Kabir ke Dohe सदियों पहले कबीर द्वारा लिखे गए दोहे आज भी प्रशंसनीय बने हुए हैं। कबीर के दोहे हमें जीवन जीने का तरीका सिखाते हैं। इन दोहों का अनुसरण करने पर व्यक्ति के जीवन को देखने के नजरिए में परिवर्तन आता है। आइए पढ़ते हैं कबीर दास के कुछ के कुछ ऐसे ही दोहे जो व्यक्ति को जीवन में सही राह दिखा सकते हैं।
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Kabir ke Dohe: कबीर दास जी ने अपने दोहो द्वारा उस समय के समाज में व्याप्त कई तरह की कुरीतियों जैसे अंधविश्वास, छुआछूत, जात पात, ऊंच-नीच आदि पर प्रहार किया था। कबीर जी के दोहे समाज को एक आईना दिखाने का काम करते हैं।
कबीर के दोहे
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय।।
अर्थ – हर व्यक्ति केवल दुख के समय में या किसी मुसीबत में फसने के बाद ईश्वर को याद करता है, और सुख के समय में उन्हें भूल जाता है। इस पर कबीर दास जी कहते हैं कि जो यदि सुख में भी ईश्वर को याद करेगा तो उसे दुख ही क्यों होगा।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय।
जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोय।।
अर्थ – हर व्यक्ति की आदत होती है कि वह दूसरे व्यक्ति की कमियां या बुराइयां खोजने में लगा रहता है। इसपर कबीर दास जी कहते हैं कि अगर व्यक्ति अपने मन के अंदर झांक कर देखे तो वह पाएगा कि उससे बुरा कोई नहीं है। यहां वह कहना चाहते हैं कि बुराई सामने वाले में नहीं बल्कि हमारे नजरिए में होती है।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।
अर्थ – कई लोगों को अपने बड़े होने अर्थात अपने गुणों पर बड़ा घमंड होता है। लेकिन जब तक व्यक्ति में विनम्रता नहीं होती उसके इन गुणों का कोई फायदा नहीं हैं। इस बात को कबीर दास ने एक उदाहरण द्वारा समझाया है। जिस प्रकार खजूर का पेड़ बहुत बड़ा होता है लेकिन उससे न तो किसी व्यक्ति को छाया मिल पाती है और न ही उसके फल किसी के हाथ आते हैं।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब-कुछ होए।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए।
अर्थ – आज के इस समय में हर किसी को जल्द-से-जल्द सफलता प्राप्त करने की चाह होती है। इस पर कबीरदास कहते हैं कि धीरज रखने से सब कुछ होता है। भले ही कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचे लेकिन, तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा