लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा बिजली व्यवस्था के निजीकरण के निर्णय के खिलाफ बिजली कर्मियों का विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है। इसके तहत, एक जनवरी को पूरे प्रदेश में बिजली कर्मी काली पट्टी बांधकर काम करेंगे और इसे काला दिवस के रूप में मनाएंगे। हालांकि, इस दिन बिजली आपूर्ति पर इसका कोई सीधा असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि कर्मचारी अपनी नियमित ड्यूटी जारी रखेंगे। यह विरोध प्रदर्शन प्रदेशभर में निजीकरण के खिलाफ जारी है, जिसमें अभियंता और बिजली कर्मचारी शामिल हैं।
गोरखपुर में हाल ही में हुई पंचायत में भी इस मुद्दे पर चर्चा की गई और निजीकरण के प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया। बिजली कर्मियों ने यह साफ कर दिया है कि जब तक निजीकरण का विरोध न समाप्त किया जाता, उनका आंदोलन जारी रहेगा। इस विरोध का मुख्य उद्देश्य बिजली वितरण के निजीकरण के संभावित प्रभावों को लेकर है, क्योंकि कर्मचारियों का मानना है कि इससे उनकी नौकरी की सुरक्षा और आम जनता को मिलने वाली सेवा पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।बिजली कर्मियों की संघर्ष समिति के पदाधिकारियों का आरोप है कि पावर कॉर्पोरेशन प्रबंधन निजीकरण की एकतरफा कार्रवाई करके अनावश्यक तौर पर ऊर्जा निगमों में औद्योगिक अशांति का वातावरण बना रहा है।
संघर्ष समिति के शैलेन्द्र दुबे, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, महेन्द्र राय आदि ने ऐलान किया कि 29 दिसंबर को झांसी में होने वाली बिजली पंचायत भी ऐतिहासिक होगी। इसकी तैयारी की जा चुकी है। इसके बाद पांच जनवरी को प्रयागराज में भी बिजली पंचायत होगी। इसी के साथ हर डिस्कॉम में चार अधिशासी अभियंताओं को निलंबित करने के आदेश पर पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने आक्रोश जताया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से हस्तक्षेप करने और पूरे मामले में कमेटी बनाकर जांच कराने की मांग की है।
बिजली कर्मियों और अभियंताओं द्वारा उठाए गए इस मुद्दे को लेकर एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने निगमों के प्रबंध निदेशकों की कार्यशैली पर कड़ी आपत्ति जताई है। उनके अनुसार, निगम प्रबंधन को तत्काल प्रभाव से कार्रवाई करनी चाहिए, खासकर उन प्रबंध निदेशकों के खिलाफ जिनकी भाषा और कार्यशैली पर विवाद उठ रहे हैं। एसोसिएशन का कहना है कि मुफ्त समाधान योजना की समीक्षा के नाम पर अभियंताओं को टारगेट किया जा रहा है, जो निगमों में औद्योगिक अशांति का कारण बन सकता है।
एसोसिएशन के कार्यवाहक अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा, अनिल कुमार, आरपी केन, बिंदा प्रसाद, सुशील कुमार वर्मा, एके प्रभाकर और अन्य नेताओं ने यह बयान दिया है कि यह पहली बार हो रहा है कि मुफ्त समाधान योजना की समीक्षा के तहत 10 दिन के भीतर अभियंताओं को निशाना बनाया जा रहा है। इससे उनके मनोबल पर असर पड़ सकता है और यह कार्यस्थल पर तनाव और असंतोष का कारण बन सकता है। इस तरह के विरोध और चिंता के बावजूद, एसोसिएशन ने यह स्पष्ट किया कि यदि इस तरह की कार्यवाहियां जारी रही, तो निगमों में और भी अधिक औद्योगिक अशांति हो सकती है, जो कि कर्मचारियों के लिए परेशानी का कारण बन सकती है।