सफेद हाथी बनता इनवेस्टर समिट

टी. धर्मेंद्र प्रताप सिंह

एक तबका प्रदेश में हमेशा से रहा है, जो शासन की प्राथमिकताएं जानने व भारी भरकम बजट का आवंटन देखकर कुटिल मुस्कान मुस्कुराता है और फाइल देख-देख कर मोटे पेट पर हाथ फिराता है इसलिए खोया-पाया का हिसाब-किताब भी रखना बहुत जरूरी हो चुका है, वह भी रिटायरमेंट के पहले। पैसा ऐसी चीज ही है कि जिसके पास होगा, वही तो खर्च करेगा। खूब खर्च हो, घर-घर, गली-गली व डगर-डगर तथा गांव-गांव व नगर नगर खर्च हो। विकास की गंगा बहे, पर बाद में खातों का मिलान जरूर किया जाए, क्योंकि विपक्ष का कहना है कि बताया कुछ और जाता है और होता कुछ और है।

हर सरकार या उसके मुखिया की कुछ प्राथमिकताएं होती हैं, उनको ज्यादा तवज्जो देना ही नौकरशाही का प्रमुख काम होता है। डीएम ऑफिस से लेकर सीएम ऑफिस तक सब इसी कवायद में लगे रहते हैं और नंबर बढ़ाने व नौकरी बचाने के हथियार के रूप में इसका इस्तेमाल करते हुए इसी में व्यस्त होने का दिखावा करते रहते हैं। दूसरे कामों में अगर कुछ भी स्याह-सफेद हो भी जाता है तो ठीकरा प्राथमिकताओं के ही ऊपर फोड़ने की परंपरा हाल के दशकों में दिखाई पड़ी है। इतना ही नहीं, मौके-बेमौके कोरस में गाकर साबित भी करते रहते हैं कि प्राथमिकता तू न गई मेरे मन से। इसे ही नौकरशाही कहते हैं। इसी का फायदा उठाने में लगे रहते हैं शातिर किस्म के लोग।

साल 2017 में पहली बार सूबे की कुर्सी संभालते ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपना एजेंडा साफ कर दिया था। उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश से और एक कदम आगे जाकर उन्नत प्रदेश के रास्ते पर ले जाने के लिए इनवेस्ट यूपी व वन ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी जैसे मंत्र हाथ, आंख, कान व नाक कही जाने वाली ब्यूरोक्रेसी को दिए थे। विजनरी व यशस्वी मुख्यमंत्री से इनवेस्ट यूपी का मंत्र सुनने के बाद एकदम से मंत्रमुग्ध होकर सुध-बुध खो बैठे कुछ लोग और अर्जुन की तरह सिर्फ मछली की आंख ही देखते हुए रोशनाई, रंगाई, पुताई व सफाई में ही करोड़ों उड़ाने लगे हर साल।

दरअसल आदमी तीन तरह के होते हैं, एक वे जो मौका देखकर चौका मारते हैं, दूसरे वे होते हैं, जो चौका लगाने के लिए मौका बनाते हैं। तीसरे वे, जो आखिरी गेंद (साल) करीब देखकर एक हाथ से चौका तो उसी गेंद को जबरन नो बाल घोषित करवाकर दूसरे हाथ से छक्का मारने के लिए मौका बनाते हैं और उसके बाद गेंद, पैड व बैट ही नहीं, बल्कि पिच(फाइल) भी खोदकर पवेलियन जाने की इच्छा रखते हैं। मुख्यमंत्री की प्राथमिकताओं का बुराहाल कर डाला है कुछ लोगों ने। क्या किया जाए, हर बात पर टैक्स लेने से सरकारी खजाना भर ही गया है इतना लबालब कि उफना कर बाहर गिरे झाग (फेना) से ही काम चल जा रहा है ऊंचे पेट वाले सैकड़ों लोगों का?

