
नई दिल्ली। मशहूर कन्नड़ लेखिका, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता बानू मुश्ताक ने अपनी किताब ‘हार्ट लैंप’ के लिए अनुवादिका दीपा भास्ती के साथ 2025 का इंटरनेशनल बुकर प्राइज जीता है। यह कर्नाटक की मुस्लिम औरतों की जिंदगी और उनके संघर्षों की 12 कहानियों का संग्रह है, जो बानू ने 1990 से 2023 के बीच लिखीं। 77 वर्षीय बानू मुश्ताक बताया कि बंधन धर्म की ओर से कम हैं, पितृसत्ता की तरफ से ज्यादा है।
कहीं भी देखें, किसी भी मजहब में, किसी भी जगह में देखें, औरत को कंट्रोल करना ही पुरुष अपना मुख्य धर्म समझते हैं । पितृसत्ता की वजह से वे हर चीज को, बल्कि इसे ऐसे समझिए कि हर पारिवारिक रिश्ते को, मजहब के हर कानून को और पूरे एक पॉलिटिकल सिस्टम को अपनी तरफ से इस्तेमाल करके औरत के ऊपर और ताकतवर होना चाहते हैं। इसीलिए वे गलत तरीके से अपनी पितृसत्ता की ताकत का इस्तेमाल करते हैं। इसलिए वे औरत को नीचा दिखाना चाहते हैं, उन्हें कंट्रोल करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान की औरतों में ऐसा विद्रोही कैरेक्टर जरूर है और यह उनके अंदर पहले से ही बना हुआ है। उसके साथ रहते हुए भी वे इस कदर प्रेम से भरी और मोहब्बत वाली हैं कि वे परिवार को बनाए रखने के लिए, अपने बच्चों की बेहतरी के लिए ताकत का पूरा इस्तेमाल नहीं करती हैं। वे बहुत समझौता करती हैं, बल्कि हद से ज्यादा। मगर जब पितृसत्ता के जुल्म और ऐसे फालतू कानून जो हैं ही नहीं, वे उन पर कभी भी लागू किए जाते हैं, उसके खिलाफ वे बहुत ही नजाकत से विद्रोह करती हैं। फिर वे उन सब कानूनों को, पूरी सोसाइटी को उनका चेहरा दिखाती हैं कि आप गलत कर रहे हैं । मेरे कोई भी कैरेक्टर्स ऐसे ही हथियार नहीं डालते । वे अपनी आत्मा और अपनी सोच से बहुत भिन्न कैरेक्टर हैं। वे बहुत ही फैमिली ओरिएंटेड हैं, मगर जब मौका लगे और उन्हें चुनौती दी जाए, तो औरतें जरूर विद्रोही होती हैं।
बानू मुश्ताक बताया कि मेरे छह कथा संकलन आए हैं, जिनमें 60 से अधिक कहानियां हैं । मेरी कहानियां लगातार पब्लिश होती रही हैं। 1990 में एक कलेक्शन आया, उसके बाद 1993 में एक आया। तो कहानियां तो लगातार छपती ही रही हैं। हार्ट लैंप की कहानियां भी उनमें थीं। मेरी अनुवादिका दीपा भास्ती ने इन्हीं में से 12 कहानियों को चुना है। अब आप सुनिए कि मेरी सोच क्या है। मेरी सोच ये है कि औरत भी इंसान है, उसे भी दुख-दर्द होता है, उसे भी चाहत और मोहब्बत की जरूरत है, और उसको भी इज्जत की जरूरत है जो उसे मयस्सर नहीं है। यह सोच कैसे बदलूं मैं? यह सोच तो लगातार ही चली आ रही है, आगे भी आती रहेगी। सेल्फ रिस्पेक्ट से जीना हर एक इंसान की मूलभूत जरूरत है। ऐसा नहीं कि सारे पुरुष खराब हैं। मेरे कैरेक्टर्स में बहुत सारे मर्द ऐसे हैं जो बहुत मानवीय हैं। मैं चाहती हूं कि मर्द भी खुश रहे।