खुद का दुश्मन बना बांग्लादेश

आदर्श चौहान

बच्चा पैदा करने के कठोर कष्ट और बाद के अद्भुत व अलौकिक असीम आनंद के अनुभव के बारे में एक मां के अलावा पूरी दुनिया में कोई नहीं बता सकता। इसके विपरीत उस इंसान के पद, कद, गदगद मद और अद्वितीय आनंद का अंदाजा लगाइए, जिसने दुनिया में एक नया देश पैदा कर दिया हो। यह कारनामा दुनिया में चंद शासनाध्यक्ष ही कर पाए हैं। वह भी इंदिरा गांधी ने तब कर दिखाया था, जब भारत महज 23 साल का था एवं दुनिया में पैर जमाने की कोशिश में रत था। अमेरिका ब्रिटेन जैसे देश न भारत यात्रा पसंद करते थे और न बराबर में बैठाना। सोचा जा सकता है कि इन हालात में पूर्वी पाकिस्तान को आततायी पाकिस्तानी सेना से आजादी दिलाकर बांग्लादेश बनाने के लिए तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री को क्या-क्या झेलना पड़ा होगा, नई पीढ़ी इससे पूरी तरह अंजान है?

व्यक्तित्व के साथ उनके महान कृतित्व को फिल्म इमरजेंसी के जरिए नई पौध के सामने रखा है हिमाचल प्रदेश के मंडी की भाजपा सांसद कंगना राणावत या रनौत ने। दुनिया के अलंबरदार देशों को अपने पक्ष में करने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़े थे, दुनिया का दौरा कर कितनी दूर तक फील्डिंग सजानी पड़ी थी? यह सब फिल्म में दिखाया गया है। दुनिया भर में कुख्यात अमेरिकी नौ सेना का सातवां बेड़ा उनके खिलाफ बंगाल की खाड़ी तक पहुंच गया था। राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के इस अग्रिम बेड़े में 60-70 जलपोत व पनडुब्बी, करीब 150 फाइटर जेट और 27000 से ज्यादा नाविक और मरीन थे, जिन्हें भारत पर हमले के आदेश भी दिए जा चुके थे, पर तब तक करीब एक लाख पाक सेना सरेंडर कर चुकी थी और दुनिया के मानचित्र पर बांग्लादेश का उदय हो चुका था, पाक के आतंक से त्रस्त नेता और जनता इंदिरा गांधी को मां कहकर जय जय कार कर रहे थे।

इससे पहले कि बांग्लादेश इस्लामिक देश बन जाए। यही सब किया जाना चाहिए था 2024 में भी। माना कि दुनिया के हालात अब जुदा हैं तो अपनी सेना न उतार कर वहां के अल्पसंख्यक बेटियों की रक्षा के लिए एक बार फिर मां बनने का प्रयास भारत को जरूर करना चाहिए था। भले सौतेली मां ही सही। संयुक्त राष्ट्र संघ और दुनिया भर के कलाकारों को मजबूर कर देना चाहिए था कि अल्पसंख्यकों के जान-माल व मान-सम्मान की रक्षा के लिए यूएन के झंडे तले अंतर्राष्ट्रीय शांति सेना (पीस कीपिंग फोर्स) तुरंत भेजी जाए क्योंकि वहां जो कुछ साल भर से चल रहा है, उसका उदाहरण किसी सभ्य देश में शायद ही देखने को मिले। तस्लीमा नसरीन की लज्जा के पात्र अब्दुल ने जो कुछ किया था, वही सब बांग्लादेश में फिर हो रहा है। 90 के दशक में यही सब अब्दुल ने कश्मीर घाटी में किया था। उसी चरित्र की चर्चा करीब डेढ़ दशक से भारतीय सोशल मीडिया पर दिन भर होती रहती है। अतीत में बहुत कुछ हुआ है।