एक तबका प्रदेश में हमेशा से रहा है, जो शासन की प्राथमिकताएं जानने व भारी भरकम बजट का आवंटन देखकर कुटिल मुस्कान मुस्कुराता है और फाइल देख-देख कर मोटे पेट पर हाथ फिराता है इसलिए खोया-पाया का हिसाब-किताब भी रखना बहुत जरूरी हो चुका है, वह भी रिटायरमेंट के पहले। पैसा ऐसी चीज ही है कि जिसके पास होगा, वही तो खर्च करेगा। खूब खर्च हो, घर-घर, गली-गली व डगर-डगर तथा गांव-गांव व नगर नगर खर्च हो। विकास की गंगा बहे, पर बाद में खातों का मिलान जरूर किया जाए, क्योंकि विपक्ष का कहना है कि बताया कुछ और जाता है और होता कुछ और है।

कहीं ऐसा न होने पाए कि खाया-पीया चार आना और गिलास तोड़ा बारह आना। आखिर पैसा है जनता की गाढ़ी कमाई का इसलिए जागना ही नहीं होगा, बल्कि बराबर जागते भी रहना होगा। अतीत की बात करें तो कैसे-कैसे लोग थे, जो निवेशक का ‘न’ तक नहीं जानते थे और न ही उनकी ऐसी कोई प्राथमिकता ही थी। सात साल से प्रदेश में डबल इंजन की सरकार कवायद में चार चांद लगाने का काम कर रही है, क्योंकि प्रदेश को रेड टेप कल्चर से निकाल कर रेड कॉर्पेट की ओर ले जाया गया है, जिसका सीधा लाभयह मिला है कि निवेशक न सिर्फ दौड़े चले आ रहे हैं, बल्कि भारी भरकम राशि के निवेश के लिए समझौते भी कर रहे हैं।

यह दीगर बात है कि धरातल पर कितने उतर रहे हैं? हवाई अड्डे (कानपुर रोड) को अयोध्या धाम रोड से जोड़ने वाले राजधानी के शहीद पथ के अधिकांश पोल पर इनवेस्टर्स के स्वागत के लिए लगाई गई ई-तितली को ही ले लें। 20-22 किमी लंबे इस पथ पर रोड लाइट के लिए 1000 से अधिक पोल हैं औरसभी पर तीन रंग की झालर लपेटी जाती है तो कभी कुछ और आकर्षक चीजें टांग दी जाती हैं। अधिकांश पोल पर ई-तितली टाइप का कुछ न कुछ लटकाया जाता है हर साल इनवेस्टर समिट के नाम पर। एक तितली भले ही खुले बाजार में हजार-पांच सौ की ही मिल जाए, लेकिन चूंकि सरकारी खजाने से खरीदी गई है तो वह पांच हजार की भी हो सकती है तो 10 हजार की भी।

निर्भर करता है कि बीच में कितने लोग हैं? भले ही ई-रिक्शे, ई-कचरे व जीएसटी के ई-वे बिल की तुलना में यह ई-तितली इस पथ से गुजरने वाले टैक्स पेयर का दिल ई-सिगरेट से ज्यादा सुलगा रही हो, पर देश-विदेश के सैकड़ों निवेशक हर साल आते हैं और यही ई-तितली और स्वागत देखकर दोनों हाथों से खाली किए गए प्रदेश के खजाने को भरने और बेकारी दूर करने का बड़ा वादा करके चले जाते हैं। इस दौरान वे मुंबइया मसाला फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस की दीपिका पादुकोण की तरह जरूर गाते होंगे कि बनके तितली दिल उड़ा, उड़ा, उड़ा है कहीं दूर। हादसे ये कैसे, अनसुने से जैसे, चूमे अंधेरों को कोई नूर ।।

साथ ही यह भी सोचते होंगे कि सरकार होकर भी सरकार बेकारी दूर नहीं कर पा रही है। खुद कुछ लोड लेने के बजाय क्या टोपी पहना रही है बेरोजगारी दूर करने की क्योंकि निजी सेक्टर की भी कुछ सीमाएं हैं? हर साल एक नए ऑस्ट्रेलिया के बराबर आबादी पैदा होगी तो दोनों मिलकर भी बेकारी का बाल बांका नहीं कर पाएंगे। ज्ञात हो कि पथ पर स्ट्रीट लाइट पहले से लगी थीं। हर साल लाखों की लागत से उनके सपोर्ट में कुछ और चीजें टांग दी जाती हैं दिल को दिन की तरह दिन में भी रौशन करने के लिए। हाल ही में फैसला किया गया है कि जनवरी-25 के महाकुंभ के चलते उक्त तितली राजधानी की सीमा के बाहर पैर पसार रही है। अब इसे लखनऊ से लेकर तीर्थराज प्रयाग तक हाईवे के हजारों खंभों पर लटकने की खूबसूरत सजा दी गई है।

