
शिल्पा सिंह
दरअसल भारत में अभिव्यक्ति की संवैधानिक स्वतंत्रता के नाम पर कुछ ज्यादा ही बोलने की आजादी मिली हुई है। भला संविधान की लिखी और कितनी बातें हैं, जिन पर हर नागरिक खरा उतर रहा है। अधिकारों के आगे के अनुच्छेदों (चैप्टर) में कर्तव्य भी लिखे हुए हैं। उन पर कितना अमल कर रहे हैं स्वयंभू जागरूक लोग। सौ बार सोचकर बोलने में क्या हर्ज है? जिम्मेदारी से बोलने में परहेज कैसा? बोलना बहुत ही जरूरी हो तो हैसियत के बराबर या नीचे वालों पर बोलो, गौका या दस्तूर हो तो बोलो, जितनी औकात हो तथा जितना झेल सको, उतना बोलो एवं जितना ज्ञान हो, उतना बोलो और यदि बहुत ज्यादा ज्ञान हो, तब तो बहुत ही कम बोलो।
इस कारण अक्सर लोग औकात से कहीं ज्यादा बोल जाते हैं, जबकि बोलने के पहले यह सौ बार सोचना चाहिए कि जिसके बारे में बोलने जा रहे हो, उसकी तुलना में वक्ता या प्रवक्ता की औकात क्या है? इन्हें बोलने के नियम के तौर पर भी देखा जा सकता है। न मौका था और न ही दस्तूर। बेमौसम बरसात की तरह बरसने की कोशिश में मुंह के बल गिर पड़े सपा के राज्य सभा सांसद रामलाल सुमन। उन्होंने मुंह से ऐसी उल्टी कर दी है कि अब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की हर चाल ही उल्टी पड़ती जा रही है और पार्टी सहित वह भी उन क्षत्रियों के निशाने पर आ चुके हैं, जिनके बहुत एहसान रहे हैं उन पर।
अतीत में जब-जब ठाकुरों ने पार्टी का साथ दिया है, तब-तब समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा है और सत्ता तक पहुंची है। इस बार भी अगर मोह त्याग न करते टीडीपी के नायडू और जदयू के नीतीश कुमार तो अपने पिता मुलायम सिंह यादव की तरह दिल्ली दरबार में पहुंचने में अखिलेश सफल हो गए होते। जीवन के इस मकाम पर पहुंचने व इतना सब कुछ पाने के बाद भी न जाने अखिलेश से और क्या पाने की लालसा थी कि बकवास कर बैठे। उन्होंने शायद ऐसा बुढ़ापे में नूर की तरह चमकने के लिए किया होगा। सुमन न जाने क्यों बिना नमी व जुताई के ही बोने चले थे पार्टी के लिए कुशन और और अनजाने में बो गए चुभन (कांटे) और अपशकुन ।
ऐसी चुभन, जिससे 2027 के पहले भरपाई कर निजात पाना मुश्किल होगा सपा के लिए। राजनीति के इस खिलाड़ी का अनाड़ीपन भविष्य में पार्टी पर भारी पड़ेगा। 2024 लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद जो पेंडुलम सपा की ओर झुकता दिखाई पड़ने लगा था। वह फिर उससे छिटक कर दूर चला गया है। याद होगा कि गांधी नगर से चली राजपूताना बयार गाजियाबाद होते हुए कुंडा व जौनपुर पहुंची तो किस तरह भाजपा ने ही भाजपा को हराकर सपा की मदद की थी और लंबे अर्से बाद बड़े चुनाव में पार्टी भाजपा को पछाड़ने में कामयाब रही थी।
अखिलेश को पार्टी अध्यक्ष होने के नाते सुमन से पूछना चाहिए था कि क्या जरूरत थी पड़ी लकड़ी हिलाने और लोकसभा का अहसान इतनी जल्दी भुलाने की, जबकि उन्होंने इसके उलट काम किया, जिसका असर समस्त उत्तर भारत कहें या लखनऊ से लेकर जयपुर तक देखने को मिल रहा है। इसे ही कहा जाता है विनाशकाले विपरीत बुद्धि। देख रहे हैं कि देश का माहौल कैसा है? लीक से हटकर जरा सा कुछ बोलने पर न सिर्फ सिर तन से जुदा के नारे लगने लगते हैं, बल्कि जयपुर से लेकर लखनऊ तक बयानों के कारण हत्या करके एक तरह से सिर जुदा किया भी जा चुका है।
