
कोलकाता। पश्चिम बंगाल में 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले भारत निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की योजना बनाई है। बिहार में मतदाता सूची संशोधन के बाद अब पश्चिम बंगाल सहित असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी जैसे राज्यों में भी इस प्रक्रिया को लागू करने की तैयारी है। हालांकि, इस कदम की टाइमिंग और प्रक्रिया को लेकर विपक्षी दलों और विशेषज्ञों ने कई सवाल उठाए हैं, जिससे चुनाव आयोग की मंशा पर विवाद छिड़ गया है।
चुनाव आयोग ने हाल ही में बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन का काम शुरू किया, जिसका उद्देश्य फर्जी और गैर-नागरिक मतदाताओं को सूची से हटाना है। इस प्रक्रिया के तहत घर-घर जाकर मतदाताओं की पुष्टि की जा रही है। बिहार में इस अभियान को लेकर विपक्षी दलों ने तीखा विरोध जताया और इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। अब ऐसा प्रतीत होता है कि बिहार के मॉडल को देशभर में लागू किया जाएगा, जिसमें पश्चिम बंगाल अगला प्रमुख राज्य होगा।
राज्य चुनाव आयोग के कार्यालय ने चुनाव आयोग की अधिसूचना का इंतजार किए बिना ही अपनी आंतरिक तैयारी तेज कर दी है। हालांकि अब तक चुनाव आयोग की ओर से पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनोज अग्रवाल को SIR को लेकर कोई औपचारिक पत्राचार प्राप्त नहीं हुआ है, लेकिन उनके कार्यालय ने साफ कर दिया है कि “हम पूरी तैयारी कर रहे हैं ताकि जैसे ही अधिसूचना आए, हम तुरंत काम शुरू कर सकें।”
1 अगस्त के आसपास वोटर लिस्ट रिवीजन शुरू होने की संभावना जताई जा रही है, जिसे अक्टूबर के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा। इसके बाद नवंबर-दिसंबर में यदि जरूरत पड़ी तो एक समरी रिवीजन भी किया जा सकता है। बिहार की तर्ज पर ही बंगाल में भी पूर्व-प्रिंटेड एन्युमरेशन फॉर्म और एक तयशुदा दस्तावेजों की लिस्ट के आधार पर SIR चलाया जाएगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही और अन्य कानूनी सलाहों के आधार पर कुछ अतिरिक्त दस्तावेजों को शामिल किया जा सकता है।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनोज अग्रवाल ने बताया, “हम यह नहीं कह सकते कि SIR कब शुरू होगा, लेकिन हम पूरी तरह से तैयार हैं। जैसे ही चुनाव आयोग की अधिसूचना और दिशा-निर्देश मिलेंगे, हम कार्य शुरू कर देंगे।” उन्होंने यह भी कहा कि CEO कार्यालय और जिला स्तर पर खाली पदों को भरा जा रहा है, जिसमें बूथ स्तर के अधिकारी (BLO) भी शामिल हैं। अब तक राज्य के लगभग 70% जिलों ने नए मतदान केंद्रों के चयन को लेकर EROs और स्थानीय पुलिस स्टेशनों के साथ बैठकें कर ली हैं। यह प्रक्रिया 15 जुलाई तक पूरी कर ली जाएगी, ऐसा दावा किया गया है। मनोज अग्रवाल ने बताया कि “पश्चिम बंगाल में आखिरी बार सघन पुनरीक्षण 1 जनवरी 2002 को किया गया था, जिसमें लगभग 28 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए थे। इनमें मृतक, राज्य या बूथ से बाहर स्थानांतरित हो चुके मतदाता शामिल थे।”
इस बीच, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने SIR को लेकर अपनी आशंका जताई है। उन्होंने कहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले SIR लागू करना एक साजिश हो सकती है, और अगला निशाना बंगाल हो सकता है। उन्होंने यह भी दावा किया है कि इससे वोटर लिस्ट में बड़े पैमाने पर बदलाव की आशंका है, जिससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है
मतदाता सूची संशोधन की घोषणा ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। तृणमूल कांग्रेस (TMC) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने एक-दूसरे पर फर्जी मतदाताओं को सूची में शामिल करने का आरोप लगाया है। तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा ने दावा किया कि बिहार की तरह पश्चिम बंगाल में भी यह प्रक्रिया वास्तविक मतदाताओं, खासकर युवाओं को वोट देने से वंचित करने की साजिश है। उन्होंने कहा, “बिहार में यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, और अब बंगाल को निशाना बनाया जाएगा।”
विपक्षी दलों का कहना है कि इस प्रक्रिया की टाइमिंग संदिग्ध है। बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शुरू हुए इस अभियान की तरह, पश्चिम बंगाल में भी चुनाव से कुछ महीने पहले इस प्रक्रिया को लागू करने की योजना पर सवाल उठ रहे हैं। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि यह कवायद सत्तारूढ़ दलों को फायदा पहुंचाने के लिए की जा रही है।
चुनाव आयोग ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण उसका संवैधानिक दायित्व है। सुप्रीम कोर्ट में बिहार मामले की सुनवाई के दौरान आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा, “अगर चुनाव आयोग को मतदाता सूची संशोधन का अधिकार नहीं है, तो फिर यह काम कौन करेगा?” आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में इसलिए स्वीकार नहीं किया जा रहा, क्योंकि यह नागरिकता का प्रमाण नहीं देता।
आयोग ने दावा किया कि यह प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी है और इसमें बूथ लेवल ऑफिसर (BLO), बूथ लेवल एजेंट (BLA), और स्वयंसेवकों की भागीदारी सुनिश्चित की गई है। बिहार में अब तक 87% मतदाताओं को गणना फॉर्म वितरित किए जा चुके हैं, और पश्चिम बंगाल में भी इसी तरह की प्रक्रिया अपनाई जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट की चिंता और सवाल
बिहार में मतदाता सूची संशोधन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया है। कोर्ट ने आयोग से तीन प्रमुख सवाल पूछे:
– क्या आयोग को ऐसी विशेष प्रक्रिया चलाने का कानूनी अधिकार है?
– इस प्रक्रिया का तरीका क्या है?
– इसकी टाइमिंग क्यों संदिग्ध है?
कोर्ट ने कहा कि मतदाता सूची संशोधन में कोई बुनियादी गलती नहीं है, लेकिन इसे चुनाव से ठीक पहले शुरू करना व्यावहारिक नहीं है। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि आधार कार्ड जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज को क्यों नजरअंदाज किया जा रहा है।
पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची संशोधन की प्रक्रिया को लेकर आम लोगों में भी आशंकाएं हैं। विशेष रूप से सीमावर्ती इलाकों में, जहां बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा हमेशा से संवेदनशील रहा है, लोग इस प्रक्रिया को लेकर चिंतित हैं। विपक्ष का दावा है कि गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के पास जरूरी दस्तावेजों की कमी के कारण उनके नाम सूची से हटाए जा सकते हैं। बिहार के अनुभव से पता चलता है कि ग्रामीण इलाकों में दस्तावेजों की उपलब्धता और जागरूकता की कमी एक बड़ी चुनौती है। महिलाएं के पास जरूरी दस्तावेज नहीं हैं, वे इस प्रक्रिया से प्रभावित हो सकती हैं। पश्चिम बंगाल में भी ऐसी ही स्थिति बनने की आशंका ह