हालांकि यह शोध का विषय हो सकता है कि यह बनती किस रिश्तेदार की फैक्ट्री में है और सप्लायर कौन रिश्तेदारहै? इस पर विपक्ष के एक नेता का कहना है कि महाकुंभ के बजट में कुछ पैसे बच गए होंगे, उसे ही ठिकाने लगाने के लिए ई-तितली को सजा दी जा रही है हर खंभे पर सजाने की। इससे क्या तीर्थयात्री भजन ज्यादा मन से गाएंगे या अतिरिक्त व ज्यादा श्रद्धा के साथ प्रयागराज संगम जाएंगे स्नान करने। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि कार्यक्रम के सफल आयोजन को ही निष्पादन मान लेने की गलती की जा रही है बार-बार, बल्कि गलती पर गलती की जा रही है और शासन भी इनाम पर इनाम दिए जा रहा है।

प्रमोशन, जिम्मेदारी के लिए पुरस्कार और अति सम्मान देने से तब तक बचना चाहिए, जब तक यह न तय हो जाए कि आखिर मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) साइन होने के बाद उनके धरातल पर उतरने का प्रतिशत क्या रहा? कहीं ऐसा तो नहीं कि हर बार लाखों करोड़ के औद्योगिक विकास विभाग व उद्योगपतियों के बीच समझौते हो रहे हैं और धरातल पर महज सैकड़ों करोड़ के ही उतर पा रहे हों। बीते दो-तीन वर्षों में दो-तीन बार विपक्ष भी इस बिंदु पर काफी हो-हल्ला मचा चुका है। उसका दावा है कि आंकड़े पेश करने में कोरोना काल की तरह चोरी की जा रही है। याद होगा कि प्रारंभिक दौर में प्रसार भारती द्वारा बताया जाता था कि आज इतने लोग कोरोना की चपेट में आए और इतने ठीक हुए।

चंद हफ्तों में ही हालात जब बेकाबू हो गए तो आंकड़ों की बाजीगरी शुरू हो गई थी कि कितने आज जद में आए, बताना ही बंद कर दिया गयाऔर पूरा फोकस इस बात पर रहने लगा कि आज इतने ठीक हुए? विपक्ष का इनवेस्टर समिट के बारे में भी कुछ ऐसा ही कहना है कि यह तो बताने पर कई करोड़ विज्ञापन पर ही खर्च कर दिए जाते हैं कि इतने हजार या लाख करोड़ के एमओयू साइन हुए हैं। इतना बड़ा इस कंपनी का और इतना बड़ा इस कंपनी का और सबसे बड़ा एमओयू इस कंपनी का, पर यह जानकारी जनहित में जारी करने पर कभी फोकस नहीं रहा कि एक साल में कितने हजार करोड़ के प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुए, कितनों के भूमिपूजन हुए, कितनों के निर्माण पूरे हो गए और कितनों की मशीनें धड़धड़ाने लगीं।

अर्थात् धरातल पर कितने उतरे और कितने लोगों को रोजगार मिला? दूसरी ओर 2024 की इनवेस्टर समिटि के उद्घाटन यज्ञ में प्रधानमंत्री ने जो खाका खींचा था और जो बातें कही थीं, वे तो सारी की सारी सही हैं व भूतो न भविष्यति वाली हैं, पर इसके बाद पीएम व सीएम के विजन को मिशन समझकर धरातल पर उतारने का काम करना होता है कार्यपालिका का। यूं भी कहा जा सकता है कि सफलता और असफलता निर्भर करती है ब्यूरोक्रेसी पर। उन्होंने कहा था कि उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है तो दंगा मुक्त भी हो चुका है।

