विधानसभा चुनाव में हार का ठीकरा कांग्रेस ने एक बार फिर ईवीएम पर फोड़ दिया है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राउत ने भाजपा की जीत को ईवीएम की जीत बताया है तो दूसरी ओर भाजपा ने सवाल किया है कि तेलंगाना में किसकी जीत हुई है। देखा जाये तो ईवीएम पर सवाल उठा कर विपक्ष भारतीय निर्वाचन आयोग की साख पर सवाल उठा रहा है। भारत के निर्वाचन आयोग की दुनिया भर में प्रतिष्ठा है और विभिन्न देशों में चुनावों के दौरान संयुक्त राष्ट्र की ओर से भारतीय निर्वाचन आयोग को पर्यवेक्षक के तौर पर भी तैनात किया जाता है।
यही नहीं, चुनाव प्रक्रिया के दौरान हजारों की संख्या में अधिकारियों ने अपनी जिम्मेदारियों का कुशलता से निर्वहन किया लेकिन उनका उत्साह वर्धन करने और उनका शुक्रिया अदा करने की बजाय उनकी मेहनत पर पानी फेरा जा रहा है।विपक्ष अपनी कमियों पर चिंतन करने की बजाय, विपक्ष अपनी गलतियों पर चर्चा करने की बजाय, विपक्ष अपनी नाकामियों को स्वीकारने की बजाय ईवीएम पर लगातार सवाल उठा रहा है। ऐसा तब है जब भारतीय निर्वाचन आयोग कई बार यह चुनौती सभी को दे चुका है कि ईवीएम से छेड़छाड़ साबित करके दिखाएं। लेकिन कोई भी छेड़छाड़ साबित नहीं कर पाया। ईवीएम का मुद्दा अदालतों की परीक्षा भी पास कर चुका है लेकिन उसके बावजूद मीठा मीठा गप गप और कड़वा कड़वा थू थू की तर्ज पर विपक्ष जब किसी राज्य में हारता है तो दोष ईवीएम को दे देता है और जब जीत मिलती है तो उसका श्रेय अपने नेताओं को दे देता है।
देखा जाये तो भारत के संवैधानिक संस्थानों की छवि पर लगातार जिस तरह सवाल उठाये जा रहे हैं उससे यह भी प्रतीत होता है कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल सिर्फ सत्ता पाने को आतुर हैं उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि उनकी राजनीति से भारत के संवैधानिक संस्थानों और लोकतंत्र की छवि पर क्या विपरीत असर पड़ेगा। जो भी दल ईवीएम पर सवाल उठा रहे हैं वह सभी ईवीएम के माध्यम से आये जनादेश के चलते सत्ता भी प्राप्त कर चुके हैं। हम आपको बता दें कि शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने कहा है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा को मिली जीत लोगों के समर्थन को नहीं दर्शाती, बल्कि यह ‘ईवीएम का जनादेश’ है।
राउत ने कहा, ”चुनाव परिणाम अप्रत्याशित और आश्चर्यजनक हैं, लेकिन हम लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान करते हैं। जब जनादेश आपकी पार्टी के खिलाफ जाता है, तो उसे स्वीकार करना पड़ता है। बहरहाल, मध्य प्रदेश के नतीजे हमारे लिए चौंकाने वाले ही नहीं, बल्कि स्तब्ध करने वाले भी हैं। चार में से तीन राज्यों के चुनाव नतीजों को ईवीएम का जनादेश माना जाना चाहिए और इसे उसी रूप में स्वीकार करना होगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं उन्हें (भाजपा) चुनौती देता हूं कि वे मतपत्र से चुनाव कराएं और हम परिणाम देखेंगे।’’ राज्यसभा सदस्य ने निर्वाचन आयोग से उन लोगों का संज्ञान लेने की मांग की, जिन्हें ‘‘ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) की प्रामाणिकता और उनके काम करने के तरीके पर संदेह है’’।
वहीं जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और गुपकार नेता फारुक अब्दुल्ला ने कहा कि जब ईवीएम आई थी तभी हमने कुछ सवाल उठाये थे। उन्होंने कहा कि इन मशीनों को दुरुस्त करने की जरूरत है ताकि जनता इन पर विश्वास कर सके।विपक्ष के इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय मंत्रियों ने आज पलटवार किया। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के EVM वाले बयान पर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा, “विपक्ष के लोग जब जीत जाते हैं तब EVM पर सवाल नहीं उठाते हैं, वो तेलंगाना में जीत गए तो EVM पर सवाल नहीं उठाए गये लेकिन जब ये हार जाते हैं कि तब ये EVM पर सवाल उठाते हैं। ये कोई नई बात नहीं है।”
वहीं साध्वी निरंजन ज्योति ने कहा कि “2004-2014 तक ये सरकार में रहे तब ईवीएम पर सवाल नहीं उठा। हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में ये जीते तब ईवीएम पर सवाल नहीं उठा। उन्होंने कहा कि विपक्ष का न तो ईवीएम पर विश्वास है न जनता पर, न निर्वाचन आयोग पर विश्वास है और न ही कोर्ट पर विश्वास है। उन्होंने कहा कि अब जनता के जनादेश को इस तरह से अस्वीकार करना ये बहुत छोटी सोच है। विपक्ष को इसे स्वीकार करना चाहिए।”