निवेश के नाम पर धांधली

संजय राजन

आबादी के लिहाज से उत्तर प्रदेश देश में न सिर्फ पहले पर है, बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा उपखंड भी है। यदि यह देश होता तो दुनिया का पांचवां सबसे विशाल आबादी वाला देश होता। अब इसे अर्थव्यवस्था के भी मामले में नंबर वन बनाने के लिए यशस्वी मुख्यमंत्री आठ साल से जुटे हुए हैं। 2017 में पहली बार सूबे की कुर्सी संभालते ही उन्होंने एजेंडा तय कर दिया था कि उत्तर प्रदेश को उन्नत प्रदेश बनाने के लिए उत्तम प्रदेश से एक कदम और आगे ले जाकर उद्यम प्रदेश में परिवर्तित करना होगा, जिसका रास्ता इनवेस्टर समिट के जरिए बनेगा। हाथ, आंख, कान व नाक कही जाने वाली प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी को उन्होंने इनवेस्ट यूपी का मंत्र देते हुए कहा था कि 2027 तक प्रदेश को वन ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बनाना है। हालांकि अभी 30 मिलियन डॉलर भी नहीं पहुंची है।

दरअसल शीर्ष पर बैठे कई अधिकारी इतने बेईमान हैं कि इस बात की खबर गांवों तक पहुंच चुकी है। उधर, देश की अर्थव्यवस्था पांच ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य पाने से 2025 में भले ही कुछ पीछे रह गई हो, पर 2029-30 तक सात ट्रिलियन डॉलर पहुंचाने का विजनरी प्रधानमंत्री ने लक्ष्य तय किया है। किसी भी बीमारू प्रदेश को ऊपर ले जाने में समय लगता है। यह कम तब लगता है, जब टीम में सारे लोग सही हों, क्योंकि यह टीम वर्क ही है। सिस्टम एक ढांचा है व टीम उसके नट-बोल्ट । यदि एक भी नट-बोल्ट ढीला रह गया या नकारा निकल गया तो ढांचे के ढहने का अंदेशा हमेशा बना रहता है। ऐसे में अकेले मुख्यमंत्री भी क्या कर पाएंगे? सब मिल-मिलकर थोड़ा-थोड़ा सहयोग देते हैं, तब कहीं जाकर तैयार होता है एक ऐसा गुलदस्ता, जो देश-विदेश तक खुशबू बिखेरने में सक्षम हो पाता है।

ऐसा ही प्रयास इनवेस्टर समिट के जरिए किया जा रहा है। प्रदेश के जिन इलाकों में कभी शाम ढलने के बाद लोग घर से बाहर निकलने से भी डरते थे, वहां उद्योग धंधे स्थापित करने का माहौल बनाने में प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को बड़ी सफलता मिली है। इनवेस्टर समिट-2018 के शुभारंभ पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि विकास के लिए सुशासन जरूरी है और इसका कोई विकल्प नहीं है। भारत महाशक्ति के रूप में विश्व पटल पर जरूर पहुंचेगा, पर उसका रास्ता उत्तर प्रदेश से गुजरेगा। यूपी को पिछड़े और बीमारू राज्य की श्रेणी से निकाल कर समृद्ध राज्य की श्रेणी में खड़ा करने का लक्ष्य लेकर सरकार ने प्रयास शुरू किए हैं।

समिट उसी की एक कड़ी है। 2024 की इनवेस्टर समिट के उद्घाटन के समय प्रधानमंत्री की यूपी के बारे में कही गई हर बात सही थी, पर पीएम व सीएम के विजन को मिशन मानकर धरातल पर उतारने के लिए क्रियान्वयन का काम तो कार्यपालिका ही करेगी। यूं भी कहा जाता है कि सफलता और असफलता ब्यूरोक्रेसी पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा था कि यूपी दंगामुक्त प्रदेश है, कानून-व्यवस्था का जादू है, सिर चढ़कर बोल रहा है तो दंगा मुक्त भी हो चुका है। नेशनल क्राइम ब्यूरो के मुताबिक, अपराध घटे हैं। बिजनेस कल्चर खूब फूल-फल रहा है। सोलर क्रांति व सख्ती के बाद विद्युत सप्लाई दोगुनी हो चुकी है, जिससे उत्पादन की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है और निर्यात भी दोगुना हो चुका है।