1947 के भारत-पाक के बंटवारे में यही सब हुआ था तो 1971 में पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान में भी यही सब किया था और पाकिस्तानी फौज सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तून ख्वा में दशकों से यही लूट-खसोट, मार-काट, हत्या, बलात् धर्म परिवर्तन व बलात्कार कर रही है, जो कि आज तक जारी है। जख्म और जूते को नजरअंदाज करके बांग्लादेश की आजादी के नायक, जिनका संघर्ष ही देखकर भारत ने फौज भेजी थी, जान तक कुर्बान करने वाले, इंदिरा को बांग्लादेश की मां बताने वाले और उर्दू या हिंदी के बजाय बांग्ला बोलने वाले बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान के ढाका स्थित स्टेच्यू तक की जो इज्जत न कर सके, वे एहसान फरामोश भारत की क्या खाक इज्जत करेंगे?

हाल ही में उनके घर को हजारों की भीड़ ने आग लगा दी और बुलडोजर से ढहा दिया। इन हालात के बाद भी मो. यूनुस और उनके मंत्री जब सर्वधर्म समभाव की बात करते हैं तो लगता है कि दुनिया के सभ्य देशों को बेअदब तरीके अदब की भाषा में बा अदब गरिया रहा है। पूरी दुनिया ने देख लिया है कि वह कितना सभ्य देश है और वहां अल्पसंख्यक कितना सुखी व सुरक्षित है? कोई कदम नहीं उठाने वाली अंतरिम सरकार के किसी नेता में उक्त कृत्य की निंदा तक का साहस नहीं है क्योंकि यह उस रीति-नीति और कुर्सी के खिलाफ हो जाएगा, जिसके कारण मिली है। चुनाव आयोग ने अवामी लीग को आम चुनाव में हिस्सा लेने की इजाजत देने का मन बनाया था, पर कट्टरपंथियों के आगे उसने भी हथियार डाल दिए और चुनाव में हिस्सा लेने पर रोक लगा दी है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक पोस्ट में शेख हसीना ने लिखा कि बांग्लादेश के निर्माता का आखिरी निशान भी खत्म हो गया। रोओ, बांग्लादेश रोओ।

निर्वासन में रह रही प्रख्यात लेखिका तस्लीमा नसरीन ने इसे इस्लामिक आतंकवादियों का काम बताया। उन्होंने लिखा कि अगर हसीना के प्रति कोई नाराजगी है तो इस्लामी आतंकवादी शेख मुजीब के संग्रहालय पर हमला करके उसे क्यों जला रहे हैं? क्या कुर्सी छीनकर हसीना को देश से बाहर निकालना काफी नहीं था? उन्होंने कहा कि पाकिस्तान समर्थक आतंकी बांग्लादेश को इस्लामिक देश बनाना चाहते हैं। इसे ही भारतीय मीडिया कह रहा है बांग्लादेश ने बदल दिया बाप। उन्होंने कहा कि ये वही लोग हैं, जो कभी स्वतंत्र बांग्लादेश नहीं चाहते थे, जिन्होंने धर्मनिरपेक्षता को नकार दिया था, जो 1971 में एक इस्लामी राज्य चाहते थे, जो पाकिस्तान जैसे उग्रवादी राज्य के साथ गठबंधन करना चाहते थे। वे और उनके वंशज ही आज सब कुछ जला रहे हैं। वे जो कट्टर मुसलमान हैं, जो काफिरों से घृणा करते हैं, जो स्त्री द्वेशी हैं।

