
सीजेआई संजीव खन्ना ने न्यायिक सुधारों के संदर्भ में महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए हैं। अपने कार्यभार संभालने के दूसरे दिन, मंगलवार को उन्होंने एक नई न्यायिक प्रक्रिया और नागरिक-केंद्रित एजेंडा की रूपरेखा प्रस्तुत की, जो न्यायपालिका में पारदर्शिता और प्रभावशीलता को बढ़ावा देने पर जोर देती है। उनका यह कदम न्यायपालिका में सुधार और आम नागरिकों के लिए न्याय तक आसान पहुँच सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
सीजेआई संजीव खन्ना ने यह स्पष्ट किया कि अब किसी भी मामले में जल्द सुनवाई की मांग मौखिक तौर पर नहीं सुनी जाएगी। उनके अनुसार, न्यायिक प्रक्रिया में इस बदलाव का उद्देश्य पारदर्शिता को बढ़ाना और प्रशासनिक दबाव को कम करना है। उन्होंने कहा कि अब केवल ईमेल या लिखित पर्ची/पत्र के माध्यम से ही तत्काल सुनवाई की आवश्यकता के बारे में जानकारी दी जाएगी, और इसमें यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाएगा कि क्यों तत्काल सुनवाई की आवश्यकता है।
सीजेआई ने इस बात पर भी जोर दिया कि न्याय तक आसान पहुँच और समान व्यवहार सुनिश्चित करना न्यायपालिका का संवैधानिक कर्तव्य है। उनका यह बयान न्यायपालिका में नागरिकों की स्थिति की परवाह किए बिना न्याय देने के सिद्धांत पर आधारित है। सीजेआई के मुताबिक, न्याय का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों के लिए समान रूप से लागू होना चाहिए, और विशेष रूप से गरीब, असमर्थ और कमजोर वर्गों के लिए न्यायिक प्रक्रिया को सुगम और सुलभ बनाना आवश्यक है।
संजीव खन्ना ने न्यायिक सुधारों के लिए एक नागरिक-केंद्रित एजेंडा तैयार किया है, जिसमें न्यायपालिका के कार्यों को नागरिकों के दृष्टिकोण से देखा जाएगा। इस एजेंडे में न्याय तक पहुँच, पारदर्शिता, और समाज के सभी वर्गों के लिए समान न्याय सुनिश्चित करने के उपाय शामिल हैं। उनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यायपालिका समाज के प्रत्येक व्यक्ति को त्वरित और निष्पक्ष न्याय प्रदान कर सके।अपने पदभार ग्रहण करने के दूसरे दिन सीजेआई ने वकीलों को स्पष्ट और दृढ़ तरीके से समझाया कि वे किसी भी मामले में मौखिक रूप से जल्द सुनवाई की मांग नहीं कर सकते। यह एक सख्त कदम है, जिसे न्यायपालिका के कार्यों में सुधार लाने के लिए उठाया गया है। इसका उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया को बेहतर, सुव्यवस्थित और पारदर्शी बनाना है, ताकि सभी को समान अवसर मिले और प्रक्रिया में किसी प्रकार की गड़बड़ी या अनुशासनहीनता न हो।