सर्वाधिक हवाई अड्डे व इंटरनेशनल एयरपोर्ट यही हैं। सर्वाधिक एक्सप्रेस-वे यहीं हैं, जो कि सर्वाधिक लंबे भी हैं। वेस्टर्न व ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर भी चालू है। मालवाहक जहाजों के परिवहन के लिए नदियों का संजाल भी है। रेड टेप कल्चर बदल चुका है रेड कार्पेट में, जिससे कारोबारी सुगमता के मामले में प्रदेश दूसरे नंबर पर पहुंच चुका है। निवेशकों की सहूलियत के लिए सिंगल विंडो सिस्टम, निवेश मित्र, सड़क, पानी, बिजली, इंफ्रास्ट्रक्चर, पहले की ढेर सारी छूतें की जगह ढेर सारी छूटें और निवेश सारथी पोर्टल। सरकारी मशीनरी का भी साथ निवेशकों को मिल रहा है। कुल मिलाकर निवेशकों में आशावाद बढ़ा है और भाग लेने वाले उद्योगपतियों की संख्या भी साल दर साल।

साथ में नरेंद्र भाई मोदी की गारंटी तो है ही, जिसके कारण भरोसे से भर उठे हैं देशी निवेशक और बेहतर रिटर्न वाली जगह के रूप में देख रहे हैं विदेशी निवेशक भी। दोनों जगह मजबूत, विश्वास व स्थायित्व से भरी सरकार है, लेकिन उन्हें क्या पता था कि यूपी अभिषेकों से भरा पड़ा है। कई बार चोरों को प्रमोट करने व सेवा विस्तार देने से किसी न किसी का हक मारा जाता है और इससे सरकार की मतलब भर की किरकिरी भी होती है, क्योंकि ये पब्लिक है, सब जानती है। मशीनरी को भी इतना मजा आ रहा है कि पहली इनवेस्टर समिट साल भर के भीतर ही 2018 में कर डाली थी। दूसरी भी जुलाई 2019 में हो गई, उसके बाद कोरोना मैया और लॉकडाउन बाबा आ गए, नहीं तो सारी कर डालते। आठ साल के शासन में चार समिट हो सकी हैं। 2023 में तीसरी समिट हुई थी और चौथी फरवरी 2024 में। पांचवीं की तैयारी शुरू हो गई है।

बताते हैं कि यह 2026 के शुरू में होगी। आम जनता की बात करें तो ग्लोबल इनवेस्टर समिट का खेल ही उसकी समझ में नहीं आ रहा है। कम जानकार कहते हैं कि अगर सबकुछ फ्री के माफिक ही देना है तो कोई भी उद्यमी बन सकता है। क्या देश में डिग्रीधारी युवा अपने बच्चे कम हैं, जो सरकार दूसरों के बच्चों पर जनता का खजाना लुटा रही है। इस कारण ही समाज का एक तबका इसे सफेद हाथी की संज्ञा देता है। सस्ती जमीन, सस्ती बिजली, सस्ते टैक्स और ऊपर से ढेर सारी सब्सिडी। कहीं यह कुएं में भांग जैसा कुछ तो नहीं। आंकड़े बताते हैं कि औद्योगिक विकास विभाग द्वारा निवेशकों को दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि बीते आठ वर्ष में चार गुना बढ़ी है।

वर्ष 2017-18 में पहली इनवेस्टर समिट के दौरान जहां 575 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि निवेशकों को दी गई थी, जो कि दूसरी में डेढ़ गुनी और तीसरी में फिर डेढ़ गुनी के हिसाब से बढ़ते-बढ़ते वर्ष 2024-25 में चौथी समिट में 2229 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। बट्टे खाते की यह राशि करीब 5200 करोड़ रुपए बताई जा रही है। इसके अलावा छोटे-मोटे कुंभ जितना खर्च इनवेस्टर समिट के आयोजन पर भी आता है। अगर ये रुपए सीधे सार्वजनिक क्षेत्र के किसी उद्योग में इनवेस्ट कर दिए जाएं तो उद्योग की स्थापना, बेरोजगारी निवारण और उत्पादन के जरिए जीडीपी में सहयोग सहित सारे लक्ष्य पूरे हो जाएंगे। इस तरह यूपी के अपने नौ रत्न भी नौ साल में तैयार हो जाएंगे।

यानी कि कान इधर से पकड़ो या उधर से बस, नतीजा सेम होना चाहिए। मुख्यमंत्री जरूर सोच रहे होंगे कि बिजनेस रिफॉर्म एक्शन में 20 विभाग जुटे हुए हैं। एक छत के नीचे उद्योगों के अनुमोदन, स्वीकृति और प्रक्रियाओं के त्वरित निस्तारण के लिए डिजिटल क्लियरेंस सिस्टम शुरू है। इसकी निगरानी सीएम कार्यालय कर रहा है, फिर भी कहां पर चूक हो गई, जो निवेशक ठगे जाने लगे? नाक के नीचे बैठकर पीठ में खंजर भोंकने से वह कम हैरान नहीं होंगे कि लीक प्रूफ सिस्टम व पारदर्शी प्रक्रिया के होते हुए भी मार्गदर्शक मशीनरी मात्र दर्शक बनकर कैसे रह गई? पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी निवेश मित्र, निवेश पोर्टल व सिंगल विंडो सिस्टम इतने बड़े नाम व कलाकारों के होते हुए भी विडो कैसे साबित हो गया?

