महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर बुधवार को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और शिवसेना विधायकों की अयोग्यता से संबंधित मामले में अपना फैसला सुना सकते हैं, जिस दिन सुप्रीम कोर्ट की 10 जनवरी की समय सीमा समाप्त हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाने की समयसीमा 31 दिसंबर 2023 तय की थी, लेकिन कोर्ट ने 10 दिन की मोहलत दे दी थी। जून 2022 में शिंदे और कई विधायकों ने तत्कालीन सीएम उद्धव ठाकरे के खिलाफ विद्रोह कर दिया था, जिससे शिवसेना में विभाजन हो गया, जिसके कारण सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी सरकार गिर गई, जिसमें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस भी शामिल थी। सूत्रों के मुताबिक, शिवसेना के दोनों गुटों द्वारा दायर 34 याचिकाओं पर आधारित फैसला स्पीकर द्वारा छह भागों में पढ़ा जाएगा। शिंदे और ठाकरे दोनों गुटों ने एक दूसरे के खिलाफ दलबदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई की मांग की है।
सूत्रों ने कहा कि फैसले की प्रकृति अदालत की सीमाओं और विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय के अधिकारों और कर्तव्यों को परिभाषित करेगी। साथ ही, यह एक उचित और निष्पक्ष फैसला होगा और किसी के राजनीतिक पूर्वाग्रह की आशंका नहीं होगी। सूत्रों ने कहा कि फैसले का प्रत्येक भाग 200 पन्नों का है और विस्तृत फैसला करीब 1200 पन्नों तक जाता है। उन्होंने आगे कहा कि अंतिम फैसले में मामले में चुनाव आयोग के आदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। चुनाव आयोग ने अपने आदेश में शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को ‘शिवसेना’ नाम और ‘धनुष और तीर’ प्रतीक दिया। ठाकरे के नेतृत्व वाले खेमे को शिव सेना (यूबीटी) नाम दिया गया और इसका प्रतीक चिन्ह जलती हुई मशाल है।
फैसले से यह भी स्पष्ट होगा कि संबंधित मामले में 10वीं अनुसूची के तहत दलबदल विरोधी कानून निर्धारित है या नहीं। सूत्रों ने कहा कि गर इस फैसले को किसी भी समूह द्वारा चुनौती दी जाती है, तो पीड़ित पक्ष उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है। अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे और बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग करने वाली ठाकरे गुट द्वारा दायर याचिकाओं पर फैसला करने में देरी पर नारवेकर को फटकार लगाई और कहा कि स्पीकर शीर्ष अदालत के आदेशों को नहीं हरा सकते।