
नई दिल्ली। सरकार महंगाई मापने के तरीके को आधुनिक बना रही है। 2026 में जब खुदरा महंगाई दर का नया पैमाना (सीरीज) आएगा, तो उसमें एक बड़ा बदलाव होगा। अब ऑनलाइन शॉपिंग की कीमतों पर भी सरकार की नजर रहेगी। इसके लिए सरकार ने देश के 12 बड़े शहरों को चुना है, जहां की आबादी हर एक की 25 लाख से ज्यादा है।
इन शहरों में हर शहर के सबसे बड़े ऑनलाइन सेलर से सामान की कीमतें नोट की जाएंगी। मिसाल के तौर पर लखनऊ में चावल की कीमत शायद बिगबास्केट से ट्रैक होगी। बेंगलुरु में शायद अमेजन से देखी जाएगी। नाम न बताने की शर्त पर इकनॉमिक टाइम्स से ये जानकारी एक सरकारी अधिकारी ने दी है।
नए CPI की खास बातें
ज्यादा बाजार, ज्यादा डाटा: पुराने पैमाने में सिर्फ 1,181 ग्रामीण और 1,114 शहरी बाजार शामिल थे। नए पैमाने में यह संख्या बढ़कर कुल 2,900 बाजार हो जाएगी। नया आधार साल: कीमतों की तुलना का आधार साल 2012 से बदलकर 2024 कर दिया जाएगा। यानी 2024 की कीमतों को ‘100’ मानकर आगे की महंगाई मापी जाएगी। खर्चे का नया पैटर्न: सूचकांक (इंडेक्स) में हर चीज़ का ‘वेटेज’ (महत्व) खर्च सर्वेक्षण 2022-23 (HCES) के आधार पर तय होगा। ये सर्वे लोगों के खरीदारी के नए तरीकों को दिखाएगा।
पहले, खपत के बदलते तरीकों को शामिल करने के लिए, सूचकांक में चीज़ों के ‘वेटेज’ को फिर से बांटा जाता था (रिडिस्ट्रीब्यूशन ऑफ वेट्स)। अब नए सीरीज में ऐसा नहीं होगा। एक सरकारी अधिकारी ने साफ कहा, “नए सीरीज में वेटेज का फिर से बंटवारा नहीं होगा।” विशेषज्ञों का कहना है कि वेटेज बदलने से कभी-कभी महंगाई वास्तविकता से ज्यादा दिख सकती थी। एक चीज़ का महत्व कम करके दूसरी को बढ़ाना, असली खपत को ठीक से नहीं दिखाता था।
मदन सबनविस (बैंक ऑफ बड़ौदा) कहते हैं, “शायद ये फैसला इसलिए लिया गया ताकि नया सूचकांक खर्च सर्वेक्षण 2022-23 को सही-सही दर्शा सके। पुराने वेटेज बदलने से ये गड़बड़ा सकता था।” गौरा सेनगुप्ता (आईडीएफसी फर्स्ट बैंक) का कहना है, “ये कदम सूचकांक में होने वाले उतार-चढ़ाव (वोलेटिलिटी) को कम करने के लिए है।
नया पैमाना सिर्फ किराने का सामान ही नहीं, आधुनिक खर्चों को भी ट्रैक करेगा।ओटीटी प्लेटफॉर्म्स (नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम जैसी स्ट्रीमिंग सेवाओं) की सदस्यता शुल्क। रेल और हवाई यात्रा के किराए। सरकार ने करीब दो साल पहले ही अमेजन, बिगबास्केट, जेप्टो, फ्लिपकार्ट, जोमेटो जैसी ई-कॉमर्स और क्विक कॉमर्स कंपनियों को पत्र लिखकर उनके प्राइसिंग डाटा तक पहुंच मांगी थी, लेकिन कोई भी कंपनी तैयार नहीं हुई। कंपनियों की चिंता गोपनीयता (प्राइवेसी) और अपनी बिजनेस रणनीति का गुप्त रखना है।
स्कैनर डाटा का रास्ता: सरकार रिटेल संगठनों से सीधे स्कैनर डाटा लेने की कोशिश कर रही है। ये वो डाटा होता है, जब आप बारकोड स्कैन करके सामान बिल करते हैं। यूरोप के कई देश पहले ही इसे इस्तेमाल कर रहे हैं।
वेब स्क्रैपिंग पर विचार: सरकार खुद-ब-खुद वेबसाइटों से कीमतों का डाटा इकट्ठा करने की तकनीक (वेब स्क्रैपिंग) पर भी विचार कर रही है, हालांकि इसमें कुछ मुश्किलें भी हैं। विश्व बैंक और IMF से सलाह: सांख्यिकी मंत्रालय इस मुद्दे पर विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से भी राय ले रहा है।