ताजा मामले के बाद उन्होंने आवास पर बुलाई गई इनवेस्ट यूपी के कार्यों की समीक्षा बैठक में सख्ती से कहा कि हर निवेशक हमारे लिए महत्वपूर्ण है। उनकी सुरक्षा और सुविधा हमारी जिम्मेदारी है। इनवेस्ट के मंत्र को ग्लोबल निवेश मॉडल बनाना है। इसे वैश्विक निवेश प्रोत्साहन व फैसिलिटेशन की ग्लोबल मॉडल एजेंसी के रूप में विकसित करने, निवेश बढ़ाने व उद्योगों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने में हर सेक्टर के विशेषज्ञों की सेवाएं ली जाएं ताकि वैश्विक स्तर पर बेहतर संवाद और समन्वय स्थापित किया जा सके।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के रिफॉर्म, परफॉर्म, ट्रांसफॉर्म के मंत्र को आत्मसात कर प्रदेश आठ वर्षों में निवेशकों की पहली पसंद व देश का सर्वश्रेष्ठ निवेश गंतव्य बन चुका है। इसे मजबूती देनी है और औरा बरकरार भी रखना है। नए भारत का नया उत्तर प्रदेश नए ग्रोथ इंजन की भूमिका निभाने को तैयार है। निवेशकों की सुविधा के लिए सिंगल विंडो सिस्टम को पूरी तरह पारदर्शी व प्रभावी बनाएं ताकि 21वीं सदी में भी निवेशकों को विभागों के चक्कर न लगाने पड़ें। तकनीक की सहायता से ऐसी व्यवस्था की जाए, जिससे उद्यमियों द्वारा किए जाने वाले आवेदन एक ही विभाग से निस्तारित किए जा सकें। तय समयसीमा में निवेशकों को सभी स्वीकृति (एनओसी) मिलें। बड़े निवेश के लिए औद्योगिक विकास विभाग द्वारा एकल स्वीकृति दिए जाने की व्यवस्था हो। इसके तहत डीम्ड अनुमति (समयसीमा में काम न होने पर स्व स्वीकृति) प्रणाली लागू की जाए।

सीएम ने तुरंत चेजिंग सेल (अनुश्रवण प्रकोष्ठ) का गठन करने को कहा ताकि सेक्टर आधारित निगरानी और संवाद सुनिश्चित हो। इसमें प्रत्येक सेक्टर के विशेषज्ञों को शामिल किया जाए, जो संभावनाशील क्षेत्रों की पहचान कर राज्य में निवेश का मार्ग प्रशस्त करें। वैश्विक निवेशकों तक पहुंचने के लिए भारतीय दूतावासों के साथ संपर्क और समन्वय स्थापित किया जाए। दूसरे राज्यों से निवेश के मौके बनाने के लिए देश के सभी प्रमुख वाणिज्यिक शहरों, दिल्ली, चेन्नई, मुंबई और बेंगलुरू में इनवेस्ट यूपी के दफ्तर खोलने और संस्था की हर छह माह में अनिवार्य रूप से बैठक बुलाने को भी कहा। प्रदेश में इनवेस्टमेंट के काम में तेजी लाने व मामले को ग्लोबल होते देखकर शासन ने उद्योग बंधु की जगह जून 2020 में इनवेस्ट यूपी को अपनाया था।

2018 के बाद से ही दोनों समिट में सबसे ज्यादा निवेश के प्रस्ताव गौतमबुद्धनगर जिले में आए थे। इसमें जरा सी भी किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए। जिले में जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट भी लगभग तैयार है। आखिर वह दुनिया का सबसे तेजी से विकसित हुआ शहर है, जिसकी आयु अभी सिर्फ 49 साल है व 50वां जन्मदिन 17 अप्रैल ही मनाया है। यह दीगर बात है कि टूट-फूट कर दुनिया में कई देश बन गए हैं, जिनकी आयु अभी 50 साल की भी नहीं है, पर नोएडा जैसे अनोखे शहर का उदाहरण मिलना मुश्किल है। बार-बार की समिट के खर्चे देखकर लोग प्रस्तावों के धरातल पर उतरने की चर्चा हाल के साल से करने लगे थे, जब कुछ होता नहीं दिखा, तब से ही 70 सवाल सतह पर तैरने लगे थे।

