
भारत की आबादी जैसे-जैसे बढ़ रही है वैसे-वैसे देश में बुजुर्गों की संख्या भी बढ़ रही है। इन बुजुर्गों को सबसे ज्यादा जो दो बीमारियां परेशान कर रही हैं, वो हैं हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज। हाल ही में परिवार और स्वास्थ्य कल्याण मंत्रालय (MoFHW) की एक रिपोर्ट में बताया गया कि शहरों में 60 साल से ऊपर के लगभग 26% बुजुर्गों को शुगर की समस्या है। वहीं गांवों में यह संख्या 9.3% पाई गई है।
आपको अपने खाने में नमक और चीनी का कम करना चाहिए। पौष्टिक खाना बुजुर्गों के लिए सबसे अच्छा होता है। सबसे जरूरी बात यह है कि आपको रोजाना थोड़ी देर टहलना या हल्का व्यायाम करना चाहिए। इसी तरह भारत में लगभग 32% बुजुर्ग (60 साल से ऊपर) हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी से पीड़ित हैं, जबकि 45 से 59 साल की उम्र के लोगों में यह संख्या 21% है। ये बीमारियां धीरे-धीरे बढ़ती हैं और कई बार बिना कोई लक्षण दिखाए शरीर को नुकसान पहुंचाती हैं, इसलिए इन्हें “साइलेंट किलर” भी कहा जाता है।
जल्दी जांच कराना जरूरी है ताकि इलाज समय पर शुरू हो सके। इसके अलावा जीवनशैली में बदलाव करें। सही खान-पान, समय पर दवाइयाँ और थोड़ी बहुत एक्सरसाइज फायदेमंद होती है। नियमित जांच करवाते रहें क्योंकि ब्लड प्रेशर और शुगर की नियमित जांच बहुत जरूरी है।
हाई ब्लड प्रेशर और शुगर का इलाज करना आसान नहीं होता, क्योंकि ये जीवनभर की बीमारियां होती हैं। इनका प्रबंधन दवाओं, अच्छी आदतों और नियमित जांच से ही किया जा सकता है। अगर इन बीमारियों का ध्यान नहीं रखा गया तो दिल की बीमारी, किडनी फेल होना या स्ट्रोक जैसी बड़ी समस्याएं हो सकती हैं।
सर्वोदय अस्पताल, ग्रेटर नोएडा की डॉक्टर स्वप्निल शिखा ने बुजुर्गों के लिए कुछ आसान और जरूरी सलाह दी हैं। उन्होंने बताया कि घरवाले और समाज दोनों को बुजुर्गों की सेहत पर ध्यान देना चाहिए।
हाई ब्लड प्रेशर और शुगर जैसी बीमारियों का सही समय पर इलाज न हो पाने का एक कारण ये भी है कि बहुत से बुजुर्ग डॉक्टर के पास जाने से बचते हैं। कुछ को जानकारी नहीं होती, कुछ को अस्पताल जाना मुश्किल लगता है। कई बार तो बुजुर्ग पहले से ही दूसरी दवाइयाँ ले रहे होते हैं, इसलिए उन्हें नई बीमारी का पता ही नहीं चलता।
ज़्यादातर बुजुर्गों को पता ही नहीं चलता कि उन्हें हाई ब्लड प्रेशर या शुगर है, क्योंकि शुरू में ब्लड शुगर के लक्षण नहीं दिखते। हल्का सिर दर्द, थकान या बेचैनी जैसी बातें लोग अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। जब बीमारी बढ़ जाती है, तब जाकर पता चलता है। इसका एक बड़ा कारण है – जागरूकता की कमी, यानी न तो बुजुर्ग खुद ध्यान देते हैं, न ही घरवाले और कई बार डॉक्टर भी समय पर जांच नहीं कराते।