कांग्रेस ने इतिहास से सबक नहीं लेने की ठान ली

कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक रणनीतियों और अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति उसके दृष्टिकोण पर चर्चा की गई है। कांग्रेस का मुस्लिम वोट बैंक के प्रति झुकाव कोई नया नहीं है और इतिहास में भी ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जहां पार्टी ने इस समुदाय के मामलों में विशेष रुख अपनाया है।

प्रमुख बिंदु:

  1. शाह बानो केस: राजीव गांधी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बावजूद कानून बनाने में असफल रही, जो दिखाता है कि कांग्रेस ने उस समय अल्पसंख्यक समुदाय के हितों को प्राथमिकता दी थी।
  2. तीन तलाक: कांग्रेस का रुख इस मुद्दे पर भी ऐसा ही रहा, जहां उन्होंने कानून बनाने में हिचकिचाहट दिखाई।
  3. कर्नाटक सरकार का फैसला: हाल ही में कर्नाटक सरकार ने दंगा, थाने पर हमले और अन्य गंभीर आरोपों में शामिल मुस्लिम समुदाय के आरोपियों के खिलाफ मामलों को वापस लेने का निर्णय लिया, जिसे कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रेम के रूप में देखा गया।
  4. हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण: भाजपा ने कांग्रेस की इस रणनीति का फायदा उठाते हुए हिंदू-मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण करने में सफलता पाई है।
  5. धारा 370 का विरोध: जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को हटाने के खिलाफ कांग्रेस का रुख, विशेष राज्य की सुरक्षा के नाम पर आतंकवाद के समर्थन के रूप में देखा जा सकता है।
  6. रोहिंग्या शरणार्थी: कांग्रेस ने अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे पर सहानुभूति का रुख अपनाया है, जबकि सरकार ने इन्हें देशविरोधी गतिविधियों में शामिल करार दिया है। कांग्रेस का कहना है कि सरकार एक स्पष्ट नीति पर आगे नहीं बढ़ रही है।
  7. कांग्रेस का मुस्लिम प्रेम: यह आरोप लगाया गया है कि कांग्रेस का मुस्लिम प्रेम चुनावी फायदे के लिए है। जबकि कांग्रेस ने 50 वर्षों तक शासन किया, मुस्लिम समुदाय के विकास में कोई विशेष सुधार नहीं आया।
  8. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आरोप: पीएम मोदी ने कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाया, और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक बयान का हवाला दिया जिसमें अल्पसंख्यकों के लिए संसाधनों पर पहले हक की बात की गई थी।

निष्कर्ष:

कांग्रेस की ये राजनीतिक गतिविधियां उसके अल्पसंख्यक वोट बैंक की रक्षा के प्रयासों को दर्शाती हैं, लेकिन इसके साथ ही यह भी दिखाती हैं कि पार्टी अपनी चुनावी रणनीतियों में किस हद तक जाती है। भाजपा और अन्य विपक्षी दल इस प्रकार के मुद्दों का इस्तेमाल करते हुए अपने वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे राजनीतिक परिदृश्य में तनाव बढ़ता है। इस प्रकार, देश की राजनीति में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदायों के बीच संतुलन बनाए रखना एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।कांग्रेस की मुस्लिम समुदाय के प्रति नीतियों की आलोचना इस बात पर केंद्रित है कि पार्टी अपनी चुनावी गणनाओं को ध्यान में रखते हुए कई बार दोहरा रुख अपनाती है। इस तरह के मुद्दे न केवल राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ाते हैं, बल्कि समुदायों के बीच विश्वास की कमी भी पैदा करते हैं। भाजपा ने इस स्थिति का लाभ उठाकर अपने हिंदू वोट बैंक को मजबूत किया है। कांग्रेस की यह रणनीति राजनीतिक दृष्टि से लाभकारी हो सकती है, लेकिन इससे समाज में विभाजन की संभावनाएं भी बढ़ सकती हैं।

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