करप्शन का सीन तो साफतौर पर नहीं दिखता था, पर आंकड़ों की बाजीगरी को लेकर प्रश्न विभिन्न प्लेटफार्म पर जरूर खड़े किए जाने लगे थे। एक ओर सीएम व पीएम दावे करते थे कि सूबे से रेड टेप कल्चर का खात्मा करके उद्यमियों के लिए रेड कॉर्पेट बिछा दी गई है और दूसरी ओर जिम्मेदार अधिकारी अपना पेट भरने में जुटे हुए थे। सोलर कंपनी प्रकरण में अभिषेक प्रकाश के निलंबन व उनके एजेंट बाबू निकांत जैन की गिरफ्तारी के बाद जिले की तीनों अथॉरिटी में हड़कंप मचा हुआ है, क्योंकि घूस मांगने के मामले जांच की आंच नोएडा, ग्रेटर नोएडा एवं यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास अथॉरिटी के अधिकारियों तक भी पहुंचनी तय है। निकांत से पूछताछ चल रही है।

साथ ही फोन में वॉट्स एप व अन्य मैसेंजर एप की चैट खंगाली जा रही है। फोन फॉरेंसिक जांच के लिए भी भेजा जाएगा ताकि डिलीट किया गया डेटा भी रिकवर किया जा सके और पता किया जा सके कि उससे किस-किस की बात होती थी? जाहिरा तौर पर इसके बाद कई और नाम व राज खुल सकते हैं? पुलिस का कहना है कि जांच का दायरा बढ़ता ही जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि वह केवल इनवेस्ट यूपी के अफसर के लिए ही दलाली नहीं करता था, बल्कि तीनों अथॉरिटी में तैनात कई और भी अधिकारियों से उसकी नजदीकी रही है। बताते हैं कि कई के यहां उसका सीधे आना-जाना था। सरकार ने निवेश को बढ़ावा देने व मानवीय हस्तक्षेप को कम करने एवं पारदर्शिता के लिए आवेदन से लेकर अनुमति तक की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी थी, लेकिन सरकार की महत्वाकांक्षी मंशा को भी चूना लगाने में नहीं चूके भ्रष्ट।

हद यह हो गई कि जिन पर पारदर्शिता की जिम्मेदारी थी, उन्होंने ही कांड कर डाला। नोएडा जैसी जगह पर सौ-दो सौ करोड़ में कुछ नहीं होता है। एक कंपनी एम श्री एम 7500 करोड़ रुपये का निवेश करके आवासीय, ऑफिस व रेंटल सर्विस देने में जुटी है। इससे करीब 14 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा। इंजका कंपनी 4300 करोड़ का निवेश कर रही है। इससे 400 लोगों को रोजगार मिलेगा। इसका काम भी शुरू हो चुका है। इस तरह की 91 निवेशक और भी हैं। ऐसे में सोचा जा सकता है कि कितना बड़ा खेल हो सकता है और जांच का दायरा कहां तक जा सकता है? एक आंकड़ा बताता है कि कुल का करीब 25 फीसदी निवेश मेरठ मंडल यानी नोएडा या आस-पास के इलाके के लिए आता है।

…. जहां-जहां कुर्सी, वहां-वहां प्रॉपर्टी

सौर ऊर्जा उपकरण निर्माता कंपनी एसएईएल से प्रोजेक्ट अप्रूवल के बदले बिचौलिए के जरिए पांच प्रतिशत कमीशन मांगने के कारण इनवेस्ट यूपी के सीईओ अभिषेक प्रकाश को 20 मार्च को निलंबित कर दिया गया था। तत्परता दिखाते हुए उन्हें चार्जशीट भी थमा दी गई है, जिसका जवाब देने के बाद आगे की विभागीय कार्रवाई तय की जाएगी। आरोप है कि यह रकम उन्होंने लेटर ऑफ कंफर्ट (एलओसी) जारी करने के लिए मांगी थी। कंपनी के प्रतिनिधि विश्वजीत दत्ता ने शिकायत की थी कि फाइल को बार-बार टालने का कारण पूछा तो उन्होंने निकांत जैन से मिलने के लिए कहा था, जिसने कुल का पांच फीसदी मांगा था।

