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भारत रत्न नानाजी देशमुख ने सियासत में कुर्सी नहीं बुलंदी हासिल की

आज यानी की 11 अक्तूबर को भारत रत्न से सम्मानित नानाजी देशमुख का जन्म हुआ था। उन्होंने देश की सियासत में कुर्सी नहीं बुलंदी हासिल की थी। वहीं नानाजी देशमुख ने महारानी राजलक्ष्मी को उन्हीं के राज्य में शिकस्त दी थी। साथ ही देशमुख ने महारानी के महल में मुलाकात के दौरान कहा था कि आपकी प्रजा ने मुझे चुना है। नानाजी ने संघ को कंधो पर उठाकर खड़ा किया और फिर समाजसेवा के लिए सियासत को छोड़ दिया।

जन्म

आज ही के दिन यानी की 11 अक्तूबर को 1919 को महाराष्ट्र के हिंगोली में नानाजी देशमुख का जन्म हुआ था। वह एक गरीब मराठी ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। देशमुख जहीनियत और विद्वता में सम्राट जितने अमीर थे।

आरएसएस को संभाला

आरएसएस संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से नानाजी के पारिवारिक जैसे संबंध थे। हेडगेवार ने देशमुख की उभरती सामाजिक प्रतिभा को पहचान लिया था। जिसके कारण हेडगेवार ने देशमुख को संघ की शाखा में आने को कहा। साल 1940 में हेडगेवार की मृत्यु के बाद नानाजी के कंधों पर संघ की स्थापना का दायित्व आ गया। वहीं उन्होंने इस दायित्व को अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य बना लिया और अपना पूरा जीवन संघ को समर्पित कर दिया।

बलरामपुर की महारानी को दी मात

चुनाव में बलरामपुर स्टेट की महारानी राजलक्ष्मी कुमारी देवी को नानाजी देशमुख ने करारी शिकस्त दी। चुनाव में जीत मिलने के बाद देशमुख महारानी से मिलने उनके महल गए। दोनों की यह मुलाकात बेहद सहज और सौहार्दपूर्ण रही। नानाजी ने महारानी राजलक्ष्मी कुमारी देवी से कहा कि आपकी प्रजा ने मुझे चुना। मैं क्षेत्र के विकास के लिए कोई कसर नहीं छोड़ूंगा। 

उन्होंने महारानी से कहा था, अब मेरा कर्तव्य है कि मैं आप जैसे लोगों के साथ रहूं और हर सुख-दुख का भागीदार बनूं। नानाजी ने कहा कि आप यहां की महारानी हैं और मुझे रहने के लिए एक घर दीजिए। वहीं महारानी ने भी उनको निराश नहीं किया। महारानी ने देशमुख से कहा कि बलरामपुर एस्टेट के महाराजगंज की धरती आज से आपकी हुई।

ऐसे बसाया जयप्रभा नामक गांव

नानाजी देशमुख ने एक नया गांव बसाया था, जिसका नाम उन्होंने जयप्रभा रखा। जय का मतलब जयप्रकाश नारायण और प्रभा का मतलब उनकी पत्नी प्रभावती से था। जब तक वह जीवित रहे, तब तक उस गांव को अपने आदर्शों के अनुरूप चलाते रहे। देशमुख को 2,17,254 वोट मिले, तो वहीं महारानी को 1,14,006 वोटों के अंतर से हराया। यह अब तक उनकी सबसे बड़ी जीत थी।

समाजसेवा में बिताया पूरा जीवन

बता दें कि पहली बार चुनाव जीतने के बाद देशमुख ने साल 1980 के लोकसभा चुनाव में हिस्सा नहीं लिया था। उन्होंने राजनीति से सन्यास लेकर अपना पूरा जीवन समाजसेवा को समर्पित कर दिया। वह एक सच्चे समाजसेवी और देशभक्त थे। उनके कार्यों को देखते हुए नानाजी देशमुख को सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

मृत्यु

वहीं साल 1989 में भारत भ्रमण के दौरान नानाजी पहली श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट पहुंचे। फिर वह चित्रकूट में रहने लगे। चित्रकूट के गांवों की दुर्दशा देखकर उन्होंने लोगों के लिए काम करने का फैसला लिया। 27 फरवरी 2010 में नानाजी देशमुख का निधन हो गया था।

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