
गोरखपुर। गोरखपुर का तिवारी परिवार एक बार फिर से चर्चा में है। पूर्व विधायक विनय तिवारी को ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग और बैंक धोखाधड़ी के गंभीर आरोपों के सिलसिले में गिरफ्तार किया है। विनय, हरिशंकर तिवारी के बेटे हैं, जिनकी पहचान राजनीति और अपराध के दौर में सिरमौर के तौर पर रही। अभी गोरखपुर बेशक योगी आदित्यनाथ के नाम से जाना जाता है, जो राज्य के सीएम हैं। लेकिन एक दौर था, जब हरिशंकर तिवारी का राज था। योगी और तिवारी परिवार में वर्चस्व की जंग भी चली।
गोरखपुर की राजनीति में तिवारी और सीएम योगी दोनों ही दो धुरी रहे हैं। जहां एक नाम राजनीति के अपराधीकरण के दौर में परवान चढ़े तो वहीं दूसरे हिंदुत्व की विचारधारा के सहारे सीएम की कुर्सी तक पहुंचा। लेकिन दोनों कभी भी राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में साथ नहीं रहे। हमेशा दूरियां बरकरार रही। इसके पीछे जातीय गोलबंदी की राजनीति एक अहम वजह रही। एक तरफ योगी गोरक्ष पीठ का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे दिग्विजयनाथ के समय से राजपूतों की पीठ कहा जाता है। वहीं दूसरी तरफ हरिशंकर तिवारी ने अपने साथ ब्राह्मण जाति के लोगों को साधने का काम किया।
हरिशंकर तिवारी ने पूर्वांचल और पूरे उत्तर प्रदेश की राजनीति को बदलकर रख दिया। उनकी और वीरेंद्र शाही की दुश्मनी से ही राजनीति में बाहुबल और अपराध की शुरुआत मानी जाती है। उस दौर में हाल यह था कि गोरखपुर की पहचान शिकागो ऑफ ईस्ट के तौर पर की जाने लगी। हरिशंकर तिवारी ने चिल्लूपार से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी।
हरिशंकर तिवारी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति को एक नया रूप दिया। खासकर पूर्वांचल में उनका काफी प्रभाव था। ऐसा माना जाता है कि राजनीति में ताकत और अपराध का जो चलन शुरू हुआ, वो हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही के बीच की दुश्मनी का नतीजा था। उस समय गोरखपुर में माफिया और गैंगवार जैसे शब्द सुनाई देने लगे थे।
हरिशंकर तिवारी के समय में बलवंत सिंह गोरखपुर यूनिवर्सिटी में नेता थे। हरिशंकर और बलवंत के बीच अनबन थी। उसी दौरान रवींद्र सिंह भी एक तेजतर्रार युवा नेता के रूप में उभरे। वे छात्रसंघ से लेकर विधानसभा तक पहुंचे। जब हरिशंकर मजबूत हो रहे थे, तब बलवंत और रवींद्र दोनों की हत्या हो गई। आरोप अक्सर हरिशंकर पर ही लगते थे। इसके बाद वीरेंद्र शाही ने राजपूत समुदाय की कमान संभाली। वीरेंद्र शाही को ठाकुरों का नेता माना जाता था। यह भी माना जाता था कि उन्हें गोरक्षपीठ का समर्थन प्राप्त था।
दूसरी तरफ, हरिशंकर ब्राह्मण समुदाय के नेता बनकर उभरे। दोनों नेताओं की दुश्मनी ने पूरे इलाके में ब्राह्मण और क्षत्रिय के बीच लड़ाई शुरू कर दी। शाही और तिवारी दोनों गोरखपुर नॉर्थ ईस्ट रेलवे मुख्यालय पर कब्ज़ा करना चाहते थे। रेलवे के टेंडर के खेल में कई लोगों की जान गई। इन सब को रोकने के लिए गैंगस्टर ऐक्ट लगाया गया। 1997 में लखनऊ में श्रीप्रकाश शुक्ला ने शाही की हत्या कर दी।
समय के साथ सब कुछ शांत होता दिख रहा था। लेकिन इसी बीच 2017 विधानसभा चुनाव भाजपा की जीत के बाद योगी आदित्यनाथ की मुख्यमंत्री के तौर पर ताजपोशी कर दी गई। गोरखपुर शहर में हरिशंकर तिवारी और उनके परिवार के घर ‘तिवारी बाबा का हाता’ पर छापा मारा गया। पुलिस लूट के एक आरोपी को ढूंढ रही थी। छापेमारी की घटना को लेकर तिवारी समर्थकों ने प्रदर्शन किया था।
इसके बाद 2020 में हरिशंकर के बेटे और तत्कालीन विधायक विनय शंकर तिवारी और उनकी पत्नी रीता तिवारी के खिलाफ सीबीआई ने मामला दर्ज किया। विनय शंकर तिवारी की कंपनी से जुड़े बैंक फ्रॉड के मामले में सीबीआई ने कई जगह छापेमारी की। विनय के खिलाफ कई बार जांच और छापेमारी की जा चुकी है। अब ताजा मामला गंगोत्री इंटरप्राइजेज के नाम पर अलग-अलग बैंकों से लोन लिया। इसके बाद बैंक से प्राप्त लोन राशि का उपयोग निर्धारित प्रोजेक्ट्स में न करके उसे अन्य स्थानों पर निवेश कर दिया, जिससे बैंकों को भारी नुकसान हुआ। इस तरह लोन राशि को हड़पने और धोखाधड़ी का मामला सामने आया है।