घर की हर दिशा का होता है महत्व

वास्तु शास्त्र के मुताबिक घर की हर दिशा का अपना एक महत्व होता है। हर दिशा के अपने कुछ नियम और विशेषताएं होती हैं। जैसे घर की उत्तर दिशा को धन के देवता कुबेर देव की दिशा मानी जाती है। इस दिशा को पॉजिटिव एनर्जी का भंडार माना जाता है। साथ ही इस दिशा को पूजा-पाठ के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।

घर की उत्तर दिशा में भूलकर भी जूते-चप्पल नहीं रखने चाहिए। जब भी आप बाहर से घूमकर आएं, तो उत्तर दिशा में जूते-चप्पल न उतारें। क्योंकि उत्तर दिशा कुबेर देवता का स्थान माना जाता है। ऐसे में इस दिशा में जूते-चप्पल रखना कुबेर देव के अपमान करने जैसा है। इसलिए भूलकर भी इस दिशा में जूते-चप्पल न उतारें।

उत्तर दिशा को लेकर सबसे बड़ा जो दोष होता है, वह इस दिशा में टॉयलेट या फिर बाथरुम का होना है। इस दिशा में बाथरुम होने से घर में मां लक्ष्मी का वास नहीं होता है और घर में दरिद्रता का वास होता है। अगर आपके घर में भी इस दिशा में वॉशरूम है, तो आप एक उपाय कर सकते हैं। कांच की कटोरी में डेले वाला नमक भरकर बाथरुम के किसी कोने में रखें। इस नमक को हर सप्ताह बदलते रहें। इस उपाय को करने से आपको काफी हद तक वास्तुदोष से राहत मिलेगी।

वास्तु दिशा में उत्तर दिशा को सकारात्मक ऊर्जा का भंडार माना जाता है। इसलिए भूल से भी इस दिशा में भारी-भरकम फर्नीचर न रखें। क्योंकि इस दिशा में भारी-भरकम फर्नीचर रखने से पॉजिटिव एनर्जी के संचार में कमी पैदा होती है। इस दिशा को जहां तक हो सके, खाली और खुला हुआ रखें। इस दिशा की साफ-सफाई का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। साथ ही इस दिशा में गंदा पानी और कचरा न जमा होने दें।

उत्तर दिशा को साफ और सुंदर रखना चाहिए। घऱ की उत्तर दिशा में तिजोरी और बच्चों के पढ़ने की टेबल रखनी चाहिए। इस दिशा में भूलकर भी पुरानी टूटी हुई वस्तुएं न रखें। साथ ही इस दिशा में कबाड़ का सामान भी रखना चाहिए। क्योंकि बहुत सारे लोग पुरानी टूटी हुई चीजों को एकत्र करके रखते हैं। घर में ऐसी वस्तुओं को नहीं रखना चाहिए। 

उत्तर दिशा में भूलकर भी डस्टबिन नहीं रखना चाहिए। इस दिशा को हमेशा साफ-सुथरा रखना चाहिए। उत्तर दिशा में कचरा नहीं जमा होने देना चाहिए। आपको रोजाना पानी में नमक डालकर पोंछा लगाना चाहिए। इससे सभी तरह की निगेटिव एनर्जी दूर होती है।

He had previously been secretary of Sir Philip Sydney until the latter was killed in battle. Although different types of tubes have been used, one of the most recognized is the Dreiling tube, which permitted simultaneous aspiration from the gastric and duodenal lumens.

Related Articles

Back to top button