गुरु गोबिंद सिंह के पांच सिद्धांत कहलाये ‘पंच ककार’

हर साल पौष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सिख धर्म के 10वें और अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती मनाई जाती है। इस साल यह खास दिन 6 जनवरी 2025 को पड़ रहा है। गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती सिख धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण और श्रद्धेय अवसर होता है, जिसे पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

गुरु गोविंद सिंह जी ने महज 10 साल की उम्र में गुरु की गद्दी संभाली और सिख धर्म को एक नई दिशा दी। उन्होंने सिख समाज को संगठित किया और खालसा पंथ की स्थापना की, जो धर्म, साहस और न्याय के प्रतीक के रूप में खड़ा हुआ। उनकी शिक्षाओं और नेतृत्व ने सिख समुदाय को एक मजबूत पहचान दी, जो आज भी पूरी दुनिया में प्रभावी है।

इस दिन, सिख धर्म के अनुयायी विशेष पूजा-अर्चना करते हैं, गुरुद्वारों में कीर्तन और पाठ होते हैं, और गुरु के जीवन और उनके योगदान को श्रद्धा से याद किया जाता है। यह दिन उनके साहस, बलिदान और महान कार्यों का सम्मान करने का अवसर होता है।

क्रम सम्वत 1723 में पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गुरु गोबिंद सिंह का जन्म हुआ था। उनके पिता सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर और माता का नाम गुजरी था। इनका मूल नाम गोबिंद राय था। अपने पिता गुरु तेग बहादुर जी के निधन के बाद गुरु गोबिंद सिंह गद्दी पर बैठे थे।

बताया जा रहा है कि कश्मीरी हिंदुओं की रक्षा के लिए वह गद्दी पर बैठे थे। उनको कलगीधर, बाजांवाले और दशमेश आदि कई नामों से जाना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों के पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को पूरा किया और उनको गुरु का दर्जा दिया। गुरु गोबिंद सिंह ने अन्याय को खत्म करने के लिए और धर्म की रक्षा के लिए मुगलों के साथ 14 युद्ध लड़े थे।

वहीं धर्म की रक्षा की खातिर गुरु गोबिंद सिंह ने अपने समस्त परिवार का बलिदान दे दिया था। यही वजह है कि उनको ‘सरबंसदानी’ भी कहा जाता है। जिसका अर्थ होता है कि पूरे परिवार का दान। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना पूरा जीवन आमजन की सेवा और सच्चाई की राह पर चलते हुए गुजारा था।

गुरु गोबिंद सिंह ने बचपन में ही उर्दू, हिंदी, ब्रज, संस्कृत, गुरुमुखी और फारसी जैसी कई भाषाएं सीख ली थीं। बता दें कि गुरु गोबिंद सिंह ने ‘खालसा पंथ’ में जीवन के पांच सिद्धांत दिए थे। जिनको ‘पंच ककार’ के नाम से जाना जाता है। यह पंच कारक – केश, कृपाण, कड़ा, कंघा और कच्छा। हर खालसा सिख के लिए इनका अनुसरण करना अनिवार्य है। 

बता दें कि 07 अक्तूबर 1708 को नांदेड़, महाराष्ट्र में 42 साल की उम्र में गुरु गोबिंद सिंह का निधन हो गया था। उनके मुगल शासक बहादुरशाह के साथ संबंध मधुर थे। बहादुरशाह और गुरु गोबिंद सिंह के संबंधों से सरहद का नवाब वजीत खां घबराने लगा था। इसलिए उसने दो पठान गुरुजी के पीछे लगा दिए।

इसके बाद जमशेद खान और वासिल बेग गुरु की सेना में धोखे से शामिल हो गए। इन दोनों ने धोखे से गुरु गोबिंद सिंह पर धोखे से वार कर दिया। इस दौरान गुरु गोबिंद सिंह अपने कक्ष में आराम कर रहे थे। तभी एक पठान ने गुरु गोबिंद के दिल के नीछे छूरा घोपा। फिर गुरु गोबिंद सिंह ने उस पठान पर कृपाण से वार कर दिया। वहीं 07 अक्तूबर 1708 को गुरु गोबिंद सिंह दिव्य ज्योति में लीन हो गए थे।

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