बीते साल पांच अगस्त से वे शेख मुजीब और मुक्ति संग्राम के इतिहास को मिटाने में लगे हुए हैं। तख्ता पलट की घटना के बाद घेराव व जबरन इस्तीफा आदि लेने से कोर्ट खुद इतना डर गई थी कि शब्द निकलने ही बंद हो गए थे। देर से सही, पर बांग्लादेश हाईकोर्ट ने हिम्मत की है बोलने की। उसने अंतरिम सरकार से पूछने की हिम्मत जुटाई है कि बांग्लादेश सम्मिलित सनातनी जागरण जोत के प्रवक्ता चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी को जमानत क्यों नहीं दी जानी चाहिए? ज्ञात हो कि राष्ट्रद्रोह का आरोप लगाकर 25 नवंबर 2024 से वह जेल में हैं। अब राष्ट्रद्रोह में ही अभिनेत्री मेहर अफरोज को गिरफ्तार किया गया है। इससे पहले हजारों गुंडों, माफिया व आतंकियों को जेल से रिहा कर उनकी जगह अवामी लीग के नए हजारों लोगों को ठूंस दिया गया है।

सर्वे से पता चला है कि बांग्लादेश में करीब 28 फीसदी लोग ऐसे हैं, जो पाकिस्तान से भी नफरत करते हैं। यह मार खाने वाली पुरानी पीढ़ी के हैं या वे हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष में अपनों को खोया था। इसके विपरीत 70 फीसदी से अधिक ऐसे हैं, जिन्हें भारत फूटी आंखों नहीं सुहाता। इनमें से 90 फीसदी से ज्यादा युवा थे। बाकी आधे में से आधे को दुनिया के दूसरे देश अच्छे लगते हैं। एक बात चौंकाने वाली है, अधिकांश पुरुषों ने जहां मत पाकिस्तान को दिया है, वहीं अधिकांश महिलाओं ने भारत को दिया। यह इसलिए खास मायने नहीं रखता, क्योंकि वहां महिलाएं खुद दोयम दर्जे की वस्तु मानी जाती हैं। हालांकि, नॉन मुस्लिम (हिंदू, बौद्ध व ईसाई) में दोनों देशों के मामले में बहुत फर्क है। अगर सिर्फ मजहब के आधार पर लोग वोट देते तो 90 फीसदी नापाक पाक को पसंद करते व बाकी 10 फीसदी दुनिया के दूसरे देशों को। नॉन मुस्लिम के मामले में यही आंकड़ा उलट है।

छात्रों को पहली बार नौकरी के बजाय सीधे सत्ता सुख मिला है तो उन्होंने सर्वे में अमेरिका को शीर्ष पर रखा है। समय के साथ अमेरिका के चश्मे से धुंध अपने आप छंट जाएगी। उधर, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की मानें तो अगस्त क्रांति के बाद बांग्लादेश चमत्कार करेगा। उसके इस बयान से जहां कई लोग खुश हो सकते हैं, एक रोटी ज्यादा खा सकते हैं तो कई के लिए पश्चिमी देशों का नया शिगूफा हास्य का विषय भी हो सकता है, क्योंकि जहां की घटिया कानून एवं व्यवस्था की चर्चा दुनिया के कोने-कोने तक हो, बीते 53 साल में तीन करोड़ के करीब लोग भारत या दूसरे देशों में घुस गए हों, वह देश अगले 51 साल में पाकिस्तान जैसे पचासों देशों को धता बताते हुए दुनिया की टॉप-10 अर्थव्यवस्था होगा और दुनिया की कुल जीडीपी में उसकी हिस्सेदारी 1.5 फीसदी से अधिक होगी।

भले ही अभी 437 बिलियन डॉलर के साथ दुनिया में 34वें पर है तो एशिया में 11वें नंबर पर। इतना ही नहीं अरबों की संपत्ति जलाने के बाद भी आईएमएफ ने किसी सधे हुए सिद्धहस्त ज्योतिषी की तरह 4.8 फीसदी की दर से ग्रोथ की भविष्यवाणी की है। यह भविष्यवाणी सच साबित होगी या नहीं यह तो आने वाला समय ही बताएगा। ज्ञात हो कि 4.7 अरब डॉलर का लोन अभी बांग्लादेश को मिला था तो अब मो. यूनुस ने तीन अरब डॉलर और मांगे हैं। यह दीगर बात है कि अभी मंजूरी एक अरब डॉलर की ही मिली है।

