देश में आम चुनाव होने हैं लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पश्चिम बंगाल को लेकर अलग ही तैयारी की है। केंद्र में सत्तारूढ़ यह दल इस लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में अपनी ताकत इतनी बढ़ा लेना चाहता है, जिससे साल 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव में वह यहां सत्ता हासिल कर सके। भाजपा इस बार पश्चिम बंगाल से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को उखाड़ फेंकने का इरादा लेकर काम कर रही है। उसे पता है कि वामपंथी दल और कांग्रेस का आधार इस राज्य से लगभग खत्म हो गया है। ऐसे में अगर टीएमसी को उखाड़ दिया जाए तो इस राज्य में भी भाजपा की सरकार आसानी से बन सकती है।
पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं। यह राज्य भाजपा के लिए चुनौती बना हुआ है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित किया और पहली बार देश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी तब भी पश्चिम बंगाल से उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी। बमुश्किल दो सीटों पर खाता खुल सका था। पर, भाजपा निराश नहीं हुई और अगले चुनाव की तैयारी में जुट गई। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में उसकी सीटें बढ़कर डेढ़ दर्जन तक पहुंच गईं। ये परिणाम भाजपा के लिए उत्साहजनक रहे।
इसके बाद उसने और ताकत के साथ कार्यकर्ताओं की मदद से पश्चिम बंगाल की जनता के दिलों में जगह बनाने का अभियान शुरू किया। लगातार उसके कार्यकर्ता आम लोगों के बीच बने हुए थे। इसका फायदा साल 2021 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को मिला। पश्चिम बंगाल के चुनावी इतिहास में पहली बार भाजपा को विधान सभा में 77 सीटें मिलीं। हालांकि भाजपा ने सरकार बनाने के इरादे से तैयारी की थी। भगवा दल टारगेट तो नहीं अचीव कर पाई लेकिन इन परिणामों ने उसका उत्साह जरूर बढ़ाया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस चुनाव में भाजपा के सुवेंदु अधिकारी से चुनाव हार गईं थीं। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि भाजपा के पास इससे पहले बंगाल की विधानसभा में केवल तीन सदस्य थे। इस तरह विधानसभा में उसके 3 से 77 सदस्य हुए और लोगसभा में 2 से बढ़कर 18 सदस्य पहुंच गए।
भाजपा को यह स्पष्ट लगता है कि यही वह समय है कि जब और ताकत से जुटकर लोकसभा चुनाव में अपनी ताकत बढ़ा ली जाए। इससे साल 2026 के विधानसभा चुनावों का रास्ता भी साफ होगा और मोदी के 400 पार नारे को भी बल मिलेगा। क्योंकि एनडीए को 400 और भाजपा को 370 का आंकड़ा पाने की राह में पश्चिम बंगाल की बड़ी भूमिका हो सकती है। साल 2019 के चुनाव में भाजपा ने उत्तर भारत में ज्यादातर सीटें जीत ली थीं। कर्नाटक को छोड़कर अन्य दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश तथा केरल उसके लिए अभी भी अभेद्य किले के रूप में ही बने हुए हैं। ऐसे में पश्चिम बंगाल महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
यहां से सीटें बढ़ने का मतलब होगा कि भाजपा अपने लक्ष्य 370 के करीब होगी, ऐसा अनुमान पदाधिकारी लगा रहे हैं। भाजपा चाहती है कि लोकसभा में इस बार कम से कम 30-32 सीटें उसके खाते में आएं। उसे लगता है कि इस बार यह आसानी से हो जाएगा क्योंकि राज्य में तृणमूल कांग्रेस का वह जादू अब नहीं रहा। संदेशखाली जैसी घटनाओं के अलावा अनेक घोटाले और उनमें लगातार केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई से तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं के हौसले भी पस्त हैं। केंद्रीय एजेंसियों के हाथ ममता बनर्जी के भाई अभिषेक तक भी पहुंच गए हैं।