
लखनऊ। पावर कॉरपोरेशन द्वारा दिए गए बिजली दर बढ़ोतरी प्रस्ताव का राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने विरोध किया है। परिषद ने राज्य विद्युत नियामक आयोग में बिजली दरों में 40% से 45% की कमी का प्रस्ताव दाखिल किया। प्रस्ताव में परिषद की ओर से कहा गया कि आयोग द्वारा निकाले गए निकाले गए रेग्युलेटरी सरप्लस (जो धनराशि पहले कॉरपोरेशन द्वारा अलग-अलग मदों में गलत तरीके से वसूली गई) ब्याज को जोड़ते हुए लगभग 33,122 करोड़ रुपये बनते हैं। यानी उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर बकाया है। इसलिए बिजली दरों में कमी की जानी चाहिए। रेग्युलेटरी सरप्लस के आधार पर ही नोएडा पावर कंपनी की बिजली दरों में तीन साल से 10% की कमी चल रही है।
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने मंगलवार को नियामक आयोग चेयरमैन अरविंद कुमार से मुलाकात कर पावर कॉरपोरेशन द्वारा दाखिल संशोधित बिजली दर प्रस्ताव को खारिज करने की मांग की। परिषद ने कॉरपोरेशन पर घाटे के गलत आंकड़े पेश करने का आरोप भी लगाया। कहा कि पूरे देश में कहीं भी बिजली उपभोक्ताओं के ऊपर जो बकाया राशि है, उसे घाटे में नहीं दर्ज किया जाता है। मगर बिजली कंपनियों ने कलेक्शन एफिशिएंसी के आधार पर लगभग 10,000 करोड़ रुपये की बकाया वसूली को घाटे में दर्ज कर दिया है।
बिजली कंपनियों का घाटा बढ़ने पर भी उपभोक्ता परिषद ने पावर कॉरपोरेशन को जिम्मेदार ठहराया है। परिषद ने कहा कि केंद्र सरकार ने यूपी में स्मार्ट प्रीपेड मीटर प्रॉजेक्ट के लिए 18,885 करोड़ रुपये अनुमोदित किए। मगर मीटर कंपनियों को 27,342 करोड़ रुपये का टेंडर अवॉर्ड किया गया, जो अनुमोदित रकम से 9,000 करोड़ रुपये ज्यादा है। आने वाले समय में यह रकम घाटे का कारण बनेगी और इसकी जिम्मेदारी किसकी है?
प्रदेश के उपभोक्ताओं के लिए लगभग 78,000 करोड़ की बिजली खरीद होती है। उसमें 54% फिक्स कास्ट है, जो बहुत ज्यादा है। ये सारे समझौते पावर कॉरपोरेशन ने किए थे। जिन 54 लाख विद्युत उपभोक्ताओं द्वारा एक बार भी बिजली बिल का भुगतान नहीं किया गया, उनमें से ज्यादातर सौभाग्य योजना के लाभार्थी हैं, जिन्हें फ्री कनेक्शन दिया गया। इन उपभोक्ताओं को अधिक बिजली बिल भेजा जा रहा है।