नेशनल क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक, अपराध घटे हैं। इस कारण बिजनेस कल्चर खूब फूल और फल रहा है। देश में सर्वाधिक हवाईअड्डे हैं तो सर्वाधिक इंटरनेशनल एयरपोर्ट भी। नदियों का संजाल भी है, कई में मालवाहक जहाजों का परिवहन शुरू हो चुका है। देश में सर्वाधिक एक्सप्रेस-वे यहीं हैं, जो कि सर्वाधिक लंबे भी हैं। वेस्टर्न व इस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर भी चालू हो गए हैं। सोलर क्रांति व सख्ती के बाद विद्युत सप्लाई दोगुनी तक हो चुकी है, जिससे उत्पादन की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है और निर्यात भी दोगुना हो चुका है।

रेड कार्पेट में परिवर्तित हो चुका है रेड टेप कल्चर। प्रदेश ने कारोबारी सुगमता सूचकांक में भी छलांग लगाई है। सहूलियत के लिए सिंगल विंडो सिस्टम, निवेश मित्र, सड़क, पानी व बिजली आदि इंफ्रास्ट्रक्चर, ढेर सारी छूटें (पहले मिलती थीं ढेर सारी छूटें) और निवेश सारथी जैसे पोर्टल काम पर हैं। सरकारी मशीनरी का भी पूरा साथ निवेशकों को मिल रहा है। कुल मिलाकर निवेशकों में आशावाद बढा है और भाग लेने वाले उद्योगपतियों की संख्या भी साल दर साल। उक्त बातें जहां फरवरी 2024 की चौथी ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी में प्रधानमंत्री ने कही, वहीं चर्चा नरेंद्र भाई मोदी की गारंटी की भी रही, सो भरोसे से भर उठे हैं देशी निवेशक और बेहतररिटर्न वाली जगह के रूप में देखने लगे हैं विदेशी निवेशक भी।

तीसरे दोनों जगह मजबूत, विश्वास व स्थायित्व से भरी सरकार है। नतीजा यह रहा कि पहली इनवेस्टर समिट साल भर के भीतर ही सरकार और मशीनरी ने 2018 में ही कर डाली थी और दूसरी भी जुलाई 2019 में हो गई थी, लेकिन उसके बाद कोरोना आने के कारण कई साल आयोजन नहीं हो सका, जिसके कारण बीते सात साल के शासन काल में चार ही समिट हो सकी हैं। 2023 में तीसरी समिट हुई थी और चौथी फरवरी 2024 में। लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में पहली दो दिवसीय इनवेस्टर्स समिट-2018 के शुभारंभ पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि प्रधानमंत्री बार-बार कहते हैं कि विकास का कोई विकल्प नहीं हो सकता।

विकास के लिए सुशासन जरूरी है। अगर भारत को महाशक्ति के रूप में विश्व पटल पर लाना है तो वह मार्ग उत्तर प्रदेश से ही जाता है। प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में यूपी को पिछड़े और बीमारू राज्य की श्रेणी से उबारकर देश के समृद्ध राज्य की श्रेणी में खड़ा करने का लक्ष्य लेकर सरकार ने प्रयास शुरू किए हैं। समिट उसी की एक कड़ी है। इसमें एग्रो, फूड प्रोसेसिंग, डेयरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, लघु एवं मध्यम उद्योग, मैन्युफैक्चरिंग, आईटी, टूरिज्म, सिविल एविएशन, हैंडलूम, फिल्म और ग्लोबल एनर्जी आदि पर फोकस रहा। किसी भी राज्य को विकसित करने के लिए सुदृढ़ कानून-व्यवस्था, इंफ्रास्ट्रक्चर, निर्बाध बिजली की आपूर्ति, सड़कें, परिवहन, सिंचाई की बेहतर व्यवस्था, उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए स्वस्थ व शिक्षित मानव संसाधन व स्मार्ट प्रशासनिक व्यवस्था बुनियादी आवश्यकताएं हैं।

