
प्रयागराज। प्रयागराज के शंकरगढ़ क्षेत्र का रहने वाला राम निरंजन कोल, सीओडी छिवकी में सामान्य कर्मचारी था। अपनी सनक और क्रूरता के कारण कुख्यात सीरियल किलर राजा कोलंदर बन गया। उसकी कहानी जुर्म, दहशत, और खौफनाक कत्लों की ऐसी दास्तान है, जिसने न केवल प्रयागराज बल्कि पूरे क्षेत्र को हिलाकर रख दिया।
राम निरंजन ने नब्बे के दशक में अपराध की दुनिया में कदम रखा और धीरे-धीरे वह एक ऐसे खूनी दरिंदे के रूप में उभरा, जिसके कारनामों ने पुलिस और आम लोगों को स्तब्ध कर दिया। राम निरंजन कोल आदिवासी समाज से ताल्लुक रखता था और शंकरगढ़ में रहता था। 90 के दशक में उसने ब्याज पर रुपये देने का धंधा शुरू किया और राजनीति में भी सक्रिय हो गया। उसकी पत्नी फूलन देवी नब्बे के दशक में इलाहाबाद में जिला पंचायत की सदस्य थी।
पुलिस रेकॉर्ड के अनुसार, 1998 में धूमनगंज के मुंडेरा मोहल्ले में टीवी-वीसीआर किराए पर चलाने वाले युवक की हत्या में राम निरंजन उर्फ राजा कोलंदर का नाम सामने आया। इस मामले के बाद वह फरार हो गया। साल 2000 तक उसने कई जघन्य वारदातों को अंजाम दिया और पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया। इनमें पत्रकार धीरेंद्र सिंह, लखनऊ के मनोज कुमार सिंह और उनके ड्राइवर रवि श्रीवास्तव की हत्याएं शामिल थीं।
राम निरंजन का अपराधी जीवन जैसे-जैसे बढ़ता गया, उसका नाम भी बदलता गया। कोल समाज में उसकी दहशत और रौब के कारण लोग उसे ‘राजा कोलंदर’ कहने लगे। उसकी क्रूरता और अपराधों की वजह से यह नाम पुलिस की फाइलों से लेकर आम लोगों और अपराध की दुनिया तक मशहूर हो गया। उसका यह नाम उसकी खूंखार छवि का प्रतीक बन गया। उसे लगता था कि वह लोगों को उनके किए कि सजा दे सकता है इसलिए वह खुद को राजा कोलंदर कहलाने लगा।
14 दिसंबर 2000 को शंकरगढ़ के पत्रकार धीरेंद्र सिंह अपने काम के लिए घर से निकले, लेकिन फिर कभी वापस नहीं लौटे। उनके परिवार ने पुरानी रंजिश के आधार पर राम निरंजन कोल पर शक जताया। पुलिस ने कीडगंज थाने में गुमशुदगी का मामला दर्ज कर तलाश शुरू की। एक हफ्ते बाद राम निरंजन और उसके साले वक्षराज को गिरफ्तार कर लिया गया।
पूछताछ में राजा कोलंदर ने खौफनाक सच उगला। उसने बताया कि उसने 14 दिसंबर को ही धीरेंद्र की हत्या कर दी थी। हत्या की साजिश 1998 में तब शुरू हुई जब धीरेंद्र के भाई ने एक मामले में राजा कोलंदर के खिलाफ FIR दर्ज कराई थी। इसके अलावा, धीरेंद्र को राजा कोलंदर की कुछ काली करतूतों का पता चल गया था, जिसके चलते वह उसे अपना दुश्मन मानता था।
राजा कोलंदर ने धीरेंद्र को विश्वास में लेकर अपने पिपरी फार्म हाउस पर बुलाया। वहां उसने और वक्षराज ने अलाव जलाया और धीरेंद्र को उसके पास बैठने को कहा। जैसे ही धीरेंद्र बैठे, वक्षराज ने उनकी पीठ में गोली मार दी, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। इसके बाद दोनों लाश को टाटा सूमो में डालकर मध्य प्रदेश की सीमा में ले गए। वहां उन्होंने धीरेंद्र के शरीर के टुकड़े अलग-अलग जगहों पर फेंक दिए थे। उसका सिर रीवा के बाणसागर तालाब में फेंक दिया। उनके कपड़े झाड़ियों में छिपा दिए गए, और धीरेंद्र की बाइक बनारस में रहने वाले समधी दशरथलाल को दे दी। धीरेंद्र का मोबाइल, जो राजा कोलंदर ने रख लिया था, हत्या के खुलासे में महत्वपूर्ण साबित हुआ।
पुलिस ने राजा कोलंदर और उसकी पत्नी फूलन देवी के घर की तलाशी ली, जहां धीरेंद्र का सामान और एक डायरी बरामद हुई। इस डायरी में दर्ज कत्लों की कहानियां इतनी भयावह थीं कि पुलिस भी दंग रह गई। डायरी से पता चला कि राजा कोलंदर ने 14 लोगों की हत्या की थी। वह छोटी-छोटी बातों पर लोगों का कत्ल कर देता था, उनकी खोपड़ियों से दिमाग निकालकर सूप बनाता और पी जाता था। उसका मानना था कि इससे उसका दिमाग तेज होगा और उसे अपार शक्ति मिलेगी। पुलिस ने उसकी निशानदेही पर अशोक कुमार, मुइन, संतोष, और कालीप्रसाद के नरमुंड बरामद किए।
धीरेंद्र की हत्या के मामले की सुनवाई 11 साल तक चली। 1 दिसंबर 2012 को इलाहाबाद के अपर सत्र न्यायाधीश मेहताब अहमद ने राम निरंजन कोल उर्फ राजा कोलंदर और वक्षराज को उम्रकैद की सजा सुनाई, साथ ही दोनों पर 10-10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। मामला हाई कोर्ट पहुंचा, लेकिन राजा कोलंदर को कोई राहत नहीं मिली। प्रयागराज का यह सीरियल किलर आज भी लोगों के लिए खौफ का पर्याय है, जिसकी कहानी क्रूरता और वहशत की एक ऐसी मिसाल है जो शायद ही कभी भुलाई जा सके।