महिला दिवस पर बोलीं सिलेब्रिटीज़

मुंबई। औरतों से जमाने ने हमेशा यही उम्मीद की है कि वो चुप रहे। कुछ गलत भी हो, तो सह जाए। अपने हिस्से का हक़ और इज्जत ना मिले, तो भी समझौते कर लें। आखिर, समझौते करना, सहनशीलता, धैर्य, यही सब तो औरत का गहना है, लेकिन आज नए दौर की बहुत सी औरतें इन दकियानूसी बातों नहीं मानतीं। आज वे अपने हिस्से की बराबरी और सम्मान के लिए पुरजोर आवाज उठाती हैं, जिससे समाज के एक बड़े तबके को दिक्कत भी होती है। पितृसत्तात्मक सोच के ये सिपाही विमन एंपावरमेंट और फेमिनिजम जैसी सोच को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर देते हैं, लेकिन आज की लड़कियां जमाने की नहीं, शायर ज़िया जालंधरी की इस नसीहत में में यकीन रखती हैं कि ‘हिम्मत है तो बुलंद कर आवाज़ का अलम, चुप बैठने से हल नहीं होने का मसला।’ ऐसे में, सुनिए, समाज में अपना एक बड़ा कद बना चुकीं बॉलिवुड की इस बेबाक लड़कियों की बुलंद आवाज:

मर्द और औरत के बीच गैर बराबरी पूरे देश, पूरे जहान में है। इसीलिए हम फेमिनिजम की बातें करते हैं, क्योंकि हमें बराबरी चाहिए। यह कहना है, कबीर सिंह, द बिग बुल जैसी फिल्मों और द वेकिंग ऑफ अ नेशन जैसी फिल्मों और शोज की अदाकारा निकिता दत्ता का। बकौल निकिता हर लड़की का हक़ है कि वह घर से निकले तो सुरक्षित महसूस करे। जहां वह काम करे, वहां बराबर महसूस करे। मैं अपनी फिल्म इंडस्ट्री की भी बात करूं तो यहां भी मर्द और औरत के बीच भेदभाव है। यही वजह है कि विमंस डे ओर विमन राइट्स पर बोलना जरूरी है, क्योंकि आज भी हम बराबरी के लिए लड़ रहे हैं। फेमिनिजम से हमारा मतलब ये नहीं है कि आप लड़कियों को आगे रखें। आप बस हमें बराबर समझें, बराबरी के मौके दें।

मनमर्जियां, हसीन दिलरुबा, रश्मि रॉकेट जैसी फिल्मों में अपनी लेखनी से औरतों को सशक्त बनाने वाली राइटर-प्रड्यूसर कनिका ढिल्लन कहती हैं, ‘औरतें अपने लिए बोल सकें, दूसरी औरतों के लिए खड़ी हो सकें, मेरे लिए यही सशक्तिकरण है। फेमिनिजम अवसर और प्रतिनिधित्व में समानता की बात है, जो नॉर्मल बात होनी चाहिए। बराबरी के लिए बोलना होगा, ताकि अगली पीढ़ी की औरतों को इसके लिए आवाज न उठानी पड़े, क्योंकि अभी तो ये गैर-बराबरी हर उस स्तर पर दिखती है जब हम औरतों को दोषी ठहराते हैं, उनमें अपराधबोध भरते हैं, उनकी क्षमताओं और उपलब्धियों को पुरुषों के मुकाबले कमतर आंकते हैं। एक सशक्त महिला आज भी कठिन होने और ना जाने कैसे कैसे लेबल से लड़ती हैं। लोग उसकी मेहनत या प्रतिभा को सराहने के बजाय उसका क्रेडिट छीनने का बहाना ढूंढ़ते हैं कि अरे, ये तो वहां तक इसकी मदद से या इस वजह से पहुंची। जबकि, यह एक औरत का बुनियादी अधिकार है कि उनके पास आवाज़ हो, उनकी अपनी राय हो और महत्वाकांक्षाएं हो। इसलिए, वुमनहुड का जश्न मनाना और आवाज उठाना बहुत जरूरी है। यहां मैं मलाला यूसुफजई की बात दोहराना चाहूंगी-मैं अपनी आवाज़ उठाती हूं, चिल्लाने के लिए नहीं, बल्कि इसलिए, ताकि वे महिलाएं जो आवाज़ नहीं उठा सकतीं, वे भी सुनी जा सकें।

दबंग 2, हीरोपंती, प्यार का प्रफेसर जैसी फिल्मों और वेब शोज की ऐक्ट्रेस संदीपा धर के मुताबिक, ‘फेमिनिजम बराबरी की बात है। जैसे, वर्क प्लेस पर लड़की को भी लड़के के बराबर मौका मिलना चाहिए। बराबर सैलरी मिलनी चाहिए। इसी तरह लड़के को भी घर के काम करने चाहिए। इसमें भेदभाव नहीं होना चाहिए। हम ये नहीं कह रहे कि मर्द बुरे हैं। हम कह रहे हैं कि हमें भी बराबर रिस्पेक्ट, बराबर मौके मिले, जो नहीं मिलती है। अगर आपका ड्राइवर आपकी बात नहीं सुनता, पर आपके हसबैंड की सुनता है यह दिखाता है कि हमारा देश कहां है। हमारी फिल्म भी हर कदम पर गैर बराबरी से भरी हुई है। सेट पर हीरो को ज्यादा तवज्जो मिलना, होटल में कमरे बेहतर मिलना, गाड़ियां बेहतर मिलना, शूटिंग शेड्यूल, डबिंग डेट उनके हिसाब से होना, ये कड़वी सचाई है। चूंकि, लड़कियां आज बोल रही हैं कि ये नहीं चलेगा भाई ! या फिर बच्चे पालना सिर्फ मेरा काम नहीं है, तो आपको दिक्कत हो रही है !

जुगनू, उल्लू का पट्ठा, नाच मेरी रानी जैसे कई सुपरहिट गानों की सिंगर निकिता गांधी कहती हैं, ‘पुरुष और महिला दोनों बराबर नहीं हैं। दोनों की अपनी ताकत और कमजोरी है। अपनी खूबसूरती, अपनी जगह है और हमें उसे अपनाना चाहिए, उसका सम्मान करना चाहिए, यही एंपावरमेंट और फेमिनिजम है। हम सभी औरतें आज भी किसी ना किसी रूप में गैर बराबरी झेलती हैं। कई पेशे या काम को आज भी जेंडर से जोड़ दिया जाता है कि ये तो औरतें नहीं कर पाएंगी। क्यों? आप हमारा हुनर देखो ना, जेंडर क्यों देखते हो ! ये चीजें हम बहुत झेलते हैं और ये पितृसत्तात्मक सोच सिर्फ मर्दों तक सीमित नहीं है। औरतें खुद भी एक दूसरे को सपोर्ट कम, जज ज्यादा करती हैं। मैं चाहती हूं कि यह चीज बदले। मैं औरतों को एक-दूसरे को सपोर्ट करते, एक-दूसरे के लिए खड़ी होते ज्यादा देखना चाहूंगी। मेरे लिए यह वुमन एंपावरमेंट का बड़ा हिस्सा है। इसीलिए, मैं एक ऑल विमन म्यूजिक फेस्टिवल सोनिक टाइग्रेस आयोजित कर रही हूं, जहां सिंगर से लेकर साउंड इंजीनियर्स, टेक्निशियंस, ऑडियंस सब लड़कियां होंगी। यह औरतों को एंपावर करने, एक-दूसरे को सपोर्ट करने की मेरी एक एक पहल है। चूंकि, महिलाओं को हर काम में दोयम दर्जे का समझा जाता रहा है, इसीलिए विमंस डे सेलिब्रेट करना चाहिए, क्योंकि यह याद दिलाता है कि हम इस मामले में कितने आगे बढ़े हैं।

ड़चढ़ी और डेढ़ बीघा जमीन जैसी फिल्मों में नजर आईं ऐक्ट्रेस खुशहाली कुमार का कहना है कि जब एक महिला सशक्त होती है तो पूरा घर सशक्त होता है। इसलिए, महिला सशक्तिकरण सिर्फ एक जेंडर की बात नहीं है, पूरे समाज, पूरे देश को सशक्त करने की बात है। एक विकसित और सबल समाज के लिए लड़कियों का सशक्त होना जरूरी है। इसलिए, इस बारे में बोलने रहना भी जरूरी है। मेरा कहना है कि आप सिर्फ लड़कियों को बराबर मौके दे दो, बाकी तमाम कठिनाइयों के बावजूद वे अपनी क्षमता और दृढ़ता से हर ऊंचाई छू लेंगी। बराबरी हर किसी का, लड़कियों का भी बुनियादी अधिकार है।

जानी-मानी अदाकारा सोनाली कुलकर्णी के अनुसार, ‘महिला शक्ति का जश्न मनाना जरूरी है और सही मायने में लड़कियां एक-दूसरे का हाथ पकड़कर ही सशक्त हो सकती हैं। हमें एक-दूसरे की मेहनत, टैलंट को सराहना चाहिए और एक-दूसरे के मुश्किल वक्त में खड़ा होना चाहिए। जब तक हम एक नहीं होंगी, तब तक समाज की सोच में बदलाव भी नहीं आएगा। जैसे, हमारी फिल्म इंडस्ट्री में भी कभी कैट फाइट की बातें होती थीं। मैंने खुद भी सेट पर ये चीजें देखी हैं, लेकिन कभी उसका हिस्सा नहीं रही। मैंने ब्राइड ऐंड प्रिज्यूडिस जैसी फिल्म की है, जिसमें कई ऐक्ट्रेसेज थीं। इसके अलावा, प्रिटी जिंटा, उर्मिला मातोंडकर, रवीना टंडन के साथ काम किया है और सभी के साथ बहुत मजा आया। यह सिस्टरहुड की भावना ही हमें आगे ले जाएगी और हमें सशक्तिकरण के सपने को एक कदम करीब पहुंचाएगी।’

Related Articles

Back to top button