
नई दिल्ली। मई में महंगाई थोड़ी कम हुई थी, लेकिन अब फिर से बढ़ सकती है। वजह है ईरान और इजरायल के बीच बढ़ता तनाव। इसकी वजह से कच्चे तेल के दाम आसमान छू रहे हैं। अगर तेल और महंगा हुआ, तो भारत में भी सामान की ढुलाई (ट्रांसपोर्ट), फैक्ट्रियों का कच्चा माल और रोजमर्रा की चीजें महंगी हो जाएंगी।
रेटिंग एजेंसी इक्रा के एक जानकार (राहुल अग्रवाल) का कहना है, ईरान-इजरायल तनाव ने तेल को बहुत तेजी से महंगा कर दिया है। तेल के महंगे होने और डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर पड़ने से थोक महंगाई (WPI) पर दबाव बढ़ेगा। जून में यह करीब 0.6% से 0.8% रहने का अनुमान है।
एक और बड़ी चिंता मानसून की है। मानसून जल्दी आया जरूर, लेकिन जून की शुरुआत से ही रुक गया है। 15 जून तक बारिश सामान्य से लगभग एक तिहाई (31%) कम हुई है। बारिश कब और कहां होगी, यह फसल और खाने-पीने की चीजों की कीमतों के लिए बहुत जरूरी है।
थोक महंगाई (WPI) में बदलाव का असर बाजार में महंगाई (खुदरा महंगाई या CPI) पर दिखने में लगभग डेढ़ महीने का समय लगता है। इसमें उत्पादन, ढुलाई और भंडारण का समय शामिल है। अगर थोक महंगाई घटती है, तो डेढ़-दो महीने में बाजार में भी महंगाई घटने की उम्मीद होती है।
अगर थोक महंगाई बढ़ती है, तो बाजार में भी महंगाई बढ़ जाती है। थोक महंगाई, बाजार की महंगाई में बदलाव का पहला संकेत होती है। बता दें भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ब्याज दरें तय करते समय ज्यादातर खुदरा महंगाई (CPI) को ही देखता है। थोक बाजार में खाने-पीने की चीजें (खाद्य सूचकांक) महंगी होने की दर मई में घटकर 1.72% रह गई, जो अप्रैल में 2.55% थी। सब्जियों के दाम तेजी से गिरे। मई में सब्जियों की कीमतें 21.62% सस्ती हुईं (अप्रैल में 18.26% की गिरावट थी)। इसमें भी प्याज के दाम में सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई।