
नई दिल्ली: इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) ने शुक्रवार को रीयूजेबल लॉन्च वीइकल (RLV LEX-02) की सफल लैंडिंग कराई। इसरो ने इसका नाम पुष्पक रखा है। इसे स्वदेशी स्पेस शटल कहा जा रहा है। कर्नाटक में एक रनवे पर इसकी सलफल लैंडिग कराई गई जिसके बाद से यह चर्चा में आ गया। टेस्ट के दौरान, इस रॉकेट को भारतीय वायुसेना के हेलिकॉप्टर से 4.5 किमी की ऊंचाई तक ले जाया गया और रनवे पर ऑटोनॉमस लैंडिंग के लिए छोड़ा गया। इसरो के प्रमुख एस. सोमनाथ ने इस परीक्षण के परिणाम को बहुत अच्छा और सटीक बताया।
इसरो ने X पर पोस्ट कर बताया कि हमने फिर कमाल कर दिया। पुष्पक (RLV-TD) को एक ऊंचाई से छोड़ा गया जिसके बाद उसने रनवे पर वापस आने के लिए सफलतापूर्वक खुद ही रास्ता बना लिया। इसरो ने बताया कि यह परीक्षण अंतरिक्ष से वापस पृथ्वी पर आने वाले रॉकेट के गति और दिशा को नियंत्रित करने का अभ्यास था। अंतरिक्ष विभाग के अनुसार, पुष्पक को वायुसेना के चिनूक हेलिकॉप्टर द्वारा 4.5 किलोमीटर की ऊंचाई तक ले जाया गया और फिर वहां से छोड़ा गया। इस दौरान उसने लैंडिंग के लिए पैराशूट, ब्रेक और पहिए का इस्तेमाल किया।
इसरो ने बताया कि पुष्पक की सफल लैंडिंग 7 बजकर 10 मिनट पर हुई। इससे पहले RLV का 2016 और 2023 में लैंडिंग एक्सपेरिमेंट किया जा चुका है। इसरो का कहना है कि इस टेक्नोलॉजी से रॉकेट लॉन्चिंग अब पहले से सस्ती होगी। अंतरिक्ष में अब उपकरण पहुंचाने में लागत काफी कम आएगी।
किसी भी रॉकेट मिशन में दो बेसिक चीजें होती है। रॉकेट और उस पर लगा स्पेसक्राफ्ट। रॉकेट का काम स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में पहुंचाना होता है। अपने काम को करने के बाद रॉकेट को आम तौर पर समुद्र में गिरा दिया जाता है। यानी इसका दोबारा इस्तेमाल नहीं होता। लंबे समय तक पूरी दुनिया में इसी तरह से मिशन को अंजाम दिया जाता था। यहीं पर एंट्री होती है रियूजेबल रॉकेट की।
रीयूजेबल रॉकेट के पीछे का आइडिया स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अल्ट्रा-एक्सपेंसिव रॉकेट बूस्टर को रिकवर करना है। ताकि, फ्यूल भरने के बाद इनका फिर से इस्तेमाल किया जा सके। दुनिया के सबसे अमीर कारोबारी एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स ने सबसे पहले 2011 में इस पर काम करना शुरू किया था। 2015 में मस्क ने फॉल्कन 9 रॉकेट तैयार कर लिया जो रियूजेबल था।
ISRO का रीयूजेबल लॉन्च वीइकल (RLV) स्पेसएक्स से बिल्कुल अलग है। मिशन के दौरान स्पेसएक्स रॉकेट के निचले हिस्से को बचाता है, जबकि इसरो रॉकेट के ऊपरी हिस्से को बचाएगा जो ज्यादा जटिल होता है। इसे रिकवर करने से ज्यादा पैसों की बचत होगी। ये सैटलाइट को स्पेस में छोड़ने के बाद वापस लौट आएगा। इसरो का स्पेसक्रॉफ्ट ऑटोनॉमस लैंडिंग कर सकता है।
पुष्पक 6.5 मीटर लंबा और 1.75 टन वजनी एयरोप्लेन जैसा स्पेसक्राफ्ट रॉकेट है।एक री-यूजेबल लॉन्चिंग विमान है, पंखो वाले हवाई जहाज जैसा दिखने वाला विमान है।ये अंतरिक्ष तक पहुंच को किफायती बनाने में काफी कारगर साबित हो सकता है।सबसे बड़ी खासियत इसकी यह है कि ये अंतरिक्ष में मलबे को कम करेगा।यह बाद में अंतरिक्ष में किसी सैटलाइट में इंधन भरने या किसी को ठीक करने के लिए वापस लाने में भी मदद करेगा।रॉकेट में दो से चार स्टेज होते हैं, जिसमें से सबसे ऊपरी स्टेज में सबसे महंगे उपकरण लगाए गए।
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