
लखनऊ। IIM लखनऊ के छात्रों और प्रोफेसर्स को अब Crisis Management (संकट प्रबंधन) के सबक के लिए कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है। यहां की स्टूडेंट अंजली भारती ने कैंसर को मात देकर एक नया उदाहरण पेश किया है। 28 साल की अंजली ने लगभग दो साल के अंतराल के बाद अपनी पढ़ाई फिर से शुरू की है। अंजली ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि यह उनके लिए न्यू नॉर्मल है। अब वह खुद को पहले से ज्यादा महत्व देती हैं। वह पहले की तरह खुलकर नहीं हंस पातीं, उन्हें जल्दी चिंता होने लगती है, लेकिन वह फिर से स्वतंत्र रूप से जीवन जीने के लिए उत्साहित हैं। वह अपना PGP प्रोग्राम पूरा करना चाहती हैं।
यह सब साल 2022 में शुरू हुआ। अंजली ने CAT परीक्षा पास की और IIM लखनऊ में दाखिला लिया। लेकिन उन्हें थर्ड स्टेज ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर) का पता चला। इसके बाद उन्हें अपना पहला साल व्हीलचेयर पर बिताना पड़ा। पटना की रहने वाली अंजली के पिता एक ड्राइवर थे। उनकी 2012 में एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। आठ बार कीमोथेरेपी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बाद अंजली को 22 महीने तक अस्पताल में रहना पड़ा। IIM लखनऊ में दाखिला लेने के दो महीने के भीतर ही अंजली को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं शुरू हो गईं।
अंजली ने बताया कि “मेरी भूख मर गई थी। मुझे बार-बार पेट में दर्द और बुखार होता था।” जब वह छठ पूजा (2022) के दौरान घर लौटीं, तो उनकी मां ने डॉक्टर से सलाह लेने पर जोर दिया। डॉक्टर ने उन्हें यह बुरी खबर दी। अंजली ने मगध विश्वविद्यालय से फिजिक्स में ग्रेजुएशन किया है। CAT पास करने से पहले उन्होंने सरकार द्वारा संचालित इंडिया पोस्ट्स के साथ चार साल तक काम किया था। अंजली की मां परिवार का भरण-पोषण करने के लिए सिलाई का काम करती थीं।
अंजली ने पटना के एक विशेष कैंसर अस्पताल में डॉक्टरों से सलाह ली। उन्होंने भी कैंसर होने की पुष्टि की। उन्हें एक महीने के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया, जिससे उनकी IIM लखनऊ की मिड-टर्म परीक्षाएं छूट गईं। अंजली ने बताया कि “सर्दियों से पहले ही, मैं सितंबर में ऊनी कपड़े पहन रही थी। मैं इतनी कमजोर थी कि खड़ी भी नहीं हो पाती थी और मेरे घुटनों में बहुत दर्द होता था।
अंजली जनवरी 2023 में व्हीलचेयर पर अपनी छूटी हुई परीक्षाएं देने के लिए IIM लखनऊ लौटीं। लेकिन उन्हें जल्द ही इलाज के लिए पटना वापस जाना पड़ा। तब तक, कैंसर कोशिकाओं ने उनके कमर तक के निचले शरीर को प्रभावित कर दिया था। उन्हें टाटा मेमोरियल सेंटर, मुंबई रेफर किया गया। उन्होंने एक मौका लिया और कीमो साइकल्स से लड़ीं। उनके शरीर और दिमाग ने बोन मैरो ट्रांसप्लांट (BMT) कराने के लिए उनका साथ दिया।
अंजली के भाई आशीष उनके लिए एक सहारा बने। उन्होंने अंजली के साथ रहने के लिए IIT-BHU में अपनी UG सीट छोड़ दी। आशीष, अंजली के बोन मैरो डोनर थे। उन्होंने कहा, “मुझे याद है कि 20 नवंबर (2023) को उनका जन्मदिन था, जब उनका BMT हुआ था। हम उन्हें ठीक करने के लिए दृढ़ थे। हमारी कहानी सिर्फ जीवित रहने की नहीं, बल्कि प्यार की भी है।”
इलाज महंगा था, लेकिन उनके भाई के समर्थन और IIM लखनऊ के दोस्तों द्वारा क्राउडफंडिंग से मदद मिली। अंजली ने कहा, “मैं आज अपने भाई की वजह से जिंदा हूं, जिन्होंने एक नर्स, देखभाल करने वाले, थेरेपिस्ट, उम्मीद और अंततः मेरे रक्षक की भूमिका निभाई।” BMT के बाद भी सफर मुश्किल था, संक्रमण हो रहा था। लेकिन अंजली के दृढ़ संकल्प का फल मिला। उन्हें 83 दिनों तक आइसोलेशन में रहने के बाद इस साल मार्च में घर जाने की अनुमति मिल गई।
अंजली ने जल्द ही IIM लखनऊ को फिर से दाखिला लेने के लिए फोन किया और उन्हें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। IIM-L के प्रोफेसर और PGP चेयरमैन आलोक दीक्षित ने कहा, “संस्थान इस तरह के मेडिकल मामलों में अधिकतम दो साल की छूट देता है। कैंसर से लड़ने और शिक्षा फिर से शुरू करने की उनकी (अंजली की) यात्रा पूरे IIML समुदाय के लिए अद्वितीय प्रेरणा प्रदान करती है।” प्रोफेसर सुरेश जाखड ने उनकी यात्रा को “असाधारण साहस, लचीलापन और दृढ़ संकल्प” की यात्रा बताया।