विचित्र स्थिति इसलिए खड़ी हो गई है, क्योंकि जहां मन होगा संविधान से चलेंगे और जहां लाभ कम और इरादों में गंदगी ज्यादा होगी, वहां अपने मन के विधान से चलेंगे। गृह मंत्रालय के कामकाज की समीक्षा पर चर्चा करते समय सुमन ने कहा था कि बीजेपी के लोगों का तकिया कलाम हो गया है कि मुसलमानों में बाबर का डीएनए है तो भाजपा वालों में राणा सांगा का, जिन्होंने गद्दारी करते हुए इब्राहिम लोदी को हराने के लिए बाबर को आने का निमंत्रण दिया था। राणा सांगा की गद्दारी की चर्चा क्यों नहीं होती नहीं? यहीं न रुककर उन्होंने दावा किया कि भारत का मुसलमान बाबर को नहीं, पैगंबर मोहम्मद को आदर्श मानता है। इस पर सदन के डिप्टी वेयरमैन हरिवंश सिंह ने कहा था कि जो संसदीय मर्यादा के अनुकूल नहीं हो, वह रिकॉर्ड से हटा दिया जाए।
वित्तौड़गढ़ से भाजपा सांसद सीपी जोशी व मेवाड़ राजघराने की बहू एवं राजस्थान के राजसमंद से बीजेपी सांसद महिमा कुमारी ने सुमन की टिप्पणी का सदन में मुद्दा उठाते हुए कहा था कि हमारा सदियों से राष्ट्ररक्षा का लंबा इतिहास है। वह हम लोगों के आराध्य की तरह हैं और किसी आम आदमी से सबकुछ न्यौछावर करने वाले राणा सांगा को प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है। मेवाड़ सांसद ने कहा कि उन्हें घटिया विचार का परिचय देने के बजाय पढ़-लिख कर बोलना चाहिए था। राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी और बाबर को भी हराया था। जोशी ने कहा कि राणा सांगा का विषय केवल मेवाड़ का नहीं है, बल्कि ये पूरे देश का विषय है। वह तुष्टिकरण की राजनीति के लिए ही ऐसा बोल रहे हैं।
राणा सांगा ने कुल मिलाकर छोटे-बड़े सौ युद्ध लड़े थे और सिर्फ एक ही हारा। इन्हें इतिहास का ज्ञान होता तो पता होता कि दौलत खान के निमंत्रण पर भारत आया था बाबर। उसने तो इब्राहिम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा से संधि की कोशिश की थी, पर योद्धा ने मना कर दिया था। उन्हें सदन के साथ पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए। दूसरी ओर, सुमन ने कहा कि इस जन्म में माफी नहीं मांगूंगा। दिल्ली स्थित आवास पर उन्होंने कहा कि सिर्फ ऐतिहासिक तथ्य सामने रखे हैं।
सच स्वीकार करने की आदत डालनी होगी। उन्हें गलतफहमी थी कि बाबर एक लुटेरा है और लूटपाट कर वापस चला जाएगा, क्योंकि पहले तैमूर लुटेरा आया था, जिसने ऐसा ही किया था। इसके बाद वह दिल्ली पर शासन करेंगे। दोनों में यह समझौता हुआ था कि लोदी पर बाबर और आगरा पर राणा सांगा हमला करेंगे। मनमुटाव होने पर जब यह समझौता टूट गया था क्योंकि लोदी को हराने के बाद बाबर लौटने के बजाय दिल्ली पर शासन करने लगा था, जो राणा सांगा बर्दाश्त नहीं हुआ और नतीजतन दोनों में खानवा के मैदान में युद्ध हुआ। राणा सांगा बहुत बहादुरी से लड़े, लेकिन हार गए थे।