साथ ही धमकी भी दी थी कि कहीं भी जाओ, बाद में लौटकर यहीं आना पड़ेगा। पूरा मामला यह था कि 12 मार्च को ही मूल्यांकन समिति की बैठक में एलओसी जारी करने की संस्तुति कर दी गई थी, लेकिन अभिषेक ने पुनर्मूल्यांकन के लिए वापस भेज दी थी, जिसके ही बाद बिहार में जन्मे, आईआईटी रुड़की के एल्युमनी व 2006 बैच के इस अधिकारी पर कार्रवाई की गई थी। मार्च लास्ट वीक में ईडी से जांच की खबर आई थी तो अप्रैल फर्स्ट वीक में एसआईटी द्वारा व दूसरे हफ्ते में कहा गया कि विजिलेंस ने जांच तेज कर दी है। डिफेंस कॉरिडोर के लिए लखनऊ के भटगांव में जमीन अधिग्रहण घोटाले में उनके सहित 16 अधिकारी दोषी पाए गए हैं। उस समय वह लखनऊ के डीएम हुआ करते थे। कुल मिलाकर जो पकड़ा गया, वह चोर की तर्ज पर पूरी कुंडली अब निकाली जा रही है।

जानकार कहते हैं कि बात चाहे जज की हो या आईएएस की, ऐसे केस में जनता जबरन रिटायरमेंट चाहती रही है, बात वहां तक भी पहुंच सकती है। मोटे तौर पर एजेंसी कह रही हैं कि वह जहां-जहां रहे हैं, वहां-वहां प्रॉपर्टी खड़ी की है। अब तो जांच पूरी ही होगी। लखनऊ में कई बंगले पता चले हैं। अंसल में घर, आशियाना में कोठी व एक सोसाइटी में विला होने की बात पता चली है। अलीगढ़, लखीमपुर व बरेली में तैनाती के दौरान परिजन व फर्जी कंपनियों के नाम 700 बीघा जमीन खरीदने के भी प्रमाण मिल रहे हैं और तो और रक्षा विभाग को भी उन्होंने नहीं छोड़ा। इस तरह तो देशद्रोह का भी मामला बन सकता है। ब्रह्मोस मिसाइल फैक्ट्री के नाम पर भी 20 करोड़ का घोटाला करने का आरोप है। अब अभिषेक के कार्यकाल में किए गए सभी निवेश जांच के दायरे में आ गए हैं।

इनवेस्ट यूपी के निलंबित सीईओ अभिषेक प्रकाश की मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही हैं और होनी भी नहीं चाहिए, क्योंकि उन्होंने पीठ में छुरा घोंपने का काम ही ऐसा किया है। सरकार ने उनके कार्यकाल के ऐसे सभी निवेश प्रस्तावों की जांच का फैसला किया हैं, जिन्हें निरस्त किया था। साथ ही मानकों पर पूरे उतरने वाले ऐसे निवेश प्रस्तावों की जांच भी होगी, जिन्हें विलंब से स्वीकृति दी गई थी। औद्योगिक विकास विभाग को संबंधित निर्देश दे दिए गए हैं। ज्ञात हो कि उन्हें 2022 में इनवेस्ट यूपी का सीईओ बनाया गया था। वह लगभग तीन वर्ष इस पद पर रहे। इससे पहले एलडीए के वीसी की भी जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। अहम है कि इसी अवधि में सबसे सबसे ज्यादा निवेश प्रस्ताव आए व सबसे ज्यादा उद्योग भी धरातल पर उतरे। सूत्रों की मानें तो फर्रुखाबाद में 570 करोड़ का निवेश भी जद में है।

इस संयंत्र में एथेनॉल, स्टार्च, ग्लूटेन और डिस्टिलरी उत्पादों के साथ पेय पदार्थ, कार्बोनेटेड वॉटर व पशु चारे का उत्पादन होगा। इसी तरह उन्नाव में बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा विशाल कैन निर्माण संयंत्र की फाइल भी दायरे में है। 1300 करोड़ के निवेश के साथ इस कंपनी ने पहली बार यूपी में दस्तक दी है। उद्देश्य यह तय करना है कि निवेशकों का किसी तरह से उत्पीड़न तो नहीं किया गया है। यह भी देखा जाएगा कि पूर्व में किन-किन निवेश प्रस्तावों को निरस्त किया गया और किस आधार पर? इसके अलावा जो प्रस्ताव मंजूर हुए हैं, उसमें किसी निवेशक को अनुचित लाभ तो नहीं दिया गया है। इनवेस्ट यूपी की मूल्यांकन समिति इस काम में तेजी से जुट गई है।

इनवेस्ट यूपी के बंटी-बबली

देश के सैकड़ों छोटे निवेशकों से 3500 करोड़ से अधिक की ठगी करके विदेश भागने की फिराक में इनवेस्टर समिट के बंटी व बबली आईजीआई एयरपोर्ट दिल्ली से हाल ही में गिरफ्तार किए गए। इससे रोज की तरह एक बार फिर साफ हो गया कि कैसे-कैसे को दिया है? उन पर तो कानून अपना काम करेगा ही, पर उन्हें किस खुशी में छोड़ दिया गया, जिन्होंने मुख्यमंत्री को अंधेरे में रखकर बंटी-बबली तक से 13500 करोड़ का मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) साइन कर डाला? रकम देखकर तो यही लगता है कि बंटी और बबली तो बेकार में ही बदनाम हो गए। मलाई तो अधिकारियों के करीब रहने वाले इन लोगों ने काटी है।