इसके साथ ही सरकार की नीतियों को जमीन पर लाने के लिए पारदर्शी और जागरूक व्यवस्था भी जरूरी है। पहली समिट में 4.28 लाख करोड़ के एमओयू साइन हुए थे। बड़ी उपलब्धि से गदगद योगी ने तब कहा था कि यह महज संयोग है कि सरकार ने चार लाख 28 हजार करोड़ के बजट की व्यवस्था की है और इतनी ही रकम यानी 4.28 लाखकरोड़ रुपये के 500 कंपनियों के 1045 एमओयू पर हस्ताक्षर हुए हैं। प्रत्येक एमओयू के क्रियान्वयन का काम खुद अपनी निगरानी में रखेंगे व लगातार समीक्षा करेंगे ताकि निवेशकों को असुविधा न होने पाए।

मुख्यमंत्री ने नई औद्योगिक नीति को रोजगारपरक बताते हुए तीन साल में 40 लाख रोजगार देने की बात भी कही थी। साथ ही देश के प्रमुख उद्योगपतियों को साथ लेकर राज्य निवेश प्रोत्साहन बोर्ड का गठन किया था। बिजनेस रिफॉर्म एक्शन में 20 विभाग जुटे हुए हैं। एक छत के नीचे उद्योगों के अनुमोदन, स्वीकृति और प्रक्रियाओं के त्वरित निस्तारण के लिए डिजिटल क्लियरेंस सिस्टम शुरू किया है। इसकी निगरानी सीएम कार्यालय करेगा। 4.28 लाख करोड़ के एमओयू में से एक साल में मशीनरी सिर्फ 1.26 लाख करोड़ की ही परियोजनाओं का शिलान्यास करवा सकी थी। रोजगार का वादा पूरा करने की बात तो तब शुरू होगी, जब प्रोडक्शन शुरू होगा।

दरअसल पुरानी चीजें धरातल पर उतर नहीं पाती हैं और मशीनरी अगली समिट की तैयारी में जुट जाती है। औद्योगिक विकास विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी की मानें तो दो शिलान्यास समारोह से एक वर्ष के भीतर 371 निवेश परियोजनाएं प्रदेश में स्थापित होनी शुरू हो चुकी हैं। प्रदेश के 75 में से करीब 50 से अधिक जिलों में एक या एक से अधिक औद्योगिक इकाइयां स्थापित हो रही हैं। सरकार का पहला फोकस एमओयू के बाकी बचे प्रोजेक्ट को जमीन पर उतारने का है।

2019 में दूसरी समिट में करीब 14000 प्रोजेक्ट के लिए 10 लाख करोड़ के निवेश समझौते उद्योगपतियों से हुए थे और इससे 33.5 लाख रोजगार मिलने का अनुमान पेश किया गया था। एक आधिकारिक आंकड़े में कहा गया है कि पहली समिट के छह साल बाद भी महज 75 फीसदी ही समझौतों को धरातल पर उतारा जा सका है। यह एक बड़ी समस्या पेश आ रही है, फिर ऐसे में रोजगार मिलने में कितने साल लगेंगे, कुछ साफतौर पर कहा नहीं जा सकता है? इस आशय के आंकड़ों की अनुपलब्धता तो कम से कम यही दर्शाती है।

इसीप्रकार 2023 में संपन्न तीसरी ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट में सरकार ने लक्ष्य से तीन गुणा से अधिक निवेश प्रस्ताव हासिल करने में सफलता पाई थी। उद्घाटन सत्र में योगी ने कहा था कि पीएम के रिफॉर्म, परफॉर्म, ट्रांसफॉर्म के मंत्र व विजन के अनुरूप नए भारत का नया उप्र देश के नए ग्रोथ इंजन की भूमिका निभाने को तैयार है। सरकार ने करीब 33 लाख करोड़ के विभिन्न कंपनियों के साथ 18643 एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे। इससे 92.50 लाख से अधिक युवकों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे।

निवेशकों की सुविधा के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर करने व क्रियान्वयन की निगरानी के लिए शुरू की गई ऑनलाइन प्रणाली इंसेंटिव मैनेजमेंट व कस्टमर रिलेशनशिप मैनेजमेंट पोर्टल (निवेश सारथी) उपयोगी सिद्ध हो रहा है। सिंगल विंडो पोर्टल निवेश मित्र पर 33 विभागों की 406 सेवाएं उपलब्ध हैं। निवेशकों की सहायता के लिए उद्यमी मित्र की तैनाती भी की गई है।