अखिलेश ने कहा कि सुमन को कोई भी नुकसान पहुंचाता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की होगी। इस पर भाजपा विधायक संगीत सोम ने कहा कि एक तो चोरी, ऊपर से सीनाजोरी। यदि प्रत्युत्तर में सपाई सड़क पर उतरे तो बहुत पीटे जाएंगे। इसके बाद संसद की बात को सड़क तक पहुंचने में देर नहीं लगी। खून और सियासत गर्म होने के बाद लावा बनकर सड़क पर फैलने लगी है। आन-बान और शान के लिए इतिहास में बहुत कुछ झेलने व खोने वाले क्षत्रियों की करणी सेना ने अगले ही दिन सुमन का आगरा स्थित एचआईजी फ्लैट घेर लिया था और पथराव कर कार आदि तोड़ डाली थी। इतना ही नहीं वे बुलडोजर लेकर पहुंच गए थे। किसी तरह पुलिस ने बात बिगड़ने से बचा ली थी।
करणी सेना के युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष ओकेंद्र राणा के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर पुलिस तलाश कर रही है। इसके बाद सोशल मीडिया का आधा-अधूरा और अधकचरा ज्ञान आग में घी का काम कर रहा है। तथ्यों व तकों की कसौटी पर कसे बिना ही दोनों ओर के लोग कट-पेस्ट करके पीत पत्रकारिता में जुटे हैं। दोनों ओर से बयानबाजी चल रही है तो दूसरे हफ्ते के पहले ही दिन लखनऊ में राजपूतों ने बड़ा प्रदर्शन करके फिर माफी मांगने की बात दोहराते हुए कहा कि यदि 11 तक माफी नहीं मांगी तो 12 को राणा सांगा की जयंती पर आगरा में लाखों की भीड़ पहुंच कर रक्त स्वाभिमान रैली करेगी।
इस बारे में इंटरनेट मीडिया में 19 मिनट 51 सेकंड का एक वीडियो भी पोस्ट किया गया। इसमें उन्होंने कहा है कि पत्थरबाजों से मिलते हैं 12 को। हम गद्दार नहीं, नस्ल हकदार है। सुमन को माफ कर देता, लेकिन चोट हमें न पहुंचा कर, हमारे पूर्वजों के बलिदान को दी है। अगर हम नहीं लड़े तो आने वाले पीढ़ी कायर कहेगी। हम गद्दार समाज से नहीं है, बल्कि हम वो हैं, जिन्होंने हजारों लड़ाइयां लड़कर सबसे ज्यादा खोया है और कभी पूरी जिंदगी नहीं जिए। सुख नहीं देखा, जवानी भर तलवार भांजते रहे युद्ध के मैदानों में देश की सीमाओं की रक्षा के लिए और यह काम आज भी लाखों क्षत्रिय कर रहे हैं। क्या ऐसों को कुछ भी बोलने दिया जाए, जिनका कोई इतिहास ही नहीं है।
इस वीडियो को 48 घंटे में 18 लाख से अधिक लोग देख चुके हैं और 78000 से अधिक लोगों ने कमेंट भी किए हैं। 18000 से अधिक लोग शेयर कर चुके हैं। सियासी जानकार कहते हैं कि अखिलेश ने आग पर पानी डालने के बजाय गलत बयान देकर घी डाल दिया। पहले भी फूलन देवी को सांसद का टिकट देकर ऐसी गलती कर चुकी है। समाज का एक मजबूत अंग बार-बार बीती बातों को भूलकर मदद करता है, कम से कम बाबर के लिए उसे खुद से दूर करने की कोई जल्दबाजी सपा को नहीं होनी चाहिए थी। इसी कारण अब निशाने पर अखिलेश यादव भी आ गए हैं।
