
चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी, जो बांग्लादेश में एक प्रमुख हिंदू नेता के रूप में जाने जाते हैं, अपनी गर्मजोशी और मिलनसार व्यक्तित्व के लिए प्रसिद्ध हैं। वे अक्सर अपने अभिवादन में “प्रभु प्रणाम” कहते हैं, जो उनकी सरलता और आत्मीयता को दर्शाता है। हालांकि, उनके व्यक्तित्व के पीछे एक दृढ़ निश्चय और संघर्ष भी छिपा है, जो हाल ही में एक घटना के दौरान और स्पष्ट हुआ।
इस सप्ताह मंगलवार को जब चिन्मय कृष्ण दास को चटगाँव की अदालत से जेल की वैन में ले जाया जा रहा था, तब उन्होंने जेल से जाते समय अपनी मुट्ठी बंद की और विजय चिह्न दिखाया, साथ ही दोनों हाथों की उंगलियाँ बंद करके सनातनियों को एकजुट रहने का संदेश दिया। उनका यह इशारा साफ तौर पर उनके मजबूत विश्वास और हिंदू समाज के लिए उनकी प्रतिबद्धता को व्यक्त करता है।
चिन्मय कृष्ण दास को बांग्लादेश में सोमवार को ढाका पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था। उन्हें एक महीने पहले दर्ज किए गए देशद्रोह के मामले में ढाका अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया गया। उनकी गिरफ्तारी बांग्लादेश में हिंदू नेताओं के खिलाफ बढ़ते दबाव और उत्पीड़न को लेकर चिंता का विषय बन गई है। उनके खिलाफ मामला एक धार्मिक और राजनीतिक विवाद का हिस्सा बन गया है, जो बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों और सुरक्षा से जुड़ा हुआ है।
चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी और उनके द्वारा जेल में भेजे गए संदेश ने यह सवाल उठाया है कि बांग्लादेश में धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की स्थिति क्या है, खासकर जब बात हिंदू समुदाय की होती है। यह घटना न केवल बांग्लादेश बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में धार्मिक सद्भाव और अधिकारों की रक्षा के सवालों को सामने लाती है।