अक्ल क्या घास चरने गई थी व कौन सी कांग्रेस (खुजली वाली) घास खाकर देश की सबसे बड़ी सेवा की परीक्षा पास की थी? इस काम में जिसने भी उसकी मदद की, उसे भी नोटिस जारी करके पूछा जाए कि ऐसा उन्होंने क्यों और किस लालच में किया, क्योंकि ठग के इरादे तो पहले ही दिन से साफ थे इसीलिए एग्रीमेंट के पहले उसने दो फर्जी कंपनी खड़ी की थी? कानून और कार्रवाई की सबसे बड़ी विडंबना अपने देश में यही है कि जो पकड़ा गया सिर्फ वही चोर, बाकी साहूकार। उसे रजिस्टर्ड अंतर्राज्यीय नटवर लाल बनने में मदद करने वालों के मामले में कानून अक्सर मौन क्यों हो जाता है या कर दिया जाता है?

क्यों न कानून का दायरा बढ़ाकर हाथ सीधे उस हलक में डाला जाए, जिसने यह जानने की कोशिश तक नहीं की कि एमओयू साइन करने वाले की हैसियत क्या है? मशीनरी का यह हाल तब है, जब वैश्विक निवेशक सम्मेलन में निवेश का समझौता करने वाली कंपनियों का इतिहास जांचने के उच्च स्तर से निर्देश हैं। इतना ही नहीं, कमी मिलने पर कंपनियों के एमओयू को रोकने या रद्द करने के भी निर्देश हैं। थोड़ी देर के लिए मान लेते हैं कि कोई निर्देश नहीं है तो क्या विभाग के अधिकारी कोट-टाई व अंग्रेजी देखकर हमसे एमओयू करेंगे।

सुखविंदर सिंह खरोर नामक ठग की कंपनी व्यू नाऊ मार्केटिंग सर्विसेज लिमिटेड और व्यूनाउ इंफ्राटेक की कुंडली खंगालने की जिम्मेदारी आखिर किसकी थी? भला हो उसी ईडी की टीम का, जिसने जांच में दोनों ही कंपनी को फर्जी पाया और खरोर को उसकी पत्नी डिंपल खरोर के साथ इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया था, वरना निवेश के मामले में भी गलतियां रोकने की जीरो टॉलरेंस की सरकारी नीति घास चर रही होती। दरअसल ईडी ने लुकआउट सर्कुलर जारी करवाए थे ताकि वे विदेश यात्रा न कर सकें और जैसे ही वे हवाई अड्डा पहुंचे तो इमीग्रेशन अधिकारियों ने रोक लिया था, तब तक ईडी पहुंच गई और जालंधर की अदालत में पेश कर पति को 10 और पत्नी को पांच दिन की रिमांड पर लिया था ताकि और खुलासे हो सकें।

इस तरह आंख के तारे टाइप के अधिकारियों के कारण प्रदेश सरकार की भारी थू-थू हो गई होती। अभी ईडी उसकी आगे की जांच कर रही है। व्यू नाऊ ग्रुप के एमडी के तौर पर नटवर लाल खरोर ने इनवेस्टर समिट में औद्योगिक विकास विभाग के अधिकारियों की आंखों में धूल झोंकते हुए 13,500 करोड़ रुपए का एमओयू साइन किया था। उसका दावा था कि उसकी कंपनी प्रदेश के 75 जिलों में 750 डाटा सेंटर बनाएगी। राज्य सरकार के साथ किए गए एमओयू को सुखविंदर ने ब्लैंक चेक की तरह करोड़पतियों में इस्तेमाल करते हुए खूब भुनाया।

निवेशकों को फर्जी सेल एंड लीज बैंक मॉडल के जरिए फंसाया गया था। डाटा सेंटर की स्टोरेज क्षमता को छोटे-छोटे हिस्सों में लीज पर देने का ऑफर दिया था। दांव काम आ गया और बाजार से कई हजार करोड़ रुपए निवेश कराने में वह सफल हो गया। क्लाउड पार्टिकल (सर्वर) बेचने और निवेशकों को मोटा मासिक किराया प्रदान करने का आश्वासन देकर खरोर ने 3,558 करोड़ जुटा लिए थे, जिसमें से अधिकांश रकम डाटा सेंटर में न लगा के विदेश भेज दी थी। भनक लगते ही नोएडा पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और प्रवर्तन निदेशालय ने जांच शुरू की थी। मनी लांडरिंग की जांच नोएडा पुलिस कर रही है। उसने निवेशकों को गुमराह करने के लिए ही कागजों में बढ़ा-चढ़ाकर कंपनी की सूचनाएं दिखाई थीं एवं वे इसी झांसे में आ गए थे।

