गणगौर शिव और पार्वती को है समर्पित

गणगौर व्रत चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि के दिन रखा जाता है। इसे तृतीया तीज के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। इस व्रत को सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं। 

गणगौर व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। गणगौर दो शब्दों से मिलकर बना है गण यानी भगवान शिव और गौर यानी माता पार्वती। यह व्रत सुहागन महिलाएं अपनी पति की लंबी आयु के लिए रखती है। इसके अलावा कुंवारी कन्याएं भी इस व्रत को रखती है ताकी उन्हें मनचाहा वर मिले। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गणगौर का व्रत रखने से भगवान शिव और मां पार्वती का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, गणगौर व्रत चैत्र नवरात्रि की तृतीया तिथि के दिन मनाया जाता है। इस बार गणगौर का व्रत 31 मार्च सोमवार के दिन रखा जाएगा। तृतीया तिथि का आरंभ 31 मार्च को सुबह 9 बजकर 11 मिनट पर होगी और 1 अप्रैल को सुबह 5 बजकर 42 मिनट तक रहेगी। इसे तृतीया तीज के नाम से भी जाना जाता है।

गणगौर व्रत सुहागन महिलाएं और कुंवारी कन्याएं 16 दिनों तक रखती है। इस व्रत में सिर्फ एक समय भोजन करने का विधान हैं। साथ ही महिलाएं इस दिन सौलह श्रृंगार करती हैं और माता पार्वती और भगवान शिव से अपने पति की लंबी आयु की कामना करती है। गणगौर का व्रत मुख्य रूप से राजस्थान, उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीमा से लगने वाले शहरों में मनाया जाता है।

गणगौर व्रत की पूजा के लिए मिट्टी से भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति बनाई जाती है। इस दिन माता पार्वती को श्रृंगार सामग्री अर्पित की जाती है। सबसे पहले माता पार्वती को रोली, कुमकुम से तिलक करें और भगवान शिव का चंदन से तिलक करें। इसके बाद घी का दीपक जलाकर फल मिठाई, भोग लगाएं और दूर्वा अर्पित करें। इसी के साथ एक थाली में चांदी में सिक्का, सुपारी, पान, दूध, दही गंगाजल, कुमकुम, हल्दी, दूर्वा डालकर सुहाग जल तैयार करें। इसके बाद इस जल से दूर्वा के सहारे भगवान शिव और मां गौरी पर जल छिड़कें। इसके बाद उन्हें चूरमे का भोग लगाया जाता है। इसके बाद गणगौर व्रत कथा का पाठ करें और अंत में भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें।

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