
नई दिल्ली। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने पश्चिमी देशों के दोहरे चरित्र की बखिया फिर से उधेड़ी है। उन्होंने लोकतंत्र पर पश्चिम की कथनी और करनी में अंतर को उदाहरण सहित उजागर करते हुए कहा कि उसके पास दो मापदंड पहले भी थे और आज भी हैं। डॉ. जयशंकर ने बेहिचक कहा कि पश्चिमी देश लोकतांत्रिक मूल्यों का समर्थन सही तरीके से नहीं करते। खासकर पड़ोसी देशों में जो ताकतें लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखतीं, उनके प्रति पश्चिम का रवैया अक्सर दोमुंहा होता है। डॉ. जयशंकर ने पाकिस्तान और बांग्लादेश का नाम लिए बिना, पश्चिमी देशों के पुराने रवैये की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देश लोकतंत्र को अपनी विशेषता मानते रहे हैं लेकिन वे विकासशील देशों में गैर-लोकतांत्रिक ताकतों को बढ़ावा भी देते रहे हैं।
डॉ. जयशंकर ने म्यूनिख सिक्यॉरिटी कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘सच कहूं तो एक समय था जब पश्चिम, लोकतंत्र को पश्चिमी देशों की विशेषता मानता था, उसी वक्त विकासशील देशों में गैर-लोकतांत्रिक ताकतों को बढ़ावा देने में लगा हुआ था। और वो अब भी ऐसा करता है।’ मतलब साफ है, पश्चिमी देश अपने यहां तो लोकतंत्र की बात करते हैं, लेकिन अपनी विदेश नीतियों में उसका पालन नहीं करते।
विदेश मंत्री ने कहा कि हर देश की अपनी अलग पहचान होती है। लेकिन लोकतंत्र की चाहत सबकी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत ने आजादी के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई। भारत का समाज शुरू से ही विचार-विमर्श और विविधता में विश्वास रखता है। इसलिए भारत इस क्षेत्र में लोकतंत्र की मिसाल है। उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र के रास्ते पर चलते हुए तमाम चुनौतियों के बावजूद हम लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए प्रतिबद्ध रहे हैं। इस क्षेत्र में ऐसा करने वाले हम लगभग अकेला देश हैं।’
डॉ. जयशंकर ने पश्चिमी देशों से आग्रह किया कि वे पश्चिम से बाहर उभर रहे सफल लोकतांत्रिक मॉडल को स्वीकार करें। उन्होंने कहा कि अगर दुनियाभर में लोकतंत्र को मजबूत करना है, तो पश्चिमी देशों को इन अलग-अलग अनुभवों से सीखना होगा और उनका समर्थन करना होगा। उन्होंने कहा, ‘अगर आप वाकई चाहते हैं कि लोकतंत्र अंततः प्रबल हो, तो यह महत्वपूर्ण है कि पश्चिम भी पश्चिम के बाहर के सफल मॉडलों को अपनाए।’