मंगलवार को लखनऊ में करणी सेना व अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा समेत 36 क्षत्रिय संगठनों ने 1090 चौराहे पर एकत्र होकर सुमन के खिलाफ प्रदर्शन किया और अंतिम बार माफी मांगने की मांग की। इस दौरान सपा अध्यक्ष के खिलाफ आपत्तिजनक नारेबाजी की गई। हजारों प्रदर्शनकारी वहां से दो-तीन किमी दूर विधान भवन के पास स्थित गांधी प्रतिमा तक न पहुंच पाएं, पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए पुख्ता इंतजाम किए थे। भारी पुलिस बल की तैनाती के साथ अवरोधक लगाए गए थे।
राणा सांगा का अपमान, नहीं सहेगा हिंदुस्तान लिखी तख्तियां थामे प्रदर्शनकारियों ने आगे बढ़ने के लिए अवरोधकों को तोड़ने की कोशिश की। कुछ प्रदर्शनकारी पुलिस की बसों पर चढ़ गए व झंडे लेकर जय भवानी और अखिलेश यादव के खिलाफ नारे लगाए। अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा (युवा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अवनीश सिंह ने कहा कि माफी मांग लें, अभी वक्त है, नहीं तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। इसके बाद पुलिस ने कई प्रदर्शनकारियों को वाहनों में भरकर ईको गार्डन पहुंचा दिया, जबकि अन्य लौट गए। प्रदर्शन के दौरान पूरे दिन व्यस्त रहने वाले लोहिया पथ पर घंटों अफरा-तफरी रही, यातायात बाधित रहा और जाम लग गया।
इससे पहले सपा अध्यक्ष ने एक और गलती करते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री एक छिपी हुई भूमिगत ताकत को बढ़ावा दे रहे हैं, जो लोगों को अपमानित कर रही है और विपक्षी आवाजों को निशाना बना रही है। माफी पर कुछ न बोलते हुए कहा कि राज्यसभा के रिकॉर्ड से जब बयान निकाल दिया गया है तो अराजकता का कोई मतलब नहीं रह जाता है। सियासी पंडित इस बयान के निहितार्थ निकालते हुए कहते हैं कि सपा ने साफ कर दिया है कि अब उसे भविष्य में राजपूतों के समर्थन की जरूरत नहीं है, पीडीए या एम-वाई से ही उसका काम चल जाएगा, जबकि 2012 में सरकार तभी बन पाई थी, जब एम-वाई में जाकर टी मिला था।
दूसरी ओर, फतेहपुर सीकरी के सांसद राजकुमार चाहर ने करणी सेना के विरोध का समर्थन करते हुए कहा कि जिस तरह सपा सांसद ने अनर्गल बयानबाजी की है, वह तुष्टिकरण की पराकाष्ठा पार करने वाली है। आप बहुसंख्यकों को लज्जित करने के लिए औरंगजेब व बाबर का महिमा मंडन करिए, आपके व सपा के डीएनए में है, पर, भारत के गौरव पर टिप्पणी करेंगे तो भला कोई क्यों चुप रहेगा? राणा सांगा को गद्दार कहने के बाद तो माफी मांगने के काबिल भी नहीं बचे हैं।
आगरा के कुबेरपुर के पास गढ़ी रामी गांव में 12 अप्रैल को होने वाले कार्यक्रम की एक ओर तैयारी चल रही है तो दूसरी ओर रद्द होने की भी खबरें आ रही हैं क्योंकि फूलन देवी वाले शेर सिंह राणा मायावती को लेकर आना चाहते थे तो सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष महिपाल सिंह मकराना ने भी समर्थकों से आगरा पहुंचने की अपील की थी। ओकेंद्र इसे राजनीतिक मंच नहीं बनाना चाहते हैं। सीकरी सांसद राजकुमार चाहर और विधायक डॉ. धर्मपाल सिंह की सहमति भी मिल चुकी है। राणा ने वीडियो में कहा है कि सांसद सुमन के समाज से दुश्मनी नहीं है। वह किस समाज से आते हैं, इससे कोई मतलब नहीं है।
