शस्त्र और शास्त्र विद्या में पारंगत थीं जीजाबाई

कुछ मातृशक्तियां ऐसी हैं, जिन्होंने महान नायकों और महापुरुषों को न सिर्फ जन्म दिया, बल्कि उनको मातृशिक्षा और संस्कारों से भी सिंचित किया। इन माताओं ने अपनी शिक्षा से उन्हें इस योग्य बनाया कि वह भावी पीढ़ियों को युगों-युगों तक प्रेरित कर सकें। ऐसी ही एक मातृशक्ति का नाम राजमाता जीजा बाई है। इनका पूरा नाम जीजाबाई शाहजी भोंसले था। आज ही के दिन यानी की 17 जून को राजमाता जीजाबाई का निधन हो गया था। यह स्वतंत्र मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज की मां थीं।

बता दें कि जीजाबाई का कठिन और विपरीत परिस्थितियों से भरा था। लेकिन उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया। जीजाबाई ने अपने पुत्र को ऐसे संस्कार दिए, जिससे वह आगे चलकर हिंदू समाज का गौरव और संरक्षक बना। स्वराज के प्रति प्रतिबद्धता जीजाबाई की सर्वोच्च प्राथमिकता थी। वह एक दूरदर्शी महिला थीं, जिनमें सभी प्रशासकीय गुण थे और वह खुद भी शस्त्र और शास्त्र विद्या में पारंगत थीं। उन्होंने बालक शिवा में भी इन्हीं गुणों का संचार किया था और देशप्रेश और स्वराज की ज्वाला जलाई थी। शिवाजी को अपनी मां जीजाबाई से साहस और धैर्य के साथ विपरीत परिस्थितियों का सामना करने का साहस प्राप्त हुआ था।

शिवाजी महाराज ने जीजाबाई के मार्गदर्शन और शिक्षाओं से धार्मिक सहिष्णुता और न्याय के साथ राष्ट्र प्रेम और स्वराज की स्थापना की। वहीं अत्यंत विषम परिस्थितियों में भी महिला का सम्मान और मानवीय जीवन मूल्यों के प्रति शिवाजी महाराज की निष्ठा का श्रेय भी पूरी तरह से जीजाबाई को जाता है। वहीं जीजाबाई ने भी अपना पूरा जीवन शिवाजी को स्वराज की स्थापना करने और मराठा साम्राज्य के महान शासक बनाने में लगाया था।

वहीं 1674 में जीजाबाई का स्वराज का सपना तब पूरा हुआ, जब शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ। शिवाजी महाराज स्वतंत्र मराठा साम्राज्य की नींव रखने वाले प्रतापी राजा बने। वहीं स्वतंत्र शासक के तौर पर उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलाया।

छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के सिर्फ 12 दिन बाद 17 जून 1674 को राजमाता जीजाबाई ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था।

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