
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, जो हमेशा से साहित्य, संस्कृति और संवाद की भूमि रही है, उसने अपने एक अनमोल रत्न को खो दिया है। हिंदी के मशहूर व्यंग्यकार और भारतीय रेल सेवा के पूर्व अधिकारी गोपाल चतुर्वेदी का गुरुवार देर रात निधन हो गया है। महज छह दिन पहले उनकी जीवनसंगिनी वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी निशा चतुर्वेदी का भी निधन हो गया था। एक ही सप्ताह में हुई इस दोहरी क्षति ने न सिर्फ चतुर्वेदी परिवार को, बल्कि साहित्यिक और सांस्कृतिक जगत को गहरे शोक में डुबो दिया है।
गोपाल चतुर्वेदी का जन्म 15 अगस्त 1942 को लखनऊ में हुआ था। उन्होंने ग्वालियर के सिंधिया स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उनका चयन भारतीय रेल सेवा में हो गया था। उन्होंने 1965 से 1993 तक रेल और भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में उच्च पदों पर काम किया है।
इस दौरान दूरदर्शन के कार्यक्रम प्रमुख आत्मप्रकाश मिश्र, दूरदर्शन के पूर्व महानिदेशक प्रभु झिंगराम, आईएएस डीएनलाल, वरिष्ठ शायर मनीष शुक्ला, व्यंग्यकार पंकज प्रसून, मुकुल महान, के कान्त और अलंकार रस्तोगी के साथ ही परिवारीजन और परिचित मौजूद रहे।
वरिष्ठ व्यंग्यकार सर्वेश अस्थाना ने बताया कि गोपाल जी का जीवन त्रासदियों से भरा रहा। पहले बेटे, फिर बहू की मृत्यु हुई। भीतर से बेहद आहत होने के बावजूद दूसरों को मुस्कराहट देना उनकी पहली प्राथमिकता रही। वह अक्सर कहते थे, हमेशा मुस्कुराते रहना, तभी व्यंग्य कर पाओगे।
उप्र हिंदी संस्थान की प्रधान संपादक डॉ. अमिता दुबे ने कहा कि गोपाल चतुर्वेदी हिंदी व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर थे। जहां जीवन की सभी दिशाएं बंद होती थीं, वहां भी उनके साहित्य में नई दिशा मिल जाती थी। मेरे पहले काव्य संग्रह ‘यह काश ही है’ का लोकार्पण करते हुए उन्होंने कहा था कि जो लोग कविता में सहजता और सरलता ढूंढते हैं, उन्हें अपमिता का साहित्य पढ़ना चाहिए।
वरिष्ठ व्यंग्यकार सूर्यकुमार पांडेय ने कहा कि गोपाल चतुर्वेदी व्यंग्य विधा के अमृत घट थे। आज उनके जाने से वह घट फूट गया। उनकी पहचान भले ही एक व्यंग्यकार के तौर पर ही रही, लेकिन आरंभिक दौर में वे कविताएं भी लिखा करते थे। अपना उत्सव-1986 का थीम सॉन्ग ‘गंगा जमुना गोदावरी, भर दे कला की गागरी’ उन्होंने ही लिखा था। बाद में पं. विद्यानिवास मिश्र की प्रेरणा से व्यंग्य लिखने लगे थे।
गोपाल चतुर्वेदी सिविल सर्विस के दौरान देश के कई उच्च पदों पर रहे और खुद ब्यूरोक्रेसी पर व्यंग्य कसते रहे। बकौल हास्य कवि पंकज प्रसून, मैंने उनसे पूछा था कि आपको कोई नोटिस जारी नहीं हुआ। तब उन्होंने व्यंग्यात्मक अंदाज में जवाब दिया कि नोटिस तो तब जारी होता जब कोई नोटिस करता। केंद्र सरकार अंग्रेजी पढ़ती रही और मैं हिंदी में लिखता रहा। वह भाषा संस्थान में हर माह सृजन गोष्ठी करते थे।
एक बार राय उमानाथ प्रेक्षागृह में गोष्ठी थी, लेकिन उस दिन हड़ताल हो गई। हॉल के सारे कर्मचारी बाहर धरने पर बैठे थे। इस पर उन्होंने कहा कि गोष्ठी इसी धरने में होगी। व्यंग्य पढ़ने के लिए इससे बेहतर माहौल भला और कहां मिलेगा। फिर धरने-प्रदर्शन के दौरान गोष्ठी हुई।
प्रमुख रचनाएं
काव्यसंग्रह: कुछ तो हो, धूप की तलाश
व्यंग्य-संग्रह: अफसर की मौत, दुम की वापसी, खबों के खेल, आजाद भारत में कालू, फाइल पढ़ि-पढ़ि, गंगा से गटर तक, दांत में फंसी कुर्सी, राम झरोखे बैठ के, फॉर्म-हाउस के लोग, नैतिकता की लंगड़ी दौड़, भारत और भैंस, जुगाड़पुर के जुगाडू, आदमी और गिद्ध, धांधलेश्वर, इक्यावन श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएं, खरी-खोटी, कुरसीपुर के कबीर, दूध में धुला लोकतंत्र।
प्रमुख सम्मान
- श्रेष्ठ कृति पुरस्कार: हिंदी अकादमी दिल्ली
- साहित्यकार सम्मान: हिंदी अकादमी दिल्ली
- प्रेमचंद पुरस्कार: रेलवे बोर्ड
- अखिल भारतीय भाषा सम्मेलन पुरस्कार
- कुलदीप गोसाई स्मृति पुरस्कार
- सेठ गिरधारी लाल सराफ ठिठोली पुरस्कार
- सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मान
- हिंदी भवन-दिल्ली द्वारा व्यंग्य श्री लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार 2001
- उप्र हिंदी संस्थान-लखनऊ द्वारा साहित्य भूषण 2001
- हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा साहित्यिक कृति सम्मान 2003
- माध्यम द्वारा अट्टहास शिखर सम्मान 2006
- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का हिंदी गौरव सम्मान 2007
- अखिल भारतीय भाषा सम्मेलन का भाषा-भूषण समान 2008
- अखिल भारतीय अंतरराष्ट्रीय मंचीय कवि पीठ द्वारा शारदा सम्मान 2009