
मुंबई। पहलगाम आतंकी हमले से बॉलीवुड इंडस्ट्री भी शोक में डूबी हुई है। हर कोई सदमे में है। तमाम एक्टर्स-डायरेक्टर्स के साथ-साथ अब अनिल शर्मा ने भी इस घटना पर रिएक्ट किया है। उन्होंने कहा है कि सहने की एक लिमिट होती है, जो कि खत्म हो चुकी है। इंडिया की तरफ से कभी भी पहले हमला नहीं किया गया। उन्होंने फिल्मों का जिक्र किया और कहा कि देश की हर मूवी शांति का मैसेज देती है। बॉलीवुड में कई फिल्में बनी हैं, जिन्होंने ये बताया है कि कैसे दोनों देश अमन-चैन से रह सकते हैं। उनके पीच अच्छा तालमेल हो सकता है।
अनिल शर्मा ने अपनी ‘गदर’ के अलावा, यश चोपड़ा की ‘वीर जारा’, जेपी दत्ता की ‘बॉर्डर’ और ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ के बारे में बात की है। उन्होंने कहा, ‘हर फिल्ममेकर ने अपने-अपने तरह से भारत-पाकिस्तान के बीच हुई लड़ाई को पर्दे पर दिखाया है। यश चोपड़ा जी ने अपना नजरिया दिखाया है और बॉर्डर ने भी अलग अदाज में इसे पेश किया है।’अनिल शर्मा ने अपनी फिल्मों की बात की। कहा, ‘हमने गदर बनाई तो हमने यही बताया कि मोहब्बत ही सबकुछ है। बंटवारे के दौरान 10 लाख से ज्यादा लोगों की जान गई थी। हमने खुद से पूछा कि दूसरा देख बनाने की जरूरत ही क्या थी, जब दोनों तरफ एक जैसे ही लोग थे। उस वक्त भारत में रह रहे मुसलमानों की जड़ें कहीं न कहीं हिंदुओं से जुड़ी थीं। भाइचारे की भावना थी।
अनिल शर्मा ने ‘ईटाइम्स’ से बातचीत में आगे कहा, ‘बंटवारे के दौरान कहा गया था कि पाकिस्तान में रह रहे हिंदू वहीं रहेंगे और भारत में रह रहे मुसलमान वहीं रहेंगे। जैसा हमने गदर में दिखाया है, हिंदुओं को पाकिस्तान छोड़ने के फरमान आने लगे थे। ये सब सत्ता का और धर्म के खेल का नतीजा है, जो इंसानियत को मारता है।’ उन्होंने कहा कि ‘उरी’ और ‘वीर जारा’ जैसी फिल्में एकमद अलग हैं। ‘कोई हमारे घर में मारेगा, तो हम भी जाकर उन्हें मारेंगे। उनरी ने यही दिखाया था और मैंने भी काफी पहले अपनी फिल्म तहलका में दिखाया था।
पहलगाम में हिंदू और मुस्लिम पूछकर मारने पर अनिल शर्मा ने कहा, ‘मतलब क्या है नाम पूछकर मारने की? हत्या करने की जरूरत पड़ी क्यों? क्या आप चाहते हो कि हिंदू-मुसलमान के बीच लड़ाई हो? ये सब राजीनितिक चाल है। सब अपने मकसद पूरा करना चाहते हैं। अगर दोनों देश के लोग सोचें कि इंसानियत के रास्ते पर चलना है तो रिश्ते में सुधार हो सकते हैं। नेता तो पॉलिटिक्स करेंगे ही। हमें प्यार और शांति फैलानी चाहिए।’ उन्होंने कहा कि भारतीय फिल्में कभी नेगेटिव नहीं दिखातीं। पॉजिटिव दिखाती हैं। सिर्फ गलत करने वाले नेताओं को गलत दिखाते हैं।