दुश्मनी सिर्फ सांसद से है। आगरा में हिसाब-किताब नहीं हो पाया। अब कहीं और होगा। अखिलेश के रवैये के बाद कहा कि हर जिले में सपा की खिलाफत के लिए कहेंगे। बीच-बीच में कुछ न कुछ समाज में ऐसा होता रहता है कि करणी सेना चर्चा में आ जाती है। हालांकि इंटरनेट के दौर में लोग इसे सर्च कर जानने की कोशिश कर रहे हैं। करणी सेना का गठन 23 सितंबर 2006 को जयपुर के जोतवाड़ा में लोकेंद्र सिंह कालवी ने सरकारी नौकरियों व शिक्षा में राजपूतों के लिए जाति आधारित आरक्षण की मांग के लिए किया था।
संगठन का नाम करणी माता के नाम पर रखा गया, जिन्हें उनके अनुयायी हींगलाज का अवतार मानते हैं। मार्च 2023 में संस्थापक कालवी की हत्या कर दी गई थी। हालांकि फिर भी संगठन सक्रिय बना हुआ है और विभिन्न राज्यों में इसका विस्तार जारी है। संगठन तब अधिक चर्चा में आया, जब 2018 में संजय लीला भंसाली की पद्मावत के विरोध में राष्ट्रव्यापी आंदोलन किया गया था। रानी पद्मिनी के चरित्र को गलत तरीके से प्रस्तुत करने से राजपूत समाज की भावनाएं आहत होने को मुद्दा बनाकर राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में उग्र रूप ले लिया था।
जीभ काटने पर एक लाख का ईनाम
सुमन की टिप्पणी के खिलाफ देश में उनके विरुद्ध उबाल देखने को मिल रहा है। लोग कहते हैं कि सपा सांसद ने जाने-अनजाने ऐसा तीर छोड़ा, जिसका मुंह उनकी ओर ही था। बर्र के छत्ते में हाथ डालने की क्या जरूरत थी? अतीत में देखा जा चुका है कि पृथ्वीराज चौहान की अस्थियां लेने के लिए एक बंदा अफगानिस्तान जा पहुंचा था तो बेहमई के ऐसे ऐतिहासिक हत्याकांड का बदला लेने के लिए हद पार कर गया था, जिससे उसका कोई लेना-देना नहीं था।
अखिल भारतीय हिंदू महासभा की महिला जिलाध्यक्ष मीरा राठौर ने सुमन की जीभ काटकर लाने वाले को एक लाख रुपये का ईनाम देने का ऐलान किया है। हाल के साल में समाज में ऐसा ट्रेंड देखा गया है कि जिनकी एक करोड़ की कुल हैसियत नहीं होती है, वे भी विभिन्न मुद्दों पर एक करोड़ के ईनाम का ऐलान कर देते हैं। अभी तक इसके खिलाफ कोई कानून या मैकेनिज्म विकसित नहीं किया जा सका है। शायद उपरोक्त कारण से ही प्रदर्शन के दौरान उन्होंने हाथों में नोट की गड्डियां भी थाम रखी थीं। उन्होंने कहा कि राणा सांगा को गद्दार कहने वाले को डीएनए टेस्ट कराना चाहिए। सुमन का पुतला फूंकने के बाद उन्होंने आगरा के हरी पर्वत थाने में सांसद के खिलाफ हिंदुओं की भावनाएं आहत करने के लिए तहरीर भी दी है।
हालांकि अभी तक मामला दर्ज नहीं हुआ है। 24 घंटे में मुकदमा दर्ज न होने पर आंदोलन को तेज करने की चेतावनी उन्होंने दी है। इस पर सुमन बोले कि किसी की भावनाएं आहत करने का इरादा नहीं था। वह तो बस यह कहना चाहते थे कि रोज रोज बाबर को गाली देना सही नहीं है। सिर्फ इतना कहना चाहते हैं कि जब जच देश की इज्जत दांव पर लगी तो हिंदुओं के साथ मुसलमान भी देश के लिए लड़े थे। इस पर महासभा ने कहा कि क्षत्रियों की तुलना में सभी का त्याग कम है।
