
नई दिल्ली। भारत और फ्रांस की सरकारों ने इंडियन नेवी के लिए 26 राफेल-M फाइटर जेट की डील साइन की। इसमें 22 सिंगल-सीटर और 4 ट्विन-सीटर एयरक्राफ्ट हैं। ये डील करीब 63000 करोड़ रुपये की है। डील में प्रशिक्षण, सिम्युलेटर, संबंधित उपकरण, हथियार और परफॉर्मेंस बेस्ड लॉजिस्टिक्स शामिल हैं। साथ ही इस अग्रीमेंट में इंडियन एयरफोर्स के मौजूदा राफेल बेड़े लिए अतिरिक्त उपकरणों की सप्लाई भी शामिल है। डील पर सोमवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और फ्रांस के सशस्त्र बलों के मंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू ने साइन किए।
पहले फाइटर जेट की सप्लाई करीब 3 साल बाद होगी और सभी फाइटर जेट की डिलिवरी साल 2030 के आखिर तक पूरी हो जाएगी और उनके क्रू मेंबर्स को फ्रांस और भारत दोनों जगह प्रशिक्षण दिया जाएगा। नेवी राफेल-M का इस्तेमाल एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रमादित्य और विक्रांत से करेगी। इसलिए इसकी जरूरत के हिसाब से ही राफेल में बदलाव किए जाएंगे। इंडियन नेवी के एयरक्राफ्ट कैरियर और फ्रांस के एयरक्राफ्ट कैरियर के सिस्टम में फर्क है। एयरक्राफ्ट कैरियर से राफेल किस तरह टेकऑफ करेगा, ये सिस्टम दोनों देशों के एयरक्राफ्ट कैरियर में अलग अलग हैं।
इंडियन नेवी को मिलने वाले राफेल-M में स्वदेशी कंटेंट भी बढ़ाया जाएगा। इसके कुछ पार्ट भारत में ही बनेंगे। राफेल बनाने वाली कंपनी एमआरओ (मेंटेनेंस, रिपेयर और ओवरहॉल) फैसिलिटी भारत में ही लगाएगी, इसमें इंजन के मेंटेनेंस की फैसिलिटी भी होगी। नेवी के लिए राफेल-एम में दूसरे वेपन के साथ ही स्वदेशी मिसाइल अस्त्र को भी इंटीग्रेट किया जाएगा। अभी नेवी के पास एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रांत से ऑपरेट करने के लिए 49 मिग-29K फाइटर एयरक्राफ्ट हैं, लेकिन यह पुराने हो रहे हैं। नेवी इन्हें स्वदेशी एयरक्राफ्ट से रिप्लेस करना चाहती है। एचएएल ने लाइट कॉम्बेट एयरक्राफ्ट (LCA) का मेरीटाइम वर्जन बनाया है लेकिन वह नेवी की सारी जरूरतें पूरी नहीं करता। इसलिए नेवी के लिए डीआरडीओ ट्विन इंजन डेक बेस्ड फाइटर (TEDBF) बनाने पर काम कर रहा है। इसका प्राथमिक डिजाइन रिव्यू फेज में है, जिसमें सारे सिस्टम को बनाकर इंटीग्रेट करते हैं।
अभी एयरफ्रेम डिजाइन पर काम हो रहा है और जून तक इसका प्राथमिक डिजाइन पूरा होने की उम्मीद है। फिर क्रिटिकल डिजाइन पर काम होगा। 2028 तक इसे तैयार करने की योजना है और ये इस पर भी निर्भर होगा कि इसे कब कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी का अप्रूवल मिलेगा। लेकिन तब तक के गैप को भरने के लिए नेवी के लिए ये 26 राफेल-M अहम हैं। इससे भारतीय नौसेना की समुद्री ताकत में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी। नौसेना और वायुसेना के बीच जॉइंट ऑपरेशन आसान होगा। इनकी युद्धक मारक क्षमता मिशन के आधार पर 780 किलोमीटर से लेकर 1,850 किलोमीटर से भी ज्यादा है। इन्हें विमानवाहक पोतों से STOBAR (शॉर्ट टेक-ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी – कम दूरी से उड़ान भरना लेकिन तारों की मदद से रोकना) संचालन के लिए डिजाइन किया गया है।
भारत में राफेल विमानों के ढांचे (fuselage) के निर्माण की सुविधा विकसित होगी। इंजन, सेंसर और हथियारों की मरम्मत और रखरखाव के लिए एमआरओ (Maintenance, Repair and Overhaul) केंद्र बनेंगे। स्वदेशी हथियारों को विमानों में जोड़ने के लिए टेक्नोलॉजी ट्रांसफर भी होगा। डिलीवरी: 2030 तक सभी विमान भारतीय नौसेना को मिल जाएंगे। भारतीय नौसैनिक पायलटों की ट्रेनिंग भारत और फ्रांस दोनों जगह होगी। 9.3 टन तक का सामान बाहर से लाद सकता है, जैसे कि- 70 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली एक्सोसेट AM39 एंटी-शिप मिसाइलें (समुद्री जहाजों को निशाना बनाने वाली मिसाइलें)। 70 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली MICA हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइलें। 120 से 150 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तक बिना देखे मार करने वाली मिसाइलें। 300 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली हवा-से-ज़मीन पर मार करने वाली क्रूज़ मिसाइलें।
राफेल-M 4.5 जेनरेशन का माना जाता है, जो इसे बहुत आधुनिक बनाता है। राफेल-M विमानों में न्यूक्लियर हथियारों को लॉन्च करने की क्षमता भी है। यह एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बढ़त हो सकती है, जो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने में मदद करेगी।