संगम स्नान के पश्चात अक्षयवट के दर्शन आवश्यक

अक्षयवट का पौराणिक महत्व अत्यधिक है, और यह तीर्थराज प्रयागराज में श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। मान्यता के अनुसार, संगम स्नान के बाद इस 300 वर्ष पुराने वृक्ष के दर्शन करने से ही स्नान का फल मिलता है, जिसके कारण श्रद्धालु और साधु संत इसे अनिवार्य रूप से देखते हैं।

महाकुंभ 2025 के मद्देनजर, योगी सरकार प्रयागराज के तीर्थों का कायाकल्प करने में जुटी हुई है। इसके तहत, अक्षयवट के सौंदर्यीकरण के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना बनाई गई है, जिससे श्रद्धालुओं को कुंभनगरी की भव्यता का अनुभव हो सके। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस परियोजना की प्रगति को लेकर तेजी लाने के निर्देश दिए हैं, ताकि महाकुंभ के दौरान यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए अक्षयवट आस्था का प्रमुख केंद्र बन सके।

इस परियोजना के तहत, सरकार ने पर्याप्त बजट का ऐलान किया है, जिससे अक्षयवट के चारों ओर के क्षेत्र का विकास किया जाएगा और इसे और अधिक आकर्षक बनाया जाएगा। इससे श्रद्धालुओं को न केवल धार्मिक अनुभव मिलेगा, बल्कि उन्हें यहां की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत का भी अनुभव होगा।

अक्षयवट का महत्व पौराणिक ग्रंथों और इतिहास में गहराई से जुड़ा हुआ है। प्रभु श्रीराम के वनवास के दौरान भरद्वाज मुनि ने इस वटवृक्ष के महत्व को बताया था, और मान्यता है कि माता सीता ने इसे आशीर्वाद दिया था। कहा जाता है कि प्रलय के समय जब पृथ्वी डूब गई, केवल वट का एक वृक्ष बचा, जिसे आज हम अक्षयवट के नाम से जानते हैं।

महाकवि कालिदास की रचनाओं और चीनी यात्री ह्वेनत्सांग के यात्रा वृत्तांत में भी अक्षयवट का उल्लेख मिलता है। अक्षयवट के दर्शन से अक्षय पुण्य की प्राप्ति का विश्वास है। भारत में चार प्रमुख वट वृक्षों को प्राचीन माना जाता है: अक्षयवट (प्रयागराज), गृद्धवट (सोरों), सिद्धवट (उज्जैन) और वंशीवट (वृंदावन)।

मुगलकाल का प्रतिबंध

मुगलकाल में अक्षयवट के दर्शन पर प्रतिबंध था, और ब्रिटिश काल में भी इसे सेना के अधीनता में रखा गया, जिससे इसके दर्शन दुर्लभ हो गए।

योगी सरकार का योगदान

योगी सरकार ने 2018 में अक्षयवट के दर्शन और पूजन के लिए आम लोगों के लिए इसे खोल दिया। सरकार ने कई विकास परियोजनाओं को स्वीकृत किया है, जिसमें कॉरिडोर का कार्य भी शामिल है।

अक्षयवट की अद्भुत शक्ति

स्वामी दिलीप दास त्यागी ने बताया कि मुगल काल में इस वृक्ष को काटने और जलाने के प्रयास किए गए, लेकिन वह हर बार पुनः अपने स्वरूप में लौट आता था। उन्होंने योगी सरकार द्वारा शुरू किए गए सौंदर्यीकरण और विकास कार्यों की सराहना की और कहा कि महाकुंभ के दौरान संगम स्नान के बाद इसके दर्शन से श्रद्धालुओं को पुण्य प्राप्त होगा।

इस प्रकार, अक्षयवट न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसके पीछे एक मजबूत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर भी है।

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