ईडी ने बताया कि सेल एंड लीज बैंक मॉडल (एसएलबी) पर आधारित क्लाउड पाटिकल्स का व्यवसाय अस्तित्त्व में नहीं पाया गया। ठगी के पैसे फर्जी फर्म के जरिए महंगी कारों, सोने, हीरे व संपत्ति की खरीद में खपाए गए हैं। रकम को खरोर एंड खरोर फिल्मस, फ्रूटचैट एंटरटेनमेंट व अवनी आईटी इंफ्रा वेंचर्स लिमिटेड सहित कई और कंपनियों में ट्रांसफर किया गया। खास बात यह है कि इन सभी कंपनियों में दोनों खरोर में से कोई न कोई साझेदार था। अगर कुछ नहीं था तो क्लाउड पार्टिकल्स। अब तक ईडी इन ठगों की 300 करोड़ के करीब संपत्ति अटैच कर चुकी है। उसके मित्र आरिफ निसार को भी पकड़ा गया है।

20 नवंबर 2022 को हुए इस दागी एमओयू के समय मुख्य सचिव तो दुर्गा शंकर मिश्र हुआ करते थे, पर इनवेस्ट यूपी के सीईओ अभिषेक प्रकाश थे इसीलिए अब उनके तीन साल के कार्यकाल के सभी निवेश की जांच होगी। गौरतलब है कि प्रदेश में सर्वाधिक निवेश इन्हीं तीन साल में आया है, क्योंकि योगी 1.0 तो योजनाएं बनाने व कोरोना में ही खत्म हो गया था। हालांकि मुख्य सचिव के एक बयान का उल्लेख जरूरी है, जिसमें उन्होंने कहा था कि इस काम के बाद यह दुनिया का सबसे बड़ा नेटवर्क होगा। इसी की मदद से भविष्य में 5जी नेटवर्क, ब्लॉकचेन, ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बिग डाटा टेक्नोलॉजी के उपयोग की तैयारी थी।

दृष्टांत ने किया था आगाह, आयोजन ही निष्पादन नहीं

इसी साल जनवरी के अंक में दृष्टांत पत्रिका ने “सफेद हाथी बनता इनवेस्टर समिट” छापकर मुख्यमंत्री को आगाह किया था कि इनवेस्टर समिट के नाम पर प्रदेश में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। इसके बाद फरवरी और मार्च के भी अंक में “राजकोष के लुटेरे एक” और “राजकोष के लुटेरे-दो” छापकर फिर सतर्क किया। बीच-बीच में मुख्यमंत्री की प्राथमिकताओं से व्यभिचार को आधार बनाकर मीडिया हाउस लगातार लेख छापता रहा है। यह काम इसलिए और अहम हो जाता है, क्योंकि हर अहम योगी आदित्यनाथ की प्राथमिकता वाले हर काम या योजना की मॉनीटरिंग सीधे सीएम ऑफिस ही करता है। एक तबका प्रदेश में हमेशा से रहा है, जो प्राथमिकताएं जानने व भारी भरकम बजट का आवंटन देखकर कुटिल मुस्कान मुस्कुराता है और फाइलें देखकर मोटे पेट पर हाथ फिराता है।

मुख्यमंत्री से इनवेस्ट यूपी का मंत्र सुनने के बाद एकदम से मंत्रमुग्ध होकर सुध-बुध खो बैठे लोग अर्जुन की तरह सिर्फ मछली की आंख (पैसा) ही देखते हैं और रोशनाई, रंगाई, पुताई व सफाई में ही करोड़ों उड़ाने लगे हैं। साल इसलिए खोया-पाया का हिसाब-किताब भी रखना बहुत जरूरी हो गया है, वह भी रिटायरमेंट के पहले। विकास की गंगा बहें, पर बाद में खातों का मिलान जरूर किया जाए। कहीं ऐसा न होने पाए कि खाया-पीया चार आना और गिलास तोड़ा बारह आना वाला हाल हो जाए। आखिर पैसा है जनता की गाढ़ी कमाई का इसलिए जागना होगा ताकि कोई भी अभिषेक प्रकाश मुख्यमंत्री की नाक के नीचे बैठकर उनकी प्राथमिकताओं से व्यभिचार करने की आगे से हिम्मत न जुटा सके।

