डॉ धीरज फूलमती सिंह
वरिष्ठ स्तंभकार
आपने कभी मुगलो द्वारा बनाए गए किलों का भ्रमण किया है ? विशाल मुगल किले की वास्तुशिल्प का निरीक्षण किया है ? आप ने देखा होगा कि किले में प्रवेश द्वार है,शयन कक्ष है,मीना बाजार है,बादशाहो के हरम है,गोला बारूद रखने के लिए तहखाने है,राज दरबार है,आप को रसोई घर और गुसलखाने भी दिखे होगे लेकिन आपने कभी पैखाना देखा है ? दिल पर हाथ रख कर बताईएगा, आपने कभी शौचालय देखा है,जहा मुगल शासक और उसका परिवार मल-मुत्र त्याग करता था।
मुझे पता है,अब आप थोडा शंशय में आश्चर्य चकित हो रहे है,याद करने की कोशिश कर रहे है लेकिन मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि आपने ऐसा कुछ या ऐसी जगह नही देखी होगी। अब आप से फिर एक सवाल तो क्या मुगल शासक या उनका परिवार खुले में शौच करने जाता होगा,जैसा नरेद्र मोदी सरकार के आने के पहले गावों-कस्बो में जाते थे ? अब तो भाजपा की सरकार ने घर-घर शौचालय को आदोलन का रूप दे दिया है। अब आप सोच तर्क कर रही होगी कि मुगल लोग बाहर खुले में शौच नही करते होगे ,क्यो कि अपने लोगो द्वारा ताक झाक का अंदेशा और दुश्मन द्वारा आसानी से शिकार बनाया जाने की शंका हो सकती थी,फिर वे शौच करते कहा होगे या उनके हकीम ऐसी दवा इजाद किये थे कि उनका खाया-पिया पच तो जाता होगा लेकिन उसका मल मुत्र में बदल नही होता होगा ? ऐसा अगर आप सोच रहे होगे तो फिर आप गलत सोच रहे है।
मुझे पता है,आप के जेहन में इतनी साधारण सी बात आई ही नही होगी कि मुगल लोग शौच कहा करते होगे ? मोदी सरकार आने के पहले यह मुद्दा इतना असाधारण था भी नही कि लोग शौच और शौचालय के बारे में सोचे! शौचालय निर्माण हमारी प्राथमिकता में ही नही होता था,शौचालय के बारे में भी कोई सोचता है भला ? हम ऐतिहासिक स्थल घुमने जाते है तब भी हम मे से शायद ही कोई होगा,जो यह सोचता होगा कि राजा-महाराजा और उनका परिवार शौचालय कैसे और कहा जाता-करता होगा ? शौचालय जैसी निम्न चीज कभी हमारे दिमाग में आती नही क्यो कि हम हमारी आखे उन शासको की भव्यता और ऐश ओ आराम की कहानियो की कलपना करके ही चौधिया जाती है,ऐसे में शौचालय की दोयम दर्ज विचार हमारे दिमाग में आए ही कैसे ? हम तो उनके ठाट-बाट और शान ओ शौकत देखने जाते है,ऐसे में मल मुत्र की जगह के बारे में सोचता ही कौन है ? अगर आप ऐसा नही सोचते तो आज अभी से ही सोचना शुरू कर दिजिए क्यो कि मुगल मल मुत्र के पीछे भारत का दागदार इतिहास है। यह भारत का सबसे बदनुमा धब्बा और शर्मनाक तारीख है। जिसकी सच्चाई जानने के बाद आप की आंखे भले शर्म-अफसोस से झूक जाए लेकिन आपका सीना गर्व से चौडा हो जाता है।
मुगल शासक अपना मल मुत्र एक टोकरी नुमा बर्तन में त्यागते थे और उसे कुछ लोग उठा कर ले जाते थे,मानव सभ्यता में मल मुत्र उठाना हमेशा से ही सबसे घृणित कार्य माना जाता रहा है। आज भी इसे मानवाधिकार का हनन माना जाता है। ये वे लोग थे,जिन्होने अपनी आबादी की बर्बादी कबूल की,बेइंतहा जुल्म सहे लेकिन कभी अपने धर्म का त्याग नही किया,बेइज्जत होते रहे पर कभी उफ न किया। उनके लिए इस्लाम धर्म स्वीकार कर ऐश-ओ -आराम से जिंदगी बसर करना आसान था मगर उन्होने अपने पूर्वजो के पवित्र धर्म हिदुत्व में बने रहने का चुनाव किया।