निवेशकों समिट से पूर्व मंत्रियों के समूहों ने 16 देशों के 21 शहरों में रोड शो किए तो देश के दस बड़े शहरों में भी। यह सिलसिला हर बार का है। अभी रोड शो का जो क्रम विभिन्न राज्यों की राजधानियों में मंत्री समूह द्वारा चलाया जा रहा है, वह महाकुंभ के लिए है। ऐसे ही शो ग्लोबल इनवेस्टर समिट के चंद हफ्ते पहले किए जाते हैं।

फूड बास्केट के अलावा भी बहुत कुछ है यूपी में

प्रदेश को भारत की फूड बास्केट के रूप में जाना जाता है, क्योंकि हम खाद्यान्न के अलावा दूध, गन्ना व आलू आदि के उत्पादन में पहले स्थान पर हैं। आईटी, आईटीईएस, डेटा सेंटर, ईएसडीएम, डिफेंस व एयरोस्पेस, इलेक्ट्रिक वाहन, वेयर हाउसिंग, लॉजिस्टिक्स, पर्यटन, टेक्सटाइल, एमएसएमई आदि में निवेश आकर्षित करने के लिए लगभग 25 नीतियां तैयार की गई हैं। यमुना एक्सप्रेस-वे के पास राज्य का पहला मेडिकल डिवाइस पार्क शुरू किया गया है। यमुना एक्सप्रेस-वे क्षेत्र में फिल्म सिटी, ट्वॉय, एपैरल व हैंडीक्रॉफ्ट पार्क और लॉजिस्टिक हब विकसित किए जारहे हैं।

अन्य परियोजनाओं में ग्रेटर नोएडा में आईआईटी जीएनएल, बरेली में मेगा फूड पार्क, उन्नाव में ट्रांस गंगा सिटी, गोरखपुर में प्लास्टिक व गारमेंट पार्क तथा कई फ्लैटेड फैक्ट्री परिसरों को विकसित किया जा रहा है। प्रदेश की मजबूत कानून व्यवस्था, यातायात कनेक्टिविटी और योगी सरकार द्वारा 25 सेक्टर में लाई गई नई नीतियों ने उद्यमियों को प्रदेश में निवेश के लिए सबसे ज्यादा प्रेरित करने का काम किया है। नतीजतन प्रदेश के 18 मंडलों में उद्योग जगत ने बेहतरीन संभावनाएं देखते हुए निवेश करने का फैसला लिया है। सबसे ज्यादा मेरठ मंडल में दिलचस्पी दिखाई दी तो आजमगढ़ मंडल में सबसे कम ।

प्रदेश के टॉप पांच मंडलों में क्रमशः मेरठ, लखनऊ, आगरा, झांसी और वाराणसी के नाम हैं। नोएडा और गाजियाबाद जैसे शहर मेरठ मंडल में आते हैं। सबसे ज्यादा निवेश मिलने के पीछे यह एक बड़ी वजह है। हालांकि तीसरी समिट में निवेशकों का रुझान पूर्वी यूपी की तरफ शिफ्ट होता दिखा था। ज्ञात हो कि सीएम ने सत्ता संभालने के बाद से ही इन दोनों बहुत ही पिछड़े क्षेत्रों पर खास फोकस करते हुए विकास कार्यों को लेकर रणनीति बनाना शुरू किया था। बीते सात साल में दोनों रीजन से न सिर्फ डकैतों, माफिया और रंगदारों के नेटवर्क को ध्वस्त कर दिया गया है, बल्कि बेहतर कनेक्टिविटी व विद्युत आपूर्ति जैसी मूलभूत सुविधाओं को भी विकसित करते हुए पर्यटन उद्योग को भी बढावा दिया गया।

निवेश प्रस्ताव के मामले में झांसी मंडल जहां टॉप-5 में है तो चित्रकूट मंडल टॉप-10 में। इसी प्रकार वाराणसी मंडल पांचवें और गोरखपुर मंडल छठे नंबर पर है। जाहिर है कि उद्योग जगत को योगी शासन में इन इलाकों में व्यवसाय करने में अब कोई परेशानी नहीं दिख रही है। मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार ऐसा औद्योगिक माहौल बना रही है, जिसमें नए व पारंपरिक उद्यम एक-दूसरे के सहायक बनते हुए एक साथ विकसित हो सकें। अधिक से अधिक रोजगार सृजन हो रहा है। स्टार्टअप पॉलिसी में जान फूंकने के लिए कानपुर के आईआईटी,बीएचयू सहित प्रदेश के 30 संस्थानों को लगाया गया है।

