
नई दिल्ली। बीते मई में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पूरी दुनिया ने भारत की सैन्य क्षमता का नमूना देखा। वहीं भारतीय हथियार और वायु रक्षा प्रणाली भी दुश्मनों के लिए काल साबित हुए। इस ऑपरेशन के बाद अब भारतीय हथियारों का दुनियाभर में डंका बज रहा है। वैश्विक स्तर कर भारतीय हथियारों की मांग बढ़ी है, और ऐसे में भारत हथियारों का निर्यात बढ़ाने की भी तैयारी कर रहा है।
गौरतलब है कि इस दशक की शुरुआत से ही, भारत की रक्षा निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 2020-21 में भारत का रक्षा निर्यात 8,434 करोड़ रुपये था। वहीं बीते चार सालों में यह बढ़कर 23,622 करोड़ रुपये हो गया है। इस दौरान निर्यात में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा भारत मौजूदा समय में 80 देशों को रडार सिस्टम, आर्टिलरी गन, मिसाइल, गश्ती पोत, बुलेटप्रूफ जैकेट जैसे रक्षा उपकरण निर्यात करता है।
इस बीच ऑपरेशन सिंदूर के बाद से भारत ने न सिर्फ स्वदेशी रक्षा निर्माण को गति दी है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारतीय मिसाइलों और हथियार प्रणालियों की क्षमता का भी प्रदर्शन किया है। बीते दिनों रिपोर्ट्स में यह बात सामने आई थी कि भारत के ब्रह्मोस मिसाइलों की मांग कई गुना एक बढ़ गई है। वहीं भारत के स्वदेशी आकाश एयर डिफेंस सिस्टम में भी कई देशों ने दिलचस्पी दिखाई है।
इस बीच सीडीएस अनिल चौहान ने बुधवार को रक्षा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर जोर देते हुए कहा है कि विदेशी हथियारों पर निर्भर रहकर दुश्मन के साथ नहीं लड़ा जा सकता क्योंकि विदेशी हथियारों की क्षमताएं और कमियां दूसरों को भी पता होती हैं और वे इसका फायदा उठा सकते हैं। जनरल चौहान ने मानव रहित यान और मानव रहित यान रोधी प्रणालियों पर एक कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि भारत को अपनी भौगोलिक परिस्थितियों और रक्षा जरूरतों के अनुरूप अत्याधुनिक हथियारों तथा रक्षा प्रणालियों की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखकर सेनाओं को किसी भी स्थिति से निपटने में सक्षम बनाने के लिए रक्षा क्षेत्र में आत्मनिभर्रता जरूरी है। प्रमुख रक्षा अध्यक्ष ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर से सबसे बड़ा सबक यह मिला है कि स्वेदशी हथियार और प्रणाली कितनी जरूरी हैं।