नाश करते हुए परमपद प्राप्त करता है। इस दिन ब्राह्मणों एवं जरूरतमंद को मिष्ठानादि, दक्षिणा सहित यथाशक्ति दान करें। एकादशी के दिन “ॐ नमो वासुदेवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए, हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का मात्र धार्मिक महत्त्व ही नहीं है, इसका मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के नजरिए से भी बहुत महत्व है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित होता है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है।

एकादशी व्रत पूजन विधि:

शारीरिक शुद्धता के साथ मन की पवित्रता का भी ध्यान रखना चाहिए, एकादशी के व्रत को विवाहित अथवा अविवाहित दोनों कर सकते हैं। एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही शुरू हो जाता है। दशमी तिथि को सात्विक भोजन ग्रहण कर अगले दिन एकादशी पर सुबह जल्दी उठें और शुद्ध जल से स्नान के बाद सूर्यदेव को जल का अर्घ्य देकर व्रत का संकल्प लें। पति-पत्नी संयुक्त रूप से लक्ष्मीनारायण जी की उपासना करें।

पूजा के कमरे या घर में किसी शुद्ध स्थान पर एक साफ चौकी पर श्रीगणेश, भगवान लक्ष्मीनारायण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद पूरे कमरे में एवं चौकी पर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के कलश (घड़े ) में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें, उसमें उपस्थित देवी-देवता, नवग्रहों, तीर्थों, योगिनियों और नगर देवता की पूजा आराधना करनी चाहिए।

इसके बाद पूजन का संकल्प लें और वैदिक मंत्रों एवं विष्णुसहस्रनाम के मंत्रों द्वारा भगवान लक्ष्मीनारायण सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाह्न, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधितद्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, तिल, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्रपुष्पांजलि आदि करें। व्रत की कथा करें अथवा सुने तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।

एकादशी के दिनों में किन बातों का खास ख्याल रखें।

एकादशी के दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इन दिनों शराब आदि नशे से दूर रहना चाहिए। व्रत रखने वालों को इस व्रत के दौरान दाढ़ी-मूंछ और बाल नाखून नहीं काटने चाहिए। व्रत करने वालों को पूजा के दौरान बेल्ट, चप्पल-जूते या फिर चमड़े की बनी चीजें नहीं पहननी चाहिए। काले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए। किसी का दिल दुखाना सबसे बड़ी हिंसा मानी जाती है। गलत काम करने से आपके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम होते हैं।

Related Articles

Back to top button