प्रदेश के 10 शहरों को स्मार्ट बनाने का काम युद्ध स्तर पर चल रहा है तो मेक इन यूपी व स्टार्टअप के शेर दहाड़ रहे हैं। लखनऊ व कानपुर में मेट्रो कई साल से दौड़ रही हैं तो मेरठ और आगरा की डीपीआर को केंद्र की मंजूरी मिल चुकी है। वाराणसी, गोरखपुर, इलाहाबाद और झांसी में संशोधित डीपीआर तैयार की जा रही है। वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट के तहत विभिन्न जिलों के पारंपरिक उत्पाद को बढ़ावा देने का काम शुरू हो चुका है। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में युवा शक्ति का प्रचुर भंडार है। 60 फीसदी तो 30 साल से कम वाले युवक हैं।

प्रदेश के आईटीआई को कौशल विकास से जोड़कर उद्योगों को दक्ष मानव संसाधन उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है। प्रदेश में ग्रीन ऊर्जा, जैव ऊर्जा, बायोगैस, बायोडीजल के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर संभावनाएं हैं। पयर्टन नीति को रोजगारपरक बनाया जा रहा है ताकि भारी निवेश हो सके। 2019 तक डेढ़ करोड़ घरों में निःशुल्क बिजली कनेक्शन दिए जा चुके हैं। अब हर घर अमृत जल पहुंचाने का काम चल रहा है।

किस मंडल में आया कितना निवेश प्रस्ताव?

अगर प्रत्येक मंडल के लिए मिले निवेश प्रस्ताव को देखा जाए तो मेरठ मंडल में सर्वाधिक 9,85,566 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव मिले हैं। इसके बाद लखनऊ मंडल का नंबर आता है, जहां 2,91,468 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव मिले, इसके अलावा आगरा मंडल में 2,60,947 करोड़, झांसी मंडल में 2,18,498 करोड़, वाराणसी मंडल में 1,96,632 करोड़, गोरखपुर मंडल में 1,78,285 करोड़, मिर्जापुर मंडल में 1,39,671 करोड़, बरेली मंडल में 1,28,040 करोड़, चित्रकूट मंडल में 98,367 करोड़, कानपुर मंडल में 80,607 करोड़, अयोध्या मंडल में 77,547 करोड़, प्रयागराज मंडल में 67,563 करोड़, अलीगढ़ मंडल में 67,467 करोड़, मुरादाबाद मंडल में 44,704 करोड़, सहारनपुर मंडल में 20,101 करोड़, बस्ती मंडल में 19,250 करोड़, देवीपाटनमंडल में 10,593 करोड़ और आजमगढ़ मंडल में 6,648 करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव योगी सरकार को निवेशकों की ओर से प्राप्त हुए हैं, इसके अतिरिक्त 4,58,648 करोड़ के निवेश प्रस्ताव प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के लिए हुए हैं।

जिनका फिलहाल मंडलवार वर्गीकरण नहीं किया जा सका है। इस बार के यूपी जीआईएस में निवेशकों ने कभी नक्सलियों का गढ़ रहे सोनभद्र, चंदौली और मिर्जापुर जिलों में भी काफी रुचि दिखाई है। वाराणसी मंडल में आने वाले चंदौली जिले में 11 हजार करोड़ से ज्यादा और मिर्जापुर मंडल में आने वाले मिर्जापुर जिले में 64 हजार करोड़ और सोनभद्र जनपद 74 हजार करोड़ से ज्यादा का इनवेस्टमेंट करने का मन उद्योग जगत ने बना लिया है। जिन इलाकों में कभी शाम ढलने के बाद लोग घर से बाहर निकलने से भी डरते थे, वहां उद्योग धंधे स्थापित करने का माहौल बनाने में योगी सरकार को बड़ी सफलता मिली है।

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