लखनऊ में दो लाख बांग्लादेशी घुसपैठिए

भारत को धर्मशाला कुछ लोगों द्वारा बनाया गया है तो बहुत से लोगों द्वारा बताया गया है, पर जाग चुके करोड़ों लोग अब 21वीं सदी में बराबर कह रहे हैं कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है। देश के दूसरे बड़े शहरों की तरह लखनऊ की भी हालत पतली होती जा रही है। मेयर सुषमा खर्कवाल द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति ने नगर निगम के 110 वार्ड के सर्वे के बाद कहा है कि 1.75 लाख से ज्यादा बांग्लादेशी बस गए हैं। करीब 2400 लोग हर चौराहे पर भीख मांगते हैं व नहीं देने पर गाड़ियों पर स्क्रैच कर दे रहे हैं। राजधानी में 7335 अवैध झुग्गियों की भी पहचान की है, जिन्हें निगम जल्द तोड़ेगा।

मेयर ने कहा कि जिस तरह से अवैध प्रवासी बढ़ रहे हैं, उससे लोकतंत्र, ट्रैफिक, ढांचा और ताना-बाना को खतरा हो गया है। इनमें से करीब 31000 लोग कूड़ा उठाने या बीनने में लगे हैं, जिससे हमारे लोग बेरोजगार हो रहे हैं। ये लोग हमारे संसाधन छीन रहे हैं। पटरियों के किनारे के पते पर आधार कार्ड भी बन गए हैं। पहली कार्रवाई उन पर होगी, जिन्होंने फर्जी आधार से प्लॉट बनाए हैं। निगम अधिकारियों की मिलीभगत की भी जांच करेंगे। ये दिन में कूड़ा बीनते वक्त रेकी करते हैं और रात में चोरी। दिन में सड़कों की भी सफाई करते मिल जाएंगे तो रात में घरों की। घुसपैठियों की मिल रही ऊर्जा का आलम देखिए, ठेला लगाने वालों पर निगम की टीम कार्रवाई करने गई तो हमला कर दिया। यदि कुछ नहीं किया गया तो दस साल में ही ये दोगुने हो जाएंगे।

नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह का कहना है कि हमारे पास में पर्याप्त संसाधन हैं। निगम अनाधिकृत लोगों को कूड़ा नहीं उठाने देगा। यूएनएचसीआर के नियम कुछ भी कहें और वे दुनिया के कितने ही सदस्य देशों पर लागू हों, पर अवैध प्रवासी (घुसपैठ) का मुद्दा दुनिया में 2025 के शुरू से ही सरगर्म है? दर्जनों परेशान मुल्कों के बजाय दृष्टांत के तौर पर यूएस को ही लें तो दुनिया भर के कई देशों के हजारों लोगों को तेजी से डिपोर्ट करने में जुटा है। दीगर बात है कि दुनिया भर में गुरिलग घुसपैठ एक बड़ा मुद्दा रहा है कई दशक से। इससे अधिकांश देश परेशान हैं तो कई डेमोग्राफी चेंज होने से भी। उम्मीद थी कि दिल्ली चुनाव में बांग्लादेशी घुसपैठिए मुद्दा बनेंगे, पर ऐसा हो न सका। वे कानून-व्यवस्था और वोटर लिस्ट के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन गए हैं। किसी भी दल ने इस पर उतना हो-हल्ला नहीं मचाया, जितना होना चाहिए था। असम से लेकर मुंबई तक कार्यक्रम चालू है।