ऐतिहासिक नजरिए से मुसलमानों के योगदान की बात सच भी है क्योंकि कहते हैं कि खानवा युद्ध शुरू होने से पहले राणा सांगा के साथ हसन खां मेवाती और महमूद लोदी के अलावा कई राजपूत राजा अपनी-अपनी सेना लेकर राणा के साथ आगरा को घेरने गए थे। बाबर से बयाना के शासक ने सहायता मांगी तो उसने ख्वाजा मेहंदी को बयाना भेजा, पर राणा सांगा ने उसे पराजित करके बयाना पर अधिकार कर लिया। लगातार मिल रही हार से मुगलों में डर बैठ गया था। ऐसे में बाबर ने मुसलमानों को एकजुट करने के लिए उन पर से टैक्स हटाकर जिहाद का नारा दिया और बड़े स्तर पर युद्ध की तैयारी की थी।
राणा सांगा का इतिहास में है उच्च स्थान
राणा कुंभा के पौत्र व राणा रायमल के पुत्र राणा सांगा पिता के बाद सन् 1509 में मेवाड़ के उत्तराधिकारी बने थे। इनका शासनकाल 1509 से 1527 तक रहा। उनकी रानी का नाम महारानी कर्णावती था। वह सिसोदिया राजवंश के सूर्यवंशी शासक थे। राणा सांगा का मेवाड़ एक समृद्ध और बड़ा राज्य होता था। दस करोड़ सालाना आमदनी उस दौर में हुआ करती थी। राणा सांगा ने एक आदर्श शासक बनकर राज्य की उन्नति और रक्षार्थ सब कुछ न्यौछावर कर दिया। यह पहली बार ऐसा था जबकि उन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ राजपूतों को एकजुट किया तो दिल्ली, गुजरात, मालवा के मुगल बादशाहों के आक्रमणों से अपने राज्य कि बहादुरी से रक्षा की थी।
महाराणा प्रताप को अंतिम मजबूत राजपूत शासक माना जाता है। उनके दादा का नाम राणा सांगा था, जो बहुत बड़े भूभाग पर काबिज थे। हालांकि उनके चार बेटों ने उनकी मृत्यु के करीब 50 साल बाद तक मेवाड़ से लेकर चित्तौड़गढ़ तक शासन किया। इतिहास का एक ऐसा योद्धा, जिसने करीब-करीब हर प्रमुख शासक इब्राहिम लोदी, महमूद खिलजी और बाबर को न सिर्फ ललकारा, बल्कि धूल भी चटाई। भले ही खानवा के युद्ध में बाबर से हार गए हों, पर उनकी वीरता के आगे बाबर स्तब्ध था, ऐसा उल्लेख मिलता है। पीछे के युद्धों में एक आंख, एक हाथ और एक पैर क्षतिग्रस्त हो गया था।
बताते हैं कि खतौली के युद्ध में उनका एक हाथ कट गया था और एक पैर ने भी काम करना बंद कर दिया था। उनके शरीर पर कुल 80 घाव थे, फिर भी वह लड़ने जाते थे। इन्हीं के नाम पर न जाने कितनी सदी से लोकोक्तियां चली आ रही हैं कि राजपूत योद्धाओं का सिर कट जाता था, फिर भी खून में इतनी गर्मी होती थी कि कई मिनट तक धड़ तलवार भांजता रहता था। इसी कारण उन्हें दुश्मन तक मानवों का खंडहर कहते थे। ऐसे वीर पुरोधा पर अगर कोई तुच्छ प्राणी उंगली उठाएगा तो फिर वाद का प्रतिवाद भी तय है और विवाद भी। इसी कारण पूरे उत्तर भारत में 36 राजपूत संगठन घरना और प्रदर्शन कर रहे हैं। आसमान पर थूकने के पहले सोचा जाता है कि वह खुद पर ही गिरेगा।
