लोकसभा चुनाव में 3-4 महीने का समय बचा है। इससे पहले विपक्षी गठबंधन ने 19 दिसंबर को नई दिल्ली में सभी सहयोगी दलों की बैठक बुलाई थी। बैठक में कुल 28 दलों के शीर्ष नेता शामिल हुए। इससे पहले इंडिया गठबंधन तीन बैठकें आयोजित कर चुका है। कयास लगाए जा रहे थे कि इस बैठक में सीटों के बंटवारे, गठबंधन के संयोजक और रैलियों को लेकर रणनीति तय हो सकती है। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। दरअसल तीसरी और चौथी बैठक के बीच 2-3 महीने का अंतराल आ गया जो कि सहयोगी दलों को नागवार गुजरा।
दरअसल चुनावों के दौरान कांग्रेस 4 राज्यों में मुख्य मुकाबले में थी। ऐसे में वह गठबंधन की अगुवा होने के नाते कोई बैठक आयोजित नहीं कर सकी। इससे यूपी और बिहार के मुख्य क्षत्रप कांग्रेस से चिढ़ गये। जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ रहे थे कांग्रेस को लग रहा था कि वह एमपी, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में सरकार बना लेगी लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। कांग्रेस को तेलंगाना छोड़कर सभी राज्यों में हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में चुनाव के दौरान गठबंधन के सहयोगी दलों को आंख दिखा रही कांग्रेस को चुनाव नतीजों के बाद बैकफुट पर आना पड़ा। इससे मीटिंग के दौरान लालू-नीतीश और ममता कुछ खफा नजर आए।
अब आते हैं जदयू के पीएम मेटेरियल नीतीश कुमार पर। नीतीश कुमार भी अन्य सहयोगी दलों के साथ इस मीटिंग में शामिल होने पहुंचे थे। लेकिन चेहरे की भाव-भंगिमा देखकर लग रहा था कि सुशासन बाबू ज्यादा खुश नहीं थे। मीटिंग के बाद वे मीडिया से बात किए बिना ही निकल गए। ऐसे में कयास यह लगाए जा रहे हैं कि वे कांग्रेस से नाराज हैं। हालांकि मीटिंग से निकलकर वे सीधे जेडीयू सांसदों से मिलने पार्टी के कार्यालय पहुंच गए। यहां उन्होंने पार्टी के नेताओं से बातचीत की और लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट जाने को कहा।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो मीटिंग में ममता और केजरीवाल द्वारा पीएम फेस के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रस्तावित करने के बाद वे नाराज दिखे। मीटिंग में भी उन्होंने ज्यादा किसी से बात नहीं की। इससे पहले नीतीश कुमार चुनावों के दौरान 2 नवंबर को सीपीएम की भाजपा हटाओ देश बचाओ रैली में शामिल होने पहुंचे थे। यहां उन्होंने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस गठबंधन की मुखिया होने का धर्म नहीं निभा पा रही है। उसे तो चुनावों की चिंता है। कांग्रेस के कारण गठबंधन को नुकसान हो रहा है। उनके इस बयान के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि वे गठबंधन में असहज स्थिति में हैं।
बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं। भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में बिहार की 22 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं आरजेडी ने 4 और कांग्रेस ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जदयू को 2 सीटें मिली थी। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार राजद गठबंधन छोड़ एक बार फिर भाजपा के साथ हो लिये। इसके बाद भाजपा और जदयू ने सहयोगी दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। चुनाव में भाजपा ने 17, जेडीयू ने 16 और एलजेपी ने 6 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं इस चुनाव में राजद का खाता भी नहीं खुल सका। कांग्रेस को 1 सीट पर जीत मिली।
जानकारों की मानें बिहार में लोकसभा की 40 सीटें है। कांग्रेस और लालू-नीतीश में सीटों के बंटवारे को लेकर पेंच फंस सकता है। कांग्रेस यूपी की तुलना में अभी भी बिहार में मजबूत है। 2020 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 19 सीटों पर जीत दर्ज की थी। ऐसे में कांग्रेस 5 लोकसभा सीटों पर आगे थी। लेकिन वह गठबंधन में 10 सीटों का दावा कर रही है। ऐसे में सीपीआई माले भी गठबंधन का हिस्सा है वह भी कम से कम 5 सीटों पर दावा कर रही है। लालू-नीतीश के लिए बिहार में सीट बंटवारे को लेकर काफी माथापच्ची होने वाली है।
वहीं दूसरी ओर दुविधा यह भी है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़कर केवल 19 सीटें जीतने पर तेजस्वी यादव ने कांग्रेस पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने जिद करके अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा। नतीजन हम आज सरकार नहीं बना पा रहे हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और सहयोगी दलों में सीट बंटवारे को लेकर टकराव तय है।