आठ साल से प्रदेश में डबल इंजन की सरकार निवेशकों के लिए रेड कॉर्पेट बिछाकर चार चांद लगा रही है। इन चांद पर कोई भी अधिकारी रेड टेप का दाग न लगाने पाए इसलिए जागते भी रहना होगा। ई-शिक्षा, ई-संचार, ई-मीडिया, ई-कंजम्शन, ई-रिक्शे, ई-कचरे व ई-बिल (जीएसटी) के इस दौर में मंतव्य पूरा करने के लिए तय किए गए गंतव्य (वेन्यू) शहीद पथ होकर इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान जाने में लाखों की ई-तितली भले ही टैक्स पेयर का दिल ई-सिगरेट से ज्यादा सुलगा रही हो, पर देश-विदेश के सैकड़ों निवेशक हर साल आते हैं और स्वागत के नाम पर दोनों हाथों से खाली किए गए प्रदेश के खजाने को भरने और बेकारी दूर करने का बड़ा ई-वादा करके लौट जाते हैं।

पढ़े-लिखे लोग यह भी सोचते होंगे कि सरकार होकर भी बेकारी दूर नहीं कर पा रहे हैं और टोपी पहनाई जा रही है निजी सेक्टर को, जिसकी भी कुछ सीमाएं हैं। हर साल एक नया ऑस्ट्रेलिया पैदा होने से जब तक नहीं रोकेंगे, तब तक दोनों क्या, तीनों मिलकर भी बेकारी का बाल बांका नहीं कर पाएंगे। वैसे भी विपक्ष का कहना है कि बताया कुछ और जाता है और होता कुछ और है। निवेशक दौड़े चले आ रहे हैं। भारी भरकम राशि के समझौते भी कर रहे हैं, पर धरातल पर कितने उतर रहे हैं, इस पर विपक्ष प्रश्न उठाता रहा है, जिनका जवाब भी देना होगा। दुर्भाग्यपूर्ण है कि समिट के सफल आयोजन को ही निष्पादन की तरह पेश कर शासन से ईनाम पर ईनाम हासिल कर रहे हैं अधिकारी।

याद रहे प्रमोशन, पुरस्कार और अति सम्मान देने से तब तक बचना चाहिए, जब तक विपक्ष के सवाल का जवाब न मिल जाए कि आखिर मेमोरेंडम ऑफ अंडर स्टैंडिंग (एमओयू) साइन होने के बाद धरातल पर कितने उतरे? कहीं ऐसा तो नहीं कि हर बार लाखों करोड़ के औद्योगिक विकास विभाग व उद्योगपतियों के बीच समझौते हो रहे हैं और धरातल पर महज सैकड़ों करोड़ के ही उतर पा रहे हों। विपक्ष का दावा है कि आंकड़े पेश करने में कोरोना काल की तरह चोरी की जा रही है। याद होगा कि प्रारंभिक दौर में प्रसार भारती द्वारा बताया जाता था कि आज इतने हजार लोग कोरोना की चपेट में आए व इतने ठीक हुए।

चंद हफ्तों में हालात जब बेकाबू हो गए तो आंकड़ों की बाजीगरी शुरू हो गई थी कि कितने आज जद में आए, रेडियो-टीवी ने बताना ही बंद कर दिया और फोकस इस बात कर दिया कि आज इतने ठीक हुए। विपक्ष कहता है कि कई करोड़ यह बताने पर खर्च कर दिए जाते हैं कि इतने लाख करोड़ के एमओयू साइन हुए हैं, पर जनहित में यह जानकारी जारी करने पर कभी फोकस नहीं रहा कि एक साल में कितने हजार करोड़ के प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुए, कितनों के भूमि पूजन हुए, कितनों के निर्माण पूरे हो गए, कितनों की मशीनें धड़धड़ाने लगीं और कितनों को रोजगार मिला?

इसके एवज में हजारों करोड़ की सब्सिडी ले जा रहे हैं निवेशक। इसके बाद कुछ ट्रेंड बदला है और भूमि पूजन व कार्य प्रगति पर होने के आंकड़े जिम्मेदार लोग जारी करने लगे हैं तो अभिषेकों पर निलंबन जैसी कार्रवाई करके नकेल कसी जा रही है। बाद में हुई एक बैठक में उन्नाव के कभी डीएम रहे व यूपी के 76वें जिले महाकुंभ के मेलाधिकारी व जिलाधिकारी रहे विजय किरण आनंद को इनवेस्ट यूपी का नया सीईओ बनाया गया है। प्रकाश को सस्पेंड करने के बाद एसीईओ प्रथमेश कुमार को चार्ज दिया गया था।

Related Articles

Back to top button