इसी तरह समाज में एक ट्रेंड देखा जा रहा है कि पं. नेहरू की तरह कुछ एक्सीडेंटल हिंदू सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर रामायण से लेकर त्रिपुरारी ब्रहमा, विष्णु व महेश, भगवान राम, हनुमान जी सहित देवी-देवताओं पर अभद्र टिप्पणी कर रहे हैं। जानकार इसके पीछे दो वजह बता रहे हैं, एक जाहिल होना, दूसरा, उनको इस तरह की शिक्षा देने वाला गुरु और तीसरा हिट्स व लाइक का खेल। इसी के रिएक्शन में लोग कह उठते हैं कि यदि साहस हो तो किसी दूसरे धर्म पर टिप्पणी करके भी हिट्स और लाइक लेकर दिखाओ, अगर वे सिर को तन से जुदा न कर दें।
अतीत में लखनऊ से जयपुर तक कई उदाहरण सामने आ चुके हैं। राणा सांगा, जिनका असली नाम था संग्राम सिंह प्रथम, वह जब बाबर के साथ एक और युद्ध लगड़ने की तैयारी कर रहे थे तो उन्हें नजदीक रहने वालों ने ही खाने में जहर दे दिया था, क्योंकि वे दूसरे युद्ध को आत्मघाती मानते थे। इस तरह 30 जनवरी 1528 को उनका निधन हो गया था। इस तरह मेवाड़ पर उनका 20 साल शासन रहा था। उनके कई बेटे थे, पर वे उस मकाम को हासिल नहीं कर सके, जो पिता और दादा ने हासिल किया था। सबसे बड़े भोजराज थे तो दूसरे पर रतन सिंह द्वितीय, फिर विक्रमादित्य और उदय सिंह द्वितीय। जल्द ही उनकी भी मृत्यु हो गई थी तो फिर विक्रमादित्य बने, पर सबसे लंबा शासन इतिहासकारों ने उदय सिंह का बताया है। बड़े की मौत के बाद दूसरे शासक बने थे, पर रियासत छोटी होती चली गई थी समय के साथ।
लड़े गए कुछ प्रमुख युद्ध
खतौली (बूंदी) का युद्ध – 1517
बाड़ी (धौलपुर) का युद्ध – 1518
गागरोन (झालावाड़) युद्ध – 1519
बयाना (भरतपुर) युद्ध – फरवरी 1527
खानवा (कोटा) युद्ध – मार्च 1527
हाथ-पैर-आंख न होने पर भी जो लड़े, वह राणा सांगा
इस मुद्दे पर कांग्रेस भी भाजपा के साथ खड़ी नजर आई। कांग्रेस ने भी सुमन के बयान की निंदा की, पर बात अखिलेश ने बिगाड़ दी। नई पीढ़ी, जिसे राणा सांगा के बारे में कुछ नहीं पता था, इसी कारण इंटरनेट पर टॉप ट्रेंड करता रहा। गफलत दूर करने के लिए उल्लेख जरूरी है कि राणा सांगा ने बाबर के खिलाफ दो युद्ध लड़े थे। पहले में भागकर जान बचाने में सफल रहा था, पर खानवा में जीत गया था? 21 फरवरी 1527 को बयाना में हुए युद्ध में उन्होंने मुगल वंश के संस्थापक बाबर पर जीत हासिल की थी। उसकी सेना को खत्म कर बाबर के शिविर पर कब्जा कर लिया था और हथियार, गोला-बारूद, वाद्य यंत्र और यहां तक कि टेंट भी लूट लिए थे। इनमें से कुछ चीजें उदयपुर के संग्रहालयों में आज भी प्रदर्शित हैं।
वह युद्ध स्थल से भाग निकला था, पर राणा ने पीछा कर उसे खत्म न करके बड़ी गलती की थी, ऐसा इतिहासकार कहते हैं। एक महीने बाद ही 16 मार्च को जब बाबर तोपें लेकर लौटा तो राणा खानवा की लड़ाई हार गए। इस युद्ध में उन्होंने बाबर के खिलाफ अन्य राजपूत रियासतों के साथ गठबंधन सेना का नेतृत्व किया था। बहुत बड़ी सेना होने के बावजूद मुगल सेना की बेहतर रणनीति और हथियारों के कारण राणा हार गए थे। हालांकि राणा सांगा ने प्रतिरोध नहीं छोड़ा और गुरिल्ला युद्ध के जरिये मुगल विस्तार का विरोध करना जारी रखा था। महाराणा प्रताप के दादा व उदय सिंह द्वितीय के पिता राणा सांगा यानी कि महाराणा संग्राम सिंह बाबर के अधीन मुगल साम्राज्य के विस्तार का बहादुरी से विरोध करने के लिए जाने जाते हैं।