दरअसल एक दशक सैकड़ों शहरों में कार्यक्रम चलेगा, तब कहीं भारत हो सकेगा घुसपैठिया मुक्त क्योंकि पूरे देश में इनकी संख्या डेढ़ करोड़ ढाई दशक पहले बताई गई थी, जो कि अब तीन करोड़ जरूर हो गई होगी। इस मुद्दे पर भारत में चार-पांच दशक से सिर्फ राजनीति और हीलाहवाली हो रही है। हाल के दशकों में इन्हें न सिर्फ खुले तौर पर आने दिया गया है, बल्कि कन्वर्टेड भारतीय मुसलमानों ने इनके स्वागत में घरों, मस्जिदों और मदरसों को खोल दिया। वे वामपंथी और मध्यमार्गी दलों के वोटर व कार्यकर्ता बन गए। ऐसे में उन्हें सियासी दलों का खुला समर्थन मिला और लोकल पते से आधार कार्ड, वोटर कार्ड व राशन कार्ड आदि बनने लगे।

सरकार बनाने के लिए नासूर को कई गुना बढ़ा दिया है कई दलों ने। इसी का नतीजा है कि दिल्ली में सिर्फ दो हफ्ते में सिर्फ एक मलिन बस्ती में आधार कार्ड आदि चेक किए गए तो करीब 200 बांग्लादेशी व रोहिंग्या मिले हैं। उधर, जेएनयू के हवाले से एक रिपोर्ट हर मीडिया प्लेटफार्म पर छाई हुई है, जिसमें कहा गया है कि दिल्ली में दो दर्जन के करीब ऐसे हॉट स्पॉट पकड़ में आए हैं, जहां वे बहुत बड़ी संख्या में जमे हुए हैं। करीब 20 लाख होने के कारण दिल्ली की डेमोग्राफी चेंज की बात भी बार-बार हो रही है। ये जहां मुफ्त पानी, बिजली व स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठा रहे हैं, वहीं उनकी बस्तियां संवेदनशील जगहों, जैसे-संसद भवन व सुप्रीम कोर्ट आदि से महज आठ-10 किमी की दूरी पर बनी हैं।

इनके कारण स्थानीय लड़के (लोबो) बहुत परेशान हैं क्योंकि उन्होंने कमोबेश हर तरह के रोजगार पर घटी दरों पर कब्जा जमा लिया है। एक और रिपोर्ट चौंकाती है कि 25 लोकसभा व 120 विधानसभा सीटों पर घुसपैठिए प्रभावी भूमिका में पहुंच चुके हैं। 2003 तक दिल्ली में छह लाख बांग्लादेशी भारतीय पहचान पत्र गद्दारों की मदद से हासिल कर चुके थे। चूंकि हजारों राष्ट्रदोही “24 ग7” इसी काम में लगे हैं और इसके लिए विदेशी फंडिंग के भी लगातार सुबूत मिल रहे हैं तो सोचा जा सकता है कि सैकड़ों गांवों, शहरों, महानगरों व अन्य हिस्सों का बीते दो दशक में क्या हाल हुआ होगा?

साल 2000 में भारत के गृह सचिव माधव गोडबोले की सौंपी एक रिपोर्ट की मानें तो तब करीब 1.5 करोड़ बांग्लादेशी अवैध रूप से भारत में रह रहे थे, जो कि अब रोहिंग्या को मिलाकर ढाई दशक में बढ़कर और हर साल नए ढाका बढ़ाकर तीन करोड़ तो हो ही गए होंगे। रिपोर्ट में भी कहा गया था कि सालाना तीन लाख से ज्यादा बांग्लादेशी अवैध तरीकों से भारत में पहुंच रहे हैं। असम के गवर्नर रहे एसके सिन्हा ने 1998 में भारत के राष्ट्रपति को सौंपी रिपोर्ट में लिखा था कि जिस तेजी से बांग्लादेशियों की संख्या बढ़ रही है, एक समय ऐसा आ सकता है, जब ग्रेटर बांग्लादेश की वे मांग करने लगेंगे। हर अहम सड़क, हाईवे व रेलवे के किनारे बस्तियां बसा ली हैं। उन्होंने समस्या की गंभीरता को देखते हुए राजनीतिक, सामाजिक और भौगोलिक खतरों के प्रति भी आगाह किया था।

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