मै बात कर रहा हूँ,उन महान आत्माओं कि जिनको हमारे पूर्वजो ने भंगी और मेहतर कह कर पुकारा था,जिनको अस्पृश्य करार दिया था,जिनका छूआ आज भी बहुत सारे हिंदू नही खाते! जानते है,वे हमसे कही बहादुर पूर्वजो की संतान है। मुगल काल में ब्राह्मणो और क्षत्रियो को दो रास्ते दिये गए थे,या तो इस्लाम धर्म कबूल कर लो या हम मुगलो का मैला ढोओ! उन्होने अपमान का घूट पीकर मैला ढोना स्वीकार किया लेकिन इस्लाम धर्म कभी कबूल नही किया।
क्या भंगी का मतलब जानते है आप ? जिन ब्राह्मणो और क्षत्रियो ने मैला ढोने की प्रथा को स्वीकार करने के बाद अपने जनेऊ के तोड दिया अर्थात अपने उपनयन संस्कार को भंग कर दिया,उन्हे सम्मान से भंगी कहा जाने लगा लेकिन आज क्या हो रहा है ? आज हम उनको भंगी कह कर अपमानित करते है। तात्कालिक हिदू समाज ने उनकी मैला ढोने की मजबूरी भरी नीच प्रथा को महत्तर यानी महान काम करार दिया था,जो कालांतर में अपभ्रंश स्वरूप मेहतर हो गया। एक अनुमान के मुताबिक भारत में 1500 साल पहले अछूत जातियां 01% थी,जो मुगल शासन खत्म होते -होते 14% तक हो गई थी। अब आप सोच कर देखिए कि सिर्फ मुगल काल के सौ-दो सौ साल में इनमे 13% की बढौतरी कैसे हो गई? सोच कर देखिए, आपके रोंगटे न खडे हो जाए,तो कहना ! आज भी हम इनके साथ अछुतो वाला व्यवहार करके इनके साथ एहसान फरामोशी नही कर रहे है ? हमे तो इनका एहसानमंद होना चाहिए मगर हम मे से कई लोग इनके साथ गैरो जैसा बर्ताव करते है।
डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी लिखते है कि आज की अनुसूचित जातियां हमारे उन्ही महान ब्राह्मणो और क्षत्रियो की वंशज है,जिन्होने जाति और समाज से बाहर तो होना स्वीकार तो किया मगर अपने हिदु धर्म का त्याग नही किया और मुगलो के जबरन इस्लाम धर्म में परिवर्तन को कभी स्वीकार नही किया। आज के हिंदू समाज को उनका शुक्र गुजार होना चाहिए, उन्हे कोटी-कोटी प्रणाम करना चाहिए,क्यों कि उन्होने हिदुत्व के भगवा ध्वज को कभी झूकने नही दिया,भले ही खुद अपमान और दमन झेलते रहे।
जो लोग जन्म के आधार पर खुद को क्षत्रिय और ब्राह्मण मान कर खोखला घमंड करते है,दूसरो को नीची नजर से देखते है,वे जरा शर्म करें और अपने उन भाईयो को गले लगाए, जिन्होने सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपनी सवर्ण जाति का परित्याग कर दिया! मुगल आतातायियो से लड नही सकते थे,खुदकुशी कर के बुजदिल नही कहला सकते थे तो उन्होने अपना का घुट पीकर मैला उठाना कबूल किया मगर अपने धर्म से दगाबाजी नही की!
भारत के इस्लाम धर्म में आज जो अपने नाम के बाद खान,पठान,सैय्यद, कुरेशी,शेख उपनाम लगाते है,उनमे से अधिकांशत: वही बुजदिल, बैगेरत ब्राह्मण और क्षत्रिय लोग थे,जिन्होने मुगलो की तलवार के डर से इस्लाम धर्म कबूल कर लिया था परन्तु हमारे वाल्मीकी ,मेहतर और दलित भाईयो ने बेइज्जती सही पर कभी इस्लाम धर्म कबूलना स्वीकार नही किया।
समय बचने पर गली-गली, घर-घर राम घून की अलख जगाते रहे,इस लिए वाल्मीकी भी कहलाए और हिदुत्व के दलन से रक्षा की इस लिए दलित कहलाए! वही वाल्मीकी जो रत्नाकर डाकू से ऋषि बने थे,जिन्होने पवित्र धर्म ग्रंथ रामायण की रचना कर भगवान श्रीराम को भारत के जन मानस के दिल में बसा दिया,आज दुनियाभर में भगवान श्रीराम पूजनीय है। इन्ही आदरणीय ऋषि वाल्मीकी से आज इस समाज को पहचाना जाता है। उनके नाम से इस समाज का नामकरण हुआ। इस समाज में ऋषि वाल्मीकी को भगवान का दर्जा प्राप्त है,वे पूजनीय है। हिदु धर्म वाल्मीकी,दलित और मेहतर समाज का सदैव ऋणी रहेगा,हमेशा एहसान मंद होगा। इस समाज की हर आत्मा को मेरा सत-सत प्रणाम!