बताते हैं कि राणा सांगा ने 100 युद्ध लड़े थे, इसमें कुछ छोटी लड़ाइयां लड़ीं थी, जो दो-चार दिन में निपट गई थीं। इनकी संख्या गिनकर इतिहासकार सौ बताते रहे हैं इसीलिए उन्हें मध्यकालीन भारत का ऐसा अंतिम शासक कहा जाता है, जिन्होंने कई राजपूत रियासतों को एकजुट किया था। विभिन्न युद्धों में एक हाथ, एक पैर, एक आंख खोने और शरीर पर लगभग 80 घावों के बावजूद विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ाई जारी रखने के लिए ही इतिहास में बहुत स्थान हासिल है राणा सांगा को। ऐसे वीर की वीरता पर जब उंगली ऐसे आदमी ने उठाई, जिसका कोई इतिहास ही नहीं है तो समाज बर्दाश्त नहीं कर सका। इतिहास में दर्ज है कि सांगा की वीरता देख पांच घंटे में ही रणभूमि से भाग गया था इब्राहिम लोदी।
यह बात 1517 के खतौली की लड़ाई की है। मेवाड़ की सेना ने एक लोदी राजकुमार को बंदी बना लिया और फिरौती के भुगतान पर कुछ दिनों बाद उसे रिहा कर दिया था। इसकी भी प्रशंसा की जाती है कि यदि राणा सांगा दूसरों की तरह निर्दयी होते तो कुछ भी कर सकते थे। मांडु का शासक सुल्तान मोहम्मद बहुत उचक रहा था तो उसको युद्ध में हराने के बाद बंदी बना लिया था, परंतु उसकी एक बात पर उदारता दिखाते हुए राज्य पुनः सौंप दिया था। लोदी की लड़ाई में राणा का बायां हाथ तलवार से कट गया था और घुटने में तीर लगने के कारण एक पैर खो दिया था। साथ ही एक आंख भी युद्ध की भेंट चढ़ गई थी, फिर भी ईश्वर की इस संतान ने फर्ज से कभी मुंह नहीं मोड़ा। करीबियों के ही जहर देने के कारण उनकी मौत हो गई थी।
इतिहासकार मानते हैं कि यदि ऐसा न हुआ होता तो भारत में मुगल साम्राज्य के विस्तार की दिशा बदल सकती थी एवं उसे रोका भी जा सकता था, क्योंकि निरंतर प्रतिरोध से वह अन्य क्षेत्रीय शक्तियों को भी मुगलों का विरोध करने के लिए प्रेरित कर रहे थे व एकजुट भी। खानवा का युद्ध 1527 में जब दोबारा शुरू हुआ तो बाबर के पास दो लाख सैनिक थे, फिर भी राणा सांगा ने वीरता और साहस के दम पर भयंकर मार-काट की क्योंकि सेना इथर भी बराबर थी, पर बाजी उसके हाथ तोपखाने के कारण लगी थी। दूसरे, सेनापति लोदी लालच में फंसकर गद्दारी करके बाबर से जा मिला था।
ओकेंद्र ने कहा कि सुमन में दम है तो इतिहास के इस तथ्य पर बहस करे और माफी मांगते हुए कहे कि गद्दारी राणा ने नहीं, बल्कि लोदी ने की थी। यदि लोदी ने साथ न छोड़ा होता तो इतिहास ही कुछ और होता और मुगल वंश की नींव भारत में पड़ने के पहले ही विचार की ही भ्रूणहत्या हो गई होती। तोपखाना के बीच लड़ाई में राणा की अद्भुत वीरता देखकर बाबर के होश फाख्ता हो गए थे। कहते हैं कि युद्ध में सांगा बेहोश हो गए थे तो उनकी सेना किसी सुरक्षित जगह लेकर चली गई थी। होश में आने के बाद उन्होंने फिर लड़ने की ठानी और चित्तौड़ नहीं लौटने की कसम खाई। कहते हैं कि यह सुनकर जो सामंत उन्हें उठाकर लाए थे, वे इस दुस्साहस में साथ नहीं थे इसलिए राणा को जहर दे दिया था, जिसके चलते 30 जनवरी 1528 में कालपी में मृत्यु हो गई थी।