
मुंबई। फिल्मों के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन पर बीते कुछ साल से लगातार सवाल उठ रहे हैं। आरोप लगते हैं कि मेकर्स बढ़ा-चढ़ाकर फिल्मों की कमाई बताते हैं, ताकि दर्शक थिएटर तक पहुंचे। टिकट बुकिंग प्लेटफॉर्म्स पर शोज हाउसफुल दिखते हैं, लेकिन जब लोग सिनेमाघर पहुंचते हैं तो वहां सीटें खाली होती हैं।
इसी कड़ी में ‘ब्लॉक बुकिंग’ और ‘कॉरपोरेट बुकिंग’ जैसे शब्द भी सामने आए। ट्रेड एनालिस्ट कोमल नाहटा ने अक्षय कुमार और वीर पहाड़िया की ‘स्काई फोर्स’ के निर्माताओं पर अच्छी बॉक्स-ऑफिस रिपोर्ट दिखाने के लिए ब्लॉक बुकिंग का आरोप लगाया।
यह भी दिलचस्प है कि विक्की कौशल और रश्मिका मंदाना की ‘छावा’ के निर्माता भी ‘मैडॉक फिल्म्स’ हैं, जो ‘स्काई फोर्स’ के भी प्रोड्यूसर हैं। जाहिर है इन आरोपों से पूरी भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की विश्वसनीयता दांव पर लगी है। फिर चाहे वो बॉलीवुड की फिल्में हो या साउथ सिनेमा की।
ट्रेड एनालिस्ट अतुल मोहन बताते हैं, ‘इसे ऐसे समझिए कि अगर कोई एक्टर 20 ब्रांड का विज्ञापन करता है तो वह एक ब्रांड से, उदाहरण के लिए, अपनी नई रिलीज फिल्म के 10,000 टिकट खरीदने के लिए कहते हैं। बदले में वो विज्ञापन की अपनी फीस में कुछ रियायत दे देता है या फिर मुफ्त में विज्ञापन शूट करता हैं। इसका मतलब है कि 10,000 टिकट कानूनी रूप से बिके हैं। अब भले ही जब शो शुरू हो तो थिएटर अंदर से खाली हो जाए। इसे कॉरपोरेट बुकिंग कहते हैं।’