मैं नाश्ते में नेताओं को खाता था

देश में जल्द ही लोकसभा चुनाव  शुरू होने वाले हैं। ऐसे में नेताओं के पुराने किस्से आए दिन सुर्खियां बटोरते हैं। मगर आज हम आपको देश के 10वें चुनाव आयुक्त से रूबरू करवाएंगे, जिनका नाम टी.एन.शेषन था। छह साल तक देश के मुख्य चुनाव आयुक्त का पदभार संभालने के दौरान उन्होंने कई नेताओं की नाक में दम कर दिया था।

टी.एन.शेषन 1990 में देश के मुख्य चुनाव आयुक्त बने और 1996 तक अपने पद पर रहे। टी.एन शेषन के सख्त रवैये ने कई नेताओं की नींद उड़ा दी थी। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ने ‘शेषन वर्सेज नेशन’ का नारा देते हुए कहा था कि ‘शेषनवा को भैंसिया पर बिठाकर गंगाजी में हिला देंगे।’ हालांकि शेषन अपने बेबाक और निडर अंदाज के लिए मशहूर थे। शेषन ने खुद इस बारे में बात करते हुए कहा था कि ‘मैं नाश्ते में नेताओं को खाता हूं।’

1954 में सिविल सेवा परीक्षा पास करने के बाद शेषन को ट्रांसपोर्ट विभाग का डायरेक्टर नियुक्त किया गया। 1985 में उन्हें पर्यावरण और वन मंत्रालय का सचिव बनाया गया। बतौर सचिव शेषन ने पर्यावरण से जुड़े कई सख्त कदम उठाए। साथ ही उन्होंने नर्मदा और टिहरी बांध से होने वाले पर्यावरण नुकसानों को लेकर भी आवाज उठाई थी।

शेषन से जुड़ा एक किस्सा काफी मशहूर है। पर्यावरण और वन मंत्रालय का सचिव रहने के दौरान शेषन ने टीवी पर एक हेडलाइन देखी, जिसमें लिखा था ‘टू टाइगर्स किल्ड’। ये देखने के बाद शेषन ने पूरा डिपार्टमेंट सिर पर उठा लिया और फौरन जांच कमेटी बनाने का आदेश दिया। मजे की बात तो ये है कि हेडलाइन में टाइगर का मतलब लिट्टे के तमिल टाइगर से था। मगर शेषन को गुस्से में देखकर किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उन्हें सच्चाई बता सके।

1990 में वी.पी. सिंह की सरकार बनी और टी.एन.शेषन को देश का मुख्य चुनाव आयुक्त बना दिया गया। चुनाव आयुक्त बनने के बाद उन्होंने कई कठोर फैसले लिए। मसलन चुनाव में खर्च की सीमा निर्धारित करना, उम्मीदवारों को संपत्ति का ब्यौरा देना, धर्म के नाम पर चुनाव प्रचार करने और मतदान के दौरान शराब बिक्री पर रोक लगाने जैसे कई नियम लागू किए। शेषन द्वारा बनाए गए कई नियमों को आज भी फॉलो किया जाता है।

चुनाव में चल रही धांधली और फेक वोटिंग को रोकने के लिए शेषन ने वोटर आईडी पर फोटो लगाने का सुझाव दिया। मगर सरकार ने खर्च बढ़ने का हवाला देकर शेषन के सुझाव से पल्ला झाड़ लिया। ऐसे में शेषन ने चुनाव करवाने से ही इनकार कर दिया। शेषन का कहना था कि जब तक वोटर आईडी पर मतदाताओं की फोटो नहीं लग जाती, देश में चुनाव नहीं होंगे। आखिर में सरकार ने शेषन की जिद के सामने घुटने टेक दिए और 1993 में सभी की वोटर आईडी पर फोटो लगवाई गई।

शेषन के फैसलों से तंग आकर संसद में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया। मगर तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिम्हा राव ने इस प्रस्ताव को रोक दिया। आखिर में ससंद ने नया कानून पारित करके मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की गई, जिससे शेषन की पावर कम की गई।

शेषन ने 1997 में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। 1999 के आम चुनाव में वो कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे और उन्होंने गांधीनगर से लाल कृष्ण अडवाणी को टक्कर दी। मगर यहां भी शेषन को निराशा हाथ लगी। शेषन की जिंदगी का आखिरी समय वृद्धाश्रम में गुजरा, क्योंकि उनके बच्चे नहीं थे। 2019 में उन्होंने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।

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