
नई दिल्ली। लोगों के आंसू निकालने वाले प्याज के आंसू निकल रहे हैं। महंगाई की अकड़ अब गायब हो गई है। खाद्य पदार्थों, सब्जियों और ईंधन की कीमतों में नरमी आने से थोक महंगाई 13 महीने के निचले स्तर 0.85% पर आ गई। बीते मार्च महीने में यह 2.05 प्रतिशत और अप्रैल 2024 में 1.19 प्रतिशत रही थी।
वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल में दर्ज थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की दर मार्च 2024 के बाद से सबसे कम है। उस समय यह 0.26 प्रतिशत के स्तर पर थी। मंत्रालय ने कहा कि मुख्य तौर पर खाद्य उत्पादों, विनिर्माण, रसायनों व रासायनिक उत्पादों, अन्य परिवहन उपकरणों के विनिर्माण व मशीनरी तथा उपकरणों के विनिर्माण आदि की कीमतों में नरमी महंगाई में गिरावट की मुख्य वजह रही।
आंकड़ों के अनुसार, खाद्य वस्तुओं की कीमतों में अप्रैल में 0.86 प्रतिशत की गिरावट आई। मार्च में खाद्य उत्पादों की मुद्रास्फीति 1.57 प्रतिशत थी। अप्रैल में सब्जियों की मुद्रास्फीति दर 18.26 प्रतिशत रही, जबकि मार्च में यह 15.88 प्रतिशत रही थी। सबसे अधिक प्याज की थोक कीमतों में गिरावट आई है। प्याज की मुद्रास्फीति घटकर 0.20 प्रतिशत हो गई, जो मार्च में 26.65 प्रतिशत थी।
रेटिंग एजेंसी इक्रा के वरिष्ठ अर्थशास्त्री राहुल अग्रवाल ने कहा कि केरल में समय से पहले मानसून आने और देश में सामान्य से अधिक मानसून रहने के अनुमान फसल उत्पादन के लिए सकारात्मक है। इसके परिणामस्वरूप खाद्य मुद्रास्फीति का पूर्वानुमान भी सकारात्मक है।
थोक में वस्तुओं के दाम कम होने से इसका असर खुदरा महंगाई पर दिखता है। आरबीआई मौद्रिक नीति तैयार करते समय मुख्य रूप से खुदरा मुद्रास्फीति पर गौर करता है। सब्जियों, फलों एवं दालों की कीमतों में नरमी आने से अप्रैल में खुदरा मुद्रास्फीति की दर घटकर करीब छह साल के निचले स्तर 3.16 प्रतिशत पर आ गई है। इससे भारतीय रिजर्व बैंक के लिए जून की मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट में एक और कटौती की पर्याप्त गुंजाइश बन गई है।
महंगाई दर बढ़ने या घटने का सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ता है। थोक में अगर किसी वस्तु के दाम घटते हैं तो आम उपभोक्ता को खुदरा बाजार में खरीद के दौरान कम कीमत चुकानी होती है। औसतन महंगाई घटने से रिजर्व बैंक के ऊपर ब्याज दरें बढ़ाने का दबाव घटेगा। ब्याज दरें कम होने के मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को कर्ज कम महंगा मिलेगा। किसी देश में महंगाई दर घटने पर मुद्रा के माध्यम से खरीदने की ताकत बढ़ती है। उससे देश विशेष में रहने का खर्च घटता है। खरीद शक्ति बढ़ने से उत्पादन